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राग किरवानी के शास्त्रीय पक्ष के बारे में आपको बताते हैं। किरवानी में यूं तो खयाल भी गाया बजाया जाता है लेकिन इस राग को सुगम संगीत या लाइट म्यूजिक के लिए बहुत मुफीद माना जाता है। यही वजह है कि किरवानी में एक से बढ़कर एक फिल्मी गाने, ग़ज़लें और भजन कंपोज किए गए हैं। श्रृंगार, खास तौर पर वियोग श्रृंगार वाले गाने किरवानी में खूब खिलते हैं। किरवानी में गंधार और धैवत कोमल होते हैं और बाकी स्वर शुद्ध।  आरोह और अवरोह दोनों में सारे स्वर लगते हैं इसलिए इसकी जाति कहलाती है संपूर्ण-संपूर्ण। किरवानी को पीलू के काफी करीब जाता है। किरवानी का आरोह-अवरोह देखिए

आरोह-सा रे ग॒ म प ध॒ नी सां

अवरोह-सां नी ध॒ प म ग॒ रे सा

पकड़- ध़ ऩी सा रे  म प  प, ध प  रे- सा रे,  म प  प

इंटरनेट पर राग किरवानी में उस्ताद अली अकबर खां की करीब पचास साल पहले की रिकॉर्डिंग मौजूद है।

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