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राग यमन का ये किस्सा बड़ा दिलचस्प है। कहते हैं मधुबाला को राग यमन से बहुत प्यार था। इतना प्यार कि वो खुद को ‘मिस यमन’ कहलाना पसंद करती थीं। उनके इस प्यार की वजह थी वो गाना जिसके बोल थे- जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात। 1960 में आई फिल्म ‘बरसात की एक रात’ सुपरहिट हुई थी। म्यूजिक डायरेक्टर रोशन को भी इस फिल्म के संगीत के लिए खूब सराहा गया। इस गाने में मधुबाला कयामत की खूबसूरत लग रही थीं। फिल्म के हिट होने में इस गाने का बड़ा रोल था। मधुबाला को जब पता चला कि ये गाना राग यमन में कम्पोज किया गया है तो उन्हें राग यमन से एक किस्म का प्यार हो गया। कहा तो यहां तक जाता है कि एक फिल्म में मधुबाला लीड एक्ट्रेस की बजाए सेकेंड लीड बनने को तैयार हो गई थीं क्योंकि उस सेकेंड लीड एक्ट्रेस पर फिल्माया जाने वाला एक गाना राग यमन पर कंपोज किया गया था। खैर, राग यमन की यही खूबसूरती है कि इसमें हिंदी फिल्मों को सुपरहिट गाने मिले हैं। चंदन सा बदन और नाम गुम जाएगा जैसे दर्जनों गाने इस राग में कंपोज किए गए हैं। जिनका जिक्र हम आगे भी करेंगे।

ये राग यमन की खूबी ही है कि इसकी सभी कॉम्पजिशन ‘लाइट म्यूजिक’ में ये बेहद लोकप्रिय हैं। फिल्मी गानों से निकलकर जब बात गजलों में आती है तब राग यमन पर आधारित एक गजल सबसे पहले याद आती है। गजल सम्राट उस्ताद मेहदी हसन की आवाज में गाई गई ये गजल लोकप्रियता के मामले में एक अलग ही मुकाम पर है। इस गजल को उर्दू के मशहूर शायर अहमद फराज ने लिखा था। जिसके बोल थे- रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ। एक और गजल याद कीजिए जो आपको राग यमन की पॉप्युलैरिटीको समझाएगी। फरीदा खानम की आवाज में गाई गई ये गजल आज भी तमाम महफिलों की शान हैं- आज जाने की जिद ना करो।  ये वो गजले हैं जिनका जिक्र हर खासो-आम  की जुबान पर होता है। आज जाने की जिद ना करो की लोकप्रियता ही थी कि करन जौहर ने अपनी फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ में इसी गजल को अरिजित सिंह और शिल्पा राव से भी गवाया।  फिल्म ‘दिल ही तो है’ में यमन पर बनी नूतन पर फिल्माई गई ये कव्वाली आज भी सुपरहिट है जिसके बोल थे- निगाहें मिलाने को जी चाहता है।

चलिए अब आपको राग यमन के शास्त्रीय पक्ष के बारे में भी बताते हैं। शुरूआत एक छोटे से किस्से करते हैं। मशहूर शास्त्रीय गायिका प्रभा आत्रे ने जब शास्त्रीय गायन सीखना शुरू किया तो एक साल तक वो सिर्फ राग यमन सीखती रहीं। यमन के जरिए उन्होंने शास्त्रीय गायकी के सारे गुर सिखा दिए। स्वर कैसे लगाना है, बढ़त कैसे करनी है, भाव कैसे लाना है। प्रभा बताती हैं कि राग यमन का ‘फाउंडेशन’ इतना अच्छा बना कि अगले एक साल में उनके 6 राग तैयार हो गए।

राग यमन का शास्त्रीय पक्ष कहता है कि ये राग अपने ही नाम वाले थाट यानी कल्याण से बना है। आरोह-अवरोह दोनों में सातों स्वरों का इस्तेमाल होता है इसलिए इस राग की जाति संपूर्ण-संपूर्ण है। इसमें मध्यम तीव्र लगता है और बाकी सारे स्वर शुद्ध होते हैं। ग को वादी और नी को संवादी माना गया है। रात के पहले पहर में इस राग को गाते-बजाते हैं।

आरोह- ऩि रे ग, म॑ ध नि सां

अवरोह- सां नि ध प, म॑ ग रे सा

पकड़- ऩि रे ग रे, प रे, ऩि रे सा

आरोह अवरोह को आसान शब्दों समझते हैं। ये तो हम जानते ही हैं कि सात सुर होते हैं। सा, रे, ग, म, प, ध, नी। शास्त्रीय संगीत के सभी राग इन्हीं सुरों के ‘कॉम्बिनेशन’ से बनते हैं। किसी एक राग में कोई एक सुर नहीं लगता तो किसी राग में कोई दूसरा सुर। कई राग ऐसी भी हैं जिनमें सभी सात सुर लगते हैं। राग यमन भी एक ऐसा ही राग है जिसमें सभी सात सुर लगते हैं। आरोह और अवरोह को एक सीढ़ी की तरह मान सकते हैं। आरोह का मतलब है कि सुरो की सीढ़ी का ऊपर जाना और अवरोह का मतलब है कि उसी सीढ़ी से वापस उतरना। वादी, संवादी और पकड़ का मतलब ये होता है कि आप जैसे ही इन नियम कायदों में बंध कर गाएंगे शास्त्रीय संगीत के जानकार तुरंत इस बात को पकड़ लेंगे कि आप कौन सा राग गा रहे हैं। किस सुर पर आपने कितना जोर दिया, ये जानकारों को बताने के लिए काफी होता है कि राग कौन सा है। किसी भी राग में वादी और संवादी सुर की अहमियत शतरंज के खेल के हिसाब से बादशाह और वजीर जैसी होती है।

ऐसा भी कहा जाता है कि मुस्लिम संगीत जानकारों ने इस राग को यमन या इमन कहना शुरू किया, लेकिन इसका प्राचीन नाम कल्याण है। आज इस राग को दोनों नामों से जाना जाता है- यमन और कल्याण। कल्याण के कई प्रकार मिलते हैं- शुद्ध कल्याण, पूरिया कल्याण, जैत कल्याण वगैरह। इसमें बड़ा खयाल, छोटा खयाल, तराना, ध्रुपद वगैरह गाए जाते हैं। एक तो शाम का राग है और दूसरे बहुत ही मधुर है, इसलिए संगीत समारोहों में ये राग खूब सुनने को मिलता है। राग यमन की एक और खूबी है। साल 1452 में इटली में जन्मे चित्रकार, आर्किटेक्ट, मूर्तिकार, वैज्ञानिक लियोनार्दो द विंची ने कहा था Simplicity is the ultimate sophistication. यानी सादगी में ही नफ़ासत है। उनकी कही ये बात राग यमन पर पूरी तरह लागू होती है। शास्त्रीय गायकी के लिहाज से ये सबसे आसान राग इसलिए माना जा सकता है क्योंकि इसी राग से ज्यादातर कलाकार सीखना शुरू करते हैं। सबसे कठिन इस लिहाज से माना जा सकता है क्योंकि इसी राग को सीखने के बाद आगे की रागों को सीखना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। शास्त्रीय संगीत के पाठ्यक्रम के लिहाज से भी राग यमन पहले साल में सिखाया जाने वाला राग है।

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