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साल 1990 की बात है। विश्वविख्यात बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जापान में थे। एक रोज उनके कमरे में फोन आया, पता चला कि फोन हॉलैंड से आया है। हॉलैंड से फोन करने वाले शख्स ने बताया कि क्वीन बीएटक्स चाहती हैं कि पंडित हरिप्रसाद चौरसिया हॉलैंड में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करें। क्वीन बीएटक्स इस कार्यक्रम के जरिए अपने पति को एक सरप्राइजदेना चाहती थीं। फोन करने वाले सज्जन ने ये भी बताया कि उन्होंने कितनी मशक्कत के बाद जापान में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया से संपर्क का तरीका खोजा, खैर पंडित जी मान गए और उन्होंने अगले हफ्ते नीदरलैंड में राजमहल में बांसुरी वादन पर सहमति दे दी। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि उनके साथ संगत करने के लिए अमेरिका से जाकिर हुसैन को और बांसुरी पर साथ देने के लिए भारत से रूपक कुलकर्णी को बुला दिया जाए। तय तारीख पर ये तीनों कलाकार अलग-अलग देश से सफर करके हॉलैंड पहुंचे। पंडित जी ने 18 अप्रैल 1990 को उन्होंने राजमहल में बांसुरी का कार्यक्रम पेश किया। लोग मंत्रमुग्ध थे। राजमहल में किसी भी भारतीय शास्त्रीय कलाकार का ये पहला कार्यक्रम था। इससे पहले वहां लोगों ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस पवित्र रूप को कभी महसूस नहीं किया था। कुछ अन्य रागों के साथ उस रोज पंडित जी ने राग जोग बजाया था।

राग जोग कितना पॉपुलर राग है और इसमें कितने खूबसूरत गाने बने हैं इस पर आने से पहले राग जोग से जुड़ा एक फिल्मी किस्सा भी आपको बताते हैं। मनीषा कोइराला 90 के दशक की बड़ी हीरोईनों में शामिल हैं। 1991 में फिल्म ‘सौदागर’ से अपने हिंदी फिल्मी करियर की शुरूआत करने वाली मनीषा कोइराला के खाते में ‘1942-ए लव स्टोरी’, ‘बॉम्बे’, ‘दिल से’, ‘कंपनी’ जैसी हिट फिल्में हैं। आज के राग की कहानी मणिरत्नम की ‘बैक-टू-बैक’ दो फिल्मों से जुड़ी है। मनीषा जब 24-25 साल की थीं तब मणिरत्नम ने उनसे फिल्म ‘बॉम्बे’ के लिए संपर्क किया था। फिल्म बॉम्बे में मनीषा कोइराला को मां का रोल करना था। मनीषा को कुछ लोगों ने समझाया कि इस उम्र में मां का रोल करना उनके करियर के घातक होगा। मनीषा ‘कन्फ्यूस’ हो गईं। ऐसे में उन्हें अशोक मेहता ने खूब डांटा। अशोक मेहता मनीषा कोइराला की पहली फिल्म ‘सौदागर’ के सिनेमेटोग्राफर थे और करीबी दोस्त भी। उन्होंने मणिरत्नम की काबिलियत का बखान करते हुए मनीषा कोइराला को सलाह दी कि उन्हें आंख मूंदकर वो फिल्म करनी चाहिए। मनीषा ने फिल्म के लिए हां तो कर दी लेकिन उन्हें 18-20 घंटे काम करना पड़ता था।

दरअसल, फिल्म तमिल में शूट हुई थी, इसलिए उसके डायलॉग्स को याद करना भी अपने आप में मुश्किल काम था। खैर, मनीषा ने मेहनत की तो उन्हें अच्छा नतीजा भी मिला। उन्हें फिल्म के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इसके कुछ साल बाद मणिरत्नम एक और फिल्म का ऑफर लेकर मनीषा कोइराला के पास गए। इस बार फिल्म थी- ‘दिल से’। मणिरत्नम से मनीषा बहुत प्रभावित थीं। इसके अलावा पिछली फिल्म बॉम्बे का संगीत भी उन्हें बहुत अच्छा लगा था। ‘बॉम्बे’ की तरह ही ‘दिल से’ में भी संगीत एआर रहमान का ही था। मनीषा ने इस बार बगैर सोचे दिल से के लिए हां कर दी। फिल्म दिल से में एआर रहमान का ये जादू था- इक सूरज निकला था। एआर रहमान का गाया ये गाना परदे पर शाहरूख खान और मनीषा कोइराला पर फिल्माया गया था। इस गाने को एआर रहमान ने शास्त्रीय राग जोग की जमीन पर तैयार किया था। एआर रहमान अपने संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत का परंपरावादी चेहरा अक्सर दिखाते रहते हैं। इससे काफी पहले 1959 में आई फिल्म सावन में संगीतकार हंसराज बहल ने इसी राग की जमीन पर एक गाना तैयार किया था। जिसके बोल थे- नैन द्वार से। इस गीत को मुकेश और लता मंगेशकर ने गाया था। इसके अलावा गुलाम अली की गजल उनपे कुछ इस तरह प्यार आने लगा भी राग जोग पर ही आधारित है।

राग जोग यूं तो सिर्फ पांच सुरों का राग है लेकिन इस राग में इतनी गुंजाइश है कि एक-एक घंटे की खयाल गायकी भी सुनने को मिलती है और 4-5 मिनट के गीत ग़ज़ल भी। संगीत मार्तंड पंडित जसराज ने राग जोग बड़ा सुंदर गाया है। मेहदी हसन की मशहूर ग़ज़ल ये मोजज़ा भी  मोहब्बत कभी दिखाए मुझे भी राग जोग पर बनी है। हरिहरन ने भी राग जोग पर आधारित एक खूबसूरत ग़ज़ल गाई है- दायम पड़ा हुआ तेरे दर पे नहीं हूं मैं।

आइए अब आपको राग जोग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग जोग खमाज थाट का राग है। इस राग में दोनों ‘ग’ और ‘नी’ लगते हैं। इसके अलावा बाकी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। इस राग में ‘रे’ और ‘ध’ नहीं लगता है। इस राग की जाति औडव-औडव है। इस राग में ‘प’ वादी स्वर है और इसका संवादी स्वर ‘स’ है। किसी भी राग में वादी और संवादी स्वर का महत्व वही होता है शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है। राग को गाने बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर है। राग जोग तिलंग राग के बेहद नजदीक का राग है। फर्क सिर्फ शुद्ध ‘ग’ का है। आइए आपको राग जोग का आरोह- अवरोह बताते हैं।

आरोह- सा ग म प नी सां

अवरोह- सां नी प म ग म सा

कभी मौका निकालकर इंदौर घराने के विश्वविख्यात कलाकार उस्ताद अमीर खां का गाया राग जोग सुनिए। इसमें विलंबित के बोल हैं-ओ बलमा कब घर आयो और द्रुत में बोल हैं- साजन मोरे घर आए। पद्मभूषण से सम्मानित वायलिन वादक एन राजम का बजाया राग जोग भी खूब सुना जाता है।

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