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80 के दशक की बात है। दूरदर्शन का दौर था। देश में कांग्रेस की सरकार थी। राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने के लिए दो बहुत ही खूबसूरत वीडियो बनाए गए थे। ये दोनों ही वीडियो एक से बढ़कर एक थे। दोनों शास्त्रीय राग पर आधारित थे। दोनों में जानी मानी हस्तियां स्क्रीन पर दिखाई देती थीं। एक से बढ़कर एक कलाकारों को उसमें ‘फीचर’ किया गया था। फर्क सिर्फ एक था- एक में लिपसिंक (किसी और की आवाज पर होठ हिलाना) का सहारा लिया गया था जबकि दूसरा उन्हीं कलाकारों पर फिल्माया गया था जो स्क्रीन पर दिखाई दे रहे थे। अब तक आप समझ गए होंगे कि यहां हम कौन से दो वीडियो की बात कर रहे हैं। इसे पढ़कर एक बहुत बड़े तबके को निश्चित तौर पर अपना बचपन भी याद आ जाएगा। जिसमें दूरदर्शन पर हमलोग, बुनियाद, व्योमकेश बख्शी, तमस और मालगुडी डेज जैसे सीरियल आया करते थे। मिले सुर मेरा तुम्हारा जहां राग भैरवी पर कंपोज किया गया था। वहीं बजे सरगम राग देश पर आधारित था। इसके बोल में ही कहा गया था- बजे सरगम हर तरफ से, गूंजे बनकर देस राग।

आपको इन दोनों ही गानों से जुड़ी दिलचस्प कहानियां बताते हैं। मिले सुर मेरा तुम्हारा से जुड़ी दिलचस्प कहानी तो ये है कि एक वक्त ऐसा आया जब इस बात पर लड़ाई छिड़ गई कि असल में इस गीत को कंपोज किसने किया था। जाने माने मराठी कंपोजर अशोक पाटकी का कहना था कि उन्होंने इसे कंपोज किया है जबकि दूसरी तरफ पंडित भीमसेन जोशी के पुत्र जयंत जोशी ने दावा किया कि ये गीत उनके पिता ने कंपोज किया है। एक इंटरव्यू में जयंत जोशी ने इसे कंपोज किए जाने की पूरी प्रक्रिया पर बात करते हुए कहाथा कि दरअसल तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी राष्ट्रीय एकता की अलख जलाने वाला एक गीत चाहते थे, जिसका प्रस्ताव लेकर जानी मानी कंपनी ओ एंड एम उनके पिता यानि पंडित भीमसेन जोशी के पास लेकर आई थी। जिसके बाद ये कंपोजिशन तैयार की गई थी। दूसरी तरफ बजे सरगम से जुड़ा किस्सा ये है कि एक वक्त ऐसा आया जब इसकी लोकप्रियता ने मिले सुर मेरा तुम्हारा को भी चुनौती दे दी। इस वीडियो में कविता कृष्णमूर्ति की आवाज के बाद पंडित रविशंकर, पंडित भीमसेन जोशी, पंडित रामनारायण, पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, पंडित शिवकुमार शर्मा, उस्ताद जाकिर हुसैन और उनके अब्बा उस्ताद अल्लारखां खान, उस्ताद अमजद अली खान के अलावा तमाम शास्त्रीय नृत्यों को जगह दी गई थी। मिले सुर मेरा तुम्हारा की तरह इसमें अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, मिथुन चक्रवर्ती, हेमा मालिनी, वहीदा रहमान, शर्मिला टैगोर और तमाम जाने माने ‘सेलीब्रिटी’ चेहरे नहीं थे। फिर भी वो राग देश और इसमें शामिल कलाकारों की काबिलियत थी कि इसने जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की।

राग देश से जुड़ा एक और बेहद दिलचस्प किस्सा है। 1964 में शक्ति सामंत की फिल्म आई- कश्मीर की कली। फिल्म में शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर थे। एस एच बिहारी ने फिल्म के गीत लिखे थे और संगीत ओपी नैयर साहब ने तैयार किया था। शम्मी कपूर पर आम तौर से रोमांटिक और तड़कीले भड़कीले गाने फिल्माए जाते थे। उदाहरण के तौर पर इसी फिल्म का गाना तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें बनाया याद कीजिए। जिसमें शम्मी कपूर गाते गाते झील में गिर जाते हैं। खैर, इस फिल्म में शम्मी कपूर पर एक ‘सैड’ गाना फिल्माया जाना था। गाने के बोल थे ‘है दुनिया उसी की जमाना उसी का’। मोहम्मद रफी इस गीत को गा रहे थे। इसे एक बार में फिल्माया गया था। जहां शम्मी कपूर पहली बार कोल्डड्रिंक की बोतल को झटककर शराब को हाथ लगाते हैं। हुआ यूं कि इस गाने में ओपी नैयर ने ‘सेक्साफोन’ का इस्तेमाल किया था। उन्हें एक ऐसे कलाकार की तलाश थी जो गाने में इस इंस्ट्रूमेंट के साथ न्याय कर सके। एक दिन उनके साथ काम कर चुके एक कलाकार अब्दुल ने डरते डरते बताया कि वो एक सेक्साफोन बजाने वाले को जानते हैं लेकिन वो एक बैंड पार्टी में काम करता है। जिस कलाकार का जिक्र अब्दुल भाई ने किया था वो भेंडी बाजार में रहता था और नूर मोहम्मद बैंड पार्टी में काम करता था। अब्दुल भाई को इस बात का डर था कि कहीं ओपी नैयर साहब अपनी प्रतिष्ठा को दिमाग में रखकर ऐसे कलाकार को बुलाने से मना कर दें। ताज्जुब तब हुआ जब ओपी नैयर ने कहाकि उस कलाकार को बुला लो। दिलचस्प कहानी ये भी है कि उस कलाकार के पास अपना सेक्साफोन तक नहीं था वो अपने बैंड पार्टी का सेक्साफोन लेकर आया और उसने ओपी नैयर के लिए इस गाने में रिकॉर्डिंग की। गाना बेहद हिट हुआ और साथ ही साथ सेक्साफोन की धुन भी। ये धुन बजाने वाले कलाकार थे- जाने माने संगीत निर्देशक इस्माइल दरबार के पिता हुसैन साहब। इस गाने में भी राग देस के रंग आपको सुनाई देंगे।

राग देश में और भी कई फिल्मी गीत कंपोज किए गए। आपको राग देश में कंपोज कुछ ऐसे ही गाने और याद दिलाते हैं जिन्हें खूब लोकप्रियता मिली। 1936 में आई फिल्म-देवदास का ‘दुख के दिन अब बीतत नाहीं’ राग देश में ही कंपोज किया गया था, जिसे केएल सहगल ने गाया था। 1965 में आई फिल्म-आरजू का ‘अजी रूठकर अब कहां जाइएगा’, 1965 में आई फिल्म-नीला आकाश का ‘आपको प्यार छुपाने की बुरी आदत है’ जैसे फिल्मी गीत भी राग देश में ही हैं। फिल्मी गीतों से अलग आपको भजन की दुनिया में ले चलते हैं। भजन सम्राट के तौर पर मशहूर गायक अनूप जलोटा का एक बहुचर्चित भजन भी राग देश में ही कंपोज किया गया है। जो कबीर दास का लिखा हुआ है। जिसके बोल हैं- चदरिया भीनी रे भीनी। राग देस में ठुमरियां और फिल्मी गाने खूब गाए गए हैं। शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन में उस्ताद नुसरत फतेह अली खान ने राग देस में एक गीत गाया था- मोरे सैंया तो हैं परदेस मैं क्या करूं सावन को। मेहदी हसन साहब की मशहूर ठुमरी – उमड़ घुमड़ घिर आए रे, सजनी बदरा भी राग देश पर ही  आधारित है। देश के करीब का राग तिलक कामोद है, लेकिन जानकार लोग जब दोनों रागों को उनके चलन के हिसाब से गाते हैं तो दोनों रागों का फर्क साफ नजर आने लगता है। 

चलिए अब आपको राग देश के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग देश खमाज थाट से निकलता है। इसके आरोह में ‘ग’ और ‘ध’ नहीं लगाते। जबकि अवरोह में सभी स्वर लगाए जाते हैं। इस प्रकार इसकी जाति औडव सम्पूर्ण कहा जाता है। राग देश के आरोह में शुद्ध ‘नी’ और अवरोह में कोमल ‘नी’ का इस्तेमाल किया जाता है। वादी स्वर ‘रे’ और सम्वादी स्वर ‘प’ है। राग देश को गाने बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर माना गया है। राग देश के आरोह अवरोह को देखिए

आरोह–स रे म प नी सं

अवरोह–सं नी ध प, म ग रे ग स

पकड़–रे म प, नी ध प, प ध प म, ग रे ग स

पद्मविभूषण से सम्मानित विश्वविख्यात गायिका गिरिजा देवी की राग देश में गाई गई ठुमरी पिया नहीं

आए काली बदरिया बरसे खूब सुनी जाती है।

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