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साल 1944 की बात है। उस दौर के बड़े संगीतकार राम गांगुली के पास एक दिन एक नया कलाकार आया। उस कलाकार को बांसुरी बजानी आती थी। शहनाई बजानी आती थी। वो बॉम्बे काम की तलाश में आया था। राम गांगुली ने उसे अपने साथ रख लिया। उस कलाकार ने संगीतकार राम गांगुली को संगीत बनाने में मदद देने का काम शुरू कर दिया। करीब चार साल बाद की बात है। जाने माने कलाकार राज कपूर पहली बार फिल्म डायरेक्शन की दुनिया में कदम रखने जा रहे थे। फिल्म का नाम था-आग। फिल्म में राज कपूर और नरगिस थे। इस फिल्म में संगीत देने का जिम्मा राम गांगुली का था। इस फिल्म में राम गांगुली ने उस कलाकार से काम लिया। कलाकार ने फिल्म में जहां जहां जरूरत थी वहां बांसुरी और शहनाई बजाई। ऐसे ही वक्त बीतता गया। दो साल बाद उस कलाकार को बतौर संगीत निर्देशक पहली फिल्म मिली। उस फिल्म को डायरेक्टर राजकुमार संतोषी के पिता पीएल संतोषी बना रहे थे। अफसोस वो फिल्म पूरी नहीं हो सकी। जाहिर है लोग उस कलाकार की प्रतिभा को जान नहीं पाए। ऐसे ही गुमनामियों के दौर में जी रहे उस कलाकार की किस्मत कुछ तब चमकी जब उसकी मुलाकात जाने माने निर्देशक वी शांताराम से हुई।

वी शांताराम ने उस कलाकार के साथ दो फिल्में की। पहली ‘सेहरा’ और दूसरी ‘गीत गाया पत्थरों ने’। सेहरा फिल्म का संगीत खूब पसंद किया गया। फिल्म के लगभग सभी गाने खूब चले। हसरत जयपुरी के लिखे गीत पंख होते तो उड़ आती रे रसिया ओ बालमा’, तकदीर का फसानाऔर तुम तो प्यार हो सजनीको लोगों ने खास तौर पर खूब सराहा। इस फिल्म के बाद ही जाकर कहीं लोग जान पाए कि फिल्म इंडस्ट्री में रामलाल नाम के एक संगीतकार भी हैं जो करीब बीस साल से काम कर रहे हैं। अगले ही साल वी शांताराम ने फिल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने’ बनाई। इस फिल्म के साथ ही अभिनेता जितेंद्र ने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत की थी। इस फिल्म के साथ ही वी शांताराम ने अपनी बेटी राजश्री को भी लॉन्च किया था। राजश्री वी शांताराम की दूसरी पत्नी जयश्री से उनकी औलाद थीं। बाद में उन्होंने जानवर और ब्रह्मचारी जैसी फिल्मों में भी अभिनय किया। इस फिल्म में जितेंद्र ने एक ऐसे मूर्तिकार का रोल निभाया था जो अभिनेत्री को देख देखकर मूर्तियां बनाता था। इस फिल्म में भी वी शांताराम ने संगीत निर्देशक का जिम्मा रामलाल को ही दिया। गीत एक बार फिर हसरत जयपुरी के ही लिखे हुए थे। गीत गाया पत्थरों ने फिल्म के टाइटिल सॉन्ग  को संगीतकार रामलाल ने शास्त्रीय राग दुर्गा पर कंपोज किया जो उस दौर में काफी हिट हुआ। कहा जाता है कि पंख होते तो उड़ आती रे के बाद ये गाना हिट हुआ तब फिल्म इंडस्ट्री ने संगीतकार रामलाल के असली हुनर को पहचाना।

इस राग की कहानी एक संगीतकार के बहाने से निकली है तो आपको बता दें कि गीत गाया पत्थरों ने की कामयाबी के बाद संगीतकार रामलाल ने दो तीन फिल्में की, एक फिल्म बनाने की कोशिश भी की लेकिन तब तक शायद बहुत देर हो चुकी थी। उनकी किस्मत ने साथ देना बंद कर दिया था। लिहाजा वो हमेशा गुमनामी के अंधेरे में ही रहे। कुछ ऐसी ही कहानी इससे पहले 1960 में आई फिल्म बंजारन की भी है। फिल्म ‘बंजारन’ में संगीतकार परदेसी ने भी एक गाने की धुन राग दुर्गा पर तैयार की थी। इस गाने को लता मंगेशकर और मुकेश ने गाया था। ‘चंदा रे मोरी पतिया ले जा’। अफसोस की बात ये है कि रामलाल की तरह ही फिल्मी दुनिया में संगीतकार परदेसी को भी कम ही पहचान मिल पाई। दिलचस्प बात ये है  कि संगीतकार रामलाल और परदेसी के बाद के संगीतकारों को इसी राग पर कंपोज किए गए गानों के लिए जमकर तारीफ मिली। हैं। 1964 में आई फिल्म ‘जिद्दी’ का गाना-  रात का समा झूमे चंद्रमा और 1967 में आई फिल्म ‘मिलन’ का गाना- सावन का महीना पवन करे शोर  इन गानों के संगीतकारों लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और एसडी बर्मन को बाद में फिल्म इंडस्ट्री में जबरदस्त कामयाबी मिली। राग दुर्गा बहुत ही मधुर राग है। इस राग में जो भी गाने बने हैं बहुत की कर्णप्रिय बने हैं। याद कीजिए रफी साहब का गाया हुआ ओ दूर के मुसाफिर, मन्ना डे का गाया- फिर कहीं कोई फूल खिला। शास्त्रीय संगीतकारों को भी राग दुर्गा बहुत प्रिय है। बनारस घराने की गायक जोड़ी पंडित राजन मिश्र और साजन मिश्र एकताल में बनी राग दुर्गा की बहुत खूबसूरत रचना गाते हैं- जय जय जय दुर्गे माता भवानी. शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां  साहब भी राग दुर्गा बड़े मन से बजाते थे। पाकिस्तान में उस्ताद फतेह अली की गाई दुर्गा खूब सुनी जाती है।

आइए अब आपको राग दुर्गा के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग दुर्गा का जन्म बिलावल थाट से हुआ है। इसमें ‘ग’ और ‘नी’ वर्जित है। इस राग की जाति औडव-औडव है। इस राग का वादी स्वर ‘ध’ और संवादी स्वर ‘रे’ है। इस राग में लगने वाले सभी स्वर शुद्ध हैं। इसे रात के दूसरे पहर में गाया बजाया जाता है। इस राग का आरोह अवरोह देखिए

आरोहसा रे म प ध सा

अवरोहसा ध प म रे सा

पकड़, म रे S , प ध म S रे, सा रे S ध सा

वैसे इस राग के वादी संवादी स्वरों को लेकर दो विचारधाराएं भी हैं। दूसरी विचारधारा के मुताबिक इस

राग में ‘म’ वादी और ‘सा’ संवादी है। शास्त्रीय गायकों में जयपुर अतरौली घराने के महान कलाकार मल्लिकार्जुन मंसूर और पंडित कुमार गंधर्व की आवाज में राग दुर्गा खूब सुना जाता है।

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