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आवाज़ की दिलकशी क्या चीज़ होती है, ये जानना है तो पीनाज़ मसानी को सुनिए. सुरों की जो मस्ती, जो लरज़ और जो जवानी पीनाज़ की आवाज़ में मिलती है वो अपने आप में नायाब है. उनकी गायकी में एक शोख़ी है, एक मादक-सा मींड है जो बरबस ही ओ पी नैय्यर की याद दिलाता है. पीनाज़ ने ओ पी नैय्यर के लिए भी कई गीत गाए हैं. लेकिन पीनाज़ मसानी की प्रतिभा को सबसे पहले पहचाना था संगीतकार जयदेव ने. पीनाज़ शुरुआती दिनों का ये गीत सुनिए.

पीनाज़ पारसी परिवार से आती हैं. उन्हें आवाज़ का ये लगाव, बोलों के कहन का ये ख़ास तरीका और उर्दू ज़बान की ऐसी उम्दा आदायगी कहां से मिली? पीनाज़ के पिता शास्त्रीय संगीत के जानकार थे. बड़ौदा के राजा सायाजीराव गायकवाड़ के यहां दरबारी गायक थे. उन्होने ही बेटी को गायकी के लिए प्रोत्साहित किया. वही पीनाज़ के पहले गुरु बने. लेकिन पीनाज़ की गायकी को निखारा अपने ज़माने की मशहूर ग़ज़ल गायिका मधुरानी ने. मधुरानी की शागिर्दी में पीनाज़ ने ग़ज़ल गायकी का एक अलग अंदाज़ सीखा. मधुरानी को सुनिए तो पता चलता है कि पीनाज़ ने कितनी लगन के साथ अपनी गुरु को अपने गले में उतारा है.

अस्सी के दशक में जब ग़ज़ल प्रेमियों के दिलों पर बेग़म अख़्तर, मेहदी हसन, ग़ुलाम अली और जगजीत सिंह जैसे धुरंधर राज कर रहे थे, उन्हीं दिनों ग़ज़ल गायकों की एक नई पीढ़ी अपनी ज़मीन तैयार कर रही थी- तलत अज़ीज़, पंकज उधास, हरिहरन. भजनों के लिए मशहूर अनूप जलोटा भी ग़ज़ल गायकी में हाथ आज़मा रहे थे. उसी दौर में पीनाज़ मसानी को पहली बार नोटिस किया गया. बेस्ट चाइल्ड सिंगर का अवॉर्ड तो पीनाज़ 1976 में ही जीत चुकी थीं लेकिन उनका पहला अलबम आया 1981 में. अब तक पीनाज के बीस से ज्यादा अलबम आ चुके हैं. सिंगर और प्लेबैक सिंगर के तौर पर पीनाज़ मसानी ने आर डी बर्मन, बप्पी लाहिड़ी, जयदेव,  उषा खन्ना जैसे ढेर सारे संगीतकारों के साथ काम किया है. उन्होने ने दस से ज्यादा भाषाओं में गीत गाए हैं और पचास से ज्यादा फिल्मों में अपनी आवाज़ दे चुकी हैं.

पीनाज़ मसानी बला की ख़ूबसूरत भी हैं. नब्बे के दशक का वो दौर याद कीजिए जब दूरदर्शन के ब्लैक एंड व्हाइट स्क्रीन पर ‘सीपीसी प्रस्तुत करते हैं’ सीरीज़ में गीतों-ग़ज़लों का प्रसारण होता था. घुंघराले बालों वाली, चमकती मुस्कुराहट वाली पीनाज़ मसानी को गाते हुए देखना-सुनना अपने आप में अनोखा अनुभव होता था. एक इंटरव्यू में पीनाज़ ने बताया था कि एक बार अभिनेता देव आनंद ने उन्हें स्क्रीन टेस्ट देने को कहा था. उन्होने पिता को ये बात बताई तो पिता नाराज़ हुए. कहा गाने पर ध्यान दो, एक्टिंग के बारे में सोचना भी मत.

पीनाज़ मुंबई यूनिवर्सिटी से पढ़ी-लिखी हैं और वहीं रहती हैं. उनके फ़न को कई ख़िताबों से नवाज़ा जा चुका है. उत्तर प्रदेश सरकार ने 1996  में पीनाज़ को ‘शहज़ादी-ए-तरन्नुम’ का ख़िताब दिया था. 2002 में उन्हें संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए 11 वें कलाकार अवॉर्ड से सम्मानित किया गया. साल 2009 में भारत सरकार ने पीनाज़ को पद्मश्री से नवाज़ा.

हिंदुस्तानी संगीत की परंपरा को लेकर पीनाज़ का समर्पण काबिल-ए-तारीफ़ है. ग़ज़ल की दुनिया में जहां पुरुषों का दबदबा है पीनाज़ अपनी पीढ़ी की शायद अकेली ऐसी गायिका हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में ऐसा ऊंचा मुकाम हासिल किया है.  फेमिना मैगज़ीन की ओर से उन्हें ‘वुमन ऑफ़ मेटल’ सम्मान दिया जा चुका है. आईसीसीआर की तरफ से पीनाज ने दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी, नाइजीरिया, घाना, सेनेगल, वियतनाम  और मॉरिशस समेत दुनिया के तमाम देशों में प्रस्तुतियां दी हैं और उनका संगीतमय सफ़र आज भी जारी है.

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