आपने फर्स्ट ऑटोग्राफ कब और कहां दिया था और उस समय आपकी उम्र क्या रही होगी?
‘मेरी आवाज सुनो’ से पहले 1994 का एक ‘टूयर’ भी मुझे अच्छी तरह याद है। 1996 में ‘मेरी आवाज सुनो’ से पहले 1994 में मैं अमेरिका के एक ‘टूयर’ पर गई थी। तब मेरे पास अपना कोई गाना भी नहीं था। वो अमिताभ बच्चन साहब का ‘टूयर’ था। दरअसल अमिताभ जी कल्याण जी आनंद जी भाई के संपर्क में थे। मैं कल्याण जी-आनंद जी भाई के ग्रुप में थी ही। हम ‘लिटिल वंडर्स’ नाम से शो किया करते थे। कल्याण जी आनंद जी भाई के पास भी मैं इसीलिए थी कि हम कुछ सीखें लेकिन लगातार शो होते थे। यही वजह थी कि वहां सीखना नहीं हो पाया हां शो खूब हुए। उसी दौरान अमिताभ जी का ‘टूयर’ आया तो कल्याण जी भाई ने मुझसे कहाकि वो चाहते हैं कि उस ‘टूयर’ के लिए मैं जाऊं। उस ‘टूयर’ में अमिताभ जी थे, अनिल कपूर थे, श्रीदेवी जी थीं। ये ‘टूयर’ भी पूरे 45 दिन का था। मैं इस बात से बहुत ‘एक्साइटेड’ थी कि मुझे अमेरिका जाना है। मैं उस कार्यक्रम की ‘ओपनिंग’ करती थी। उस ‘टूयर’ में अकेली गाने वाली थी बाकि सभी स्टार थे। अमिताभ जी की ‘स्टेज’ पर ‘एंट्री’ से पहले मुझे गाना होता था। फिर अमिताभ जी स्टेज पर आते थे। उन 45 दिनों तक हम लोग साथ ही ‘ट्रैवल’ करते थे। अमिताभ जी मुझे बहुत प्यार करते थे। हम लोग खूब बातें करते थे। साथ खाना खाते थे। मुझे उस कार्यक्रम में बहुत अच्छा ‘रिस्पॉन्स’ मिलता था। मुझे जहां तक याद है कि मैंने अपना पहला ‘ऑटोग्राफ’ भी उसी ‘टूयर’ में दिया था। वहीं पर लोगों ने मेरे साथ फोटो भी खिंचाई थी।
आप बगैर संगीत सीखे इतना अच्छा गाती हैं तो क्या कभी आपको ऐसा लगता है कि कुछ शास्त्रीय संगीत भी सीखना चाहिए?
इसके बाद पिछले करीब 20 साल बड़ी तेजी से गुजरे। फिल्म इंडस्ट्री में मेरा करियर आगे बढ़ चुका था। लेकिन एक बात थी जिसकी मुझे कमी लगती थी। मेरा मन करता था कि मैं पारंपरिक तरीके से संगीत सीखूं। अब भी मेरा यही मन करता है लेकिन उस समय कुछ ऐसा हुआ कि पारंपरिक तरीके से सीखना हो नहीं पाया। बस जो मैं खुद से सीख सकी वही सीख पाई। खूब गाने सुन सुनकर। सच पूछिए तो मैं आज भी इस इंतजार में हूं कि मुझे वक्त मिले तो मैं अच्छी तरह से संगीत सीखूं और ये मेरा अपने आप से वायदा है कि मैं ऐसा करूंगी, जरूर करूंगी। मुझे याद है कि कई मौकों पर बड़े बड़े कलाकारों ने मुझसे कहाकि उन्हें इस बात से ताज्जुब होता है कि मैं बगैर सीखे इतना अच्छा गाती हूं। मैंने हमेशा इस बात को बड़ी सहजता से लिया। उस दौर में मैंने कुमार सानू दादा, उदित जी, कविता जी, अलका जी, साधना जी जैसे स्थापित कलाकारों के साथ काम किया। इन सभी बड़े कलाकारों के साथ मैं ‘स्टेज शो’ भी कर चुकी थी। इन सभी लोगों ने मुझे हमेशा बहुत प्यार दिया। मुझे कभी नहीं लगा कि इन लोगों को इस बात से कोई तकलीफ है कि मैंने गाना नहीं सीखा। यहां तक कि ‘मस्त’ के लिए संदीप चौटा जी से मुझे सोनू निगम जी ने मिलवाया था। सोनू जी मुझे दिल्ली के दिनों से जानते थे। उन्हें पता था कि मैं आदेश जी के लिए एक फिल्म में गा चुकी हूं। उन्होंने मुझे संदीप जी से मिलवाया था। वो मस्त के लिए संदीप के साथ पहले से ही काम कर रहे थे और संदीप को उस फिल्म के लिए एक नई आवाज की तलाश भी थी।
बीड़ी जलाई ले से लेकर शीला की जवानी तक आपने कई आइटम सॉन्ग्स भी गाए हैं तो आपको इस तरह के गाने कैसे मिले?
ये मेरी खुशकिस्मती ही थी कि उस दौर में मुझे कलाकारों से बहुत प्यार मिला। कविता जी तो मुझे बहुत प्यार करती हैं। आशा जी के लिए भी मैं यही कहूंगी। लता जी का आशीर्वाद तो मुझे शुरू से ही मिला था। मुझे किसी ने कभी बताया नहीं लेकिन मुझे हमेशा लगता है कि इन कलाकारों ने मेरी बड़ी मदद की। इसी दौरान एक रोज रोजमर्रा की तरह ही दिन गुजर रहा था जब विशाल भारद्वाज जी का मेरे पास फोन आया। उन्होंने कहाकि एक बहुत बढ़िया गाना है, गुलजार साहब ने लिखा है। विशाल जी के साथ मैं पहले भी काम कर चुकी थी। मैं स्टूडियो पहुंची। मैंने गाना सुना। उस गाने को लिखा। उसके बाद जैसा आम तौर पर होता है कि आप स्टूडियो में बैठकर गाने पर बात करते हैं। हम लोग गाने की तारीफ कर रहे थे कि गुलजार साहब ने क्या खूब लिखा है। बाद में वो गाना पूरी दुनिया को इतना पसंद आया कि पूछिए मत। फिर मैं माइक पर गई। मैंने गाना गाया। गाना गाकर जब मैं बाहर निकली और हमने गाना सुना तो ये विश्वास हर किसी के चेहरे पर दिखाई दे रहा था कि ये गाना ‘सुपरहिट’ होने वाला है। ये गाना था ‘बीड़ी जलइले जिगर से पिया जिगर में बड़ी आग है’। ऐसे ही विशाल शेखर मेरे दोस्त हैं। उनके साथ मैंने काफी काम किया है। एक रोज फराह खान का फोन आया। उन्होंने अपनी पहली फिल्म में भी मुझसे गाना गवाया था। फराह ने कहाकि एक गाना है सुनिधि, बड़ा रॉकिंग गाना है, तुझे गाना है। मैं स्टूडियो पहुंची, मैंने गाना देखा। उस गाने को गाने में मुझे भी बड़ा मजा आया। गाने के ‘लिरिक्स’ बड़े मजेदार थे। इस तरह मैंने वो ‘शीला की जवानी’ गाया। जो गाना कितना हिट हुआ ये हर कोई जानता ही है। सच कहूं तो इन गानों को गाने के पीछे कोई ऐसी कहानी नहीं है लेकिन ये गाने बहुत पसंद किए गए। असल में जब कोई म्यूजिक डायरेक्टर गाना बनाता है तो उस ‘ट्रैक’ को उसे किस तरह सजाना है ये उसका काम होता है। वो किसी गायक का ‘डिपार्टमेंट’ नहीं होता है। गायक का काम होता है कि उस गाने को अच्छी तरह समझे और पूरी ‘फीलिंग’ के साथ गाए। मैंने अपने सभी गानों के साथ यही काम किया है।