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जाने-माने गायक मुकेश को कौन नहीं जानता। उन्होंने सैकड़ों सुपरहिट गाने गाए हैं। लंबे समय तक वो शोमैन राज कपूर की आवाज थे। लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने दो फिल्में प्रोड्यूस भी की थीं। इन्हीं में से एक फिल्म थी- मल्हार। जो उन्होंने पचास के दशक में बनाई थी। दूसरी फिल्म उन्होंने 1956 में बनाई, जिसका नाम था- अनुराग। फिल्म मल्हार के डायरेक्टर थे-हरीश। हरीश ने कई फिल्मों में अभिनय भी किया था। फिल्म के संगीत का जिम्मा रोशन साहब का था। फिल्म के गीतकार थे इंदीवर और कैफ इरफानी। इंदीवर के लिए भी ये करियर की शुरूआत ही थी। जैसा कि फिल्म के नाम से ही जाहिर है कि इसके संगीत पक्ष को तबियत से सवारना था। संगीतकार रोशन ने विधिवत शास्त्रीय संगीत सीखा था, वो भी उस्ताद अलाउद्दीन खान साहब से। यही वजह थी कि बाद में उन्होंने अपने फिल्मी संगीत में भी ना सिर्फ शास्त्रीय संगीत का इस्तेमाल किया बल्कि उसे बहुत खूबसूरती से निभाया भी। दिलचस्प बात ये है कि फिल्म संगीत में ये रोशन का दूसरा ही साल था। फिल्म मल्हार से पहले उन्होंने इक्का दुक्का फिल्मों में ही संगीत दिया था। ऐसे में उन्हें खुद को साबित करना था। उन्होंने फिल्म मल्हार के लिए एक गीत तैयार किया। गीत के बोल थे- गरजत बरसत भीगत। इस गाने को लता मंगेशकर को गाना था। दरअसल ये गाना रोशन साहब ने शास्त्रीय राग गौड़ मल्हार की जमीन पर तैयार किया था। फिल्म का नाम मल्हार था इसलिए शायद ये राग उनके दिमाग में आया होगा। ये गाना बाद में लता मंगेशकर के पसंदीदा गानों में था। रोशन साहब के लिए गाए गए गानों में वो इस गाने को हमेशा याद करती हैं।

इस फिल्म के और भी गानों को काफी पसंद किया गया। जिसमें एक गाना “बड़े अरमान से रखा है सनम तेरी कदम प्यार की दुनिया में ये पहला कदम” बहुत लोकप्रिय हुआ था। राग गौड़ सारंग संगीतकार रोशन साहब के पसंदीदा रागों में से था। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने और भी कुछ फिल्मों में इसी राग की जमीन पर गाने तैयार किए थे। इसमें साल 1963 में रिलीज हुई फिल्म-ताजमहल का गाना- जुर्म-ए-उल्फत पे हमें लोग सज़ा देते हैं शामिल है। इस गाने को भी लता मंगेशकर ने ही गाया था। गजल नुमा इस गीत के संगीत में रोशन साहब की एक अलग छाप दिखती है। इसके बाद 1967 में रिलीज हुई फिल्म नूरजहां का गाना ‘शराबी शराबी ये सावन का मौसम’ में भी रोशन साहब और राग गौड़ सारंग की ही जोड़ी थी। इस गाने को सुमन कल्याणपुर ने गाया था। 1968 में एक और फिल्म आई थी- आशीर्वाद। इस फिल्म को ऋषिकेश मुखर्जी साहब बना रहे थे। फिल्म में अशोक कुमार और संजीव कुमार जैसे कलाकार थे। इस फिल्म को बहुत तारीफ मिली थी। इस फिल्म का संगीत वसंत देसाई ने तैयार किया था। उन्होंने भी इस फिल्म में एक गाना राग गौड़ मल्हार की जमीन पर तैयार किया था- झिर झिर बरसे सावनी अंखियां। इस फिल्म के गीत गुलजार साहब ने लिखे थे। गौड़ मल्हार की खासियत ये है कि जितना ये सुगम संगीत में सजता है उतना ही खयाल गायकी में भी खिलता है।  शास्त्रीय मंचों पर इस राग को खूब गाया बजाया जाता है। हालांकि संगीत के विद्वान भी मानते हैं कि इस राग  को बरतना काफी कठिन है। जैसा कि नाम से ही जाहिर इस राग को राग गौड़ और राग मल्हार के मिश्रण से तैयार किया गया है। ये राग मल्हार के कई प्रकारों में से एक प्रकार है। ये एक तरह का मौसमी राग है। जिसे बारिश के मौसम में खूब गाते बजाते हैं।

आइए आपको राग गौड़ मल्हार के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग गौड़ मल्हार की उत्पत्ति खमाज थाट से है। इस राग का वादी स्वर ‘म’ और संवादी स्वर ‘सा’ है। इस राग की जाति संपूर्ण संपूर्ण है। राग गौड़ मल्हार में सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। अवरोह में ‘ध’ के साथ कोमल ‘नी’ का प्रयोग किया जाता है। इस राग को गाने बजाने का समय रात का दूसरा पहर है। कुछ लोग इसे काफी थाट का राग भी मानते हैं। लेकिन प्रचलित तौर पर राग गौड़ मल्हार को खमाज थाट का राग ही माना गया है। आइए आपको इस राग का आरोह अवरोह और पकड़ बताते हैं।

आरोह- सा, रे ग रे म ग रे सा, रे म प, ध नी सां

अवरोह- सां, नी प म, ग म रे सा

पकड़- रे ग रे म ग रे सा, रे प, म प ध सां ध प म

राग के शास्त्रीय पक्ष को जानने के लिए आप ग्वालियर घराने के दिग्गज कलाकार पंडित डीवी पलुस्कर, आगरा घराने के उस्ताद फैयाज खां, विश्वविख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान साहब का बजाया राग गौड़ मल्हार सुन सकते हैं।

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