आपको राग कामोद के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग कामोद की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी जाती है। इसमें दोनों मध्यम प्रयोग होते हैं। इस राग में बाकि सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस राग की जाति वक्र संपूर्ण है। राग कामोद में वादी स्वर ‘प’ होता है जबकि संवादी स्वर ‘रे’ होता है। इस राग को गाने बजाने का समय रात का पहला प्रहर माना गया है। इस राग में ‘रे’ और ‘प’ की संगति बार बार दिखाई जाती है। इस राग में तीव्र ‘म’ का प्रयोग सिर्फ आरोह में पंचम के साथ किया जाता है। इस राग का आरोह अवरोह और पकड़ जान लेते हैं।
आरोह– सा, (म) रे प, म (तीव्र) प, ध प नी ध सां
अवरोह– सां नी ध प, म(तीव्र) प ध प, ग म प ग म रे सा
पकड़– (म) रे प, ग म प ग म रे सा, (म) रे प
आपने गौर किया होगा कि इस राग के आरोह अवरोह में एक ‘ब्रैकेट’ के भीतर (म) लिखा हुआ है। आइए आपको इसका मतलब भी बताते हैं। दरअसल राग कामोद में ‘रे’ और ‘प’ की संगति बार बार दिखाई जाती है। ‘रे’ और ‘प’ की संगति दिखाते वक्त ‘रे’ पर ‘म’ का कण लगाकर प पर जाते हैं। इस राग को राग हमीर के आस पास का राग माना जाता है।