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आपको राग काफी के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग काफी की रचना काफी थाट से

मानी गई है। बिलावल और कल्याण राग की तरह ही ये भी अपने थाट का आश्रय राग है। इसमें ‘ग’ और ‘नी’ कोमल जबकि बाकि सभी शुद्ध स्वर लगते हैं। राग काफी में ‘प’ वादी और ‘रे’ संवादी है। इस राग की जाति संपूर्ण-संपूर्ण है। राग काफी को गाने का समय मध्यरात्रि माना जाता है।  ये राग सिंदूरा के करीब का राग माना जाता है। राग काफी का आरोह अवरोह देखिए

आरोहसा रे म प ध नी सां

अवरोहसां नी ध प म रे सा

पकड़रे प म प रे, म म प S

जैसा कि हम आपको बता चुके हैं राग काफी में होली का जिक्र किया जाता रहा है। इसी राग में पंडित

छन्नू लाल मिश्रा की गाई एक होरी बहुत लोकप्रिय है। जिसके बोल हैं-रंग डारूंगी डारूंगी।

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