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खयाल, ठुमरी, दादरा, भजन, अभंग, संस्कृत के स्तोत्र और श्लोक गायन में महारत. शास्त्रीय रागों पर खुद की बनाई बंदिशों की दो किताबें, अनगिनत भक्ति रचनाओं का संगीत. और साथ में माइक्रो बायोलोजी में मास्टर डिग्री और बायो केमिस्ट्री में डॉक्टरेट. इन सारी खासियतों को एक शख्सियत में समेट दें तो बनती हैं जयपुर अतरौली घराने की परंपरा से आनेवाली शास्त्रीय गायिका अश्विनी भिडे देशपांडे. आज के दौर में अश्विनी जैसा विस्तृत एकेडमिक प्रोफाइल और साथ ही अपनी मधुर गायकी से पूरे विश्व में जगह बनानेवाला शायद ही कोई दूसरा संगीतकार हो.

साल 1960 में मुंबई में संगीत प्रेमियों के परिवार में पैदा हुईं अश्विनी. पीढ़ियों से परिवार में संगीत का संस्कार चला आ रहा था. अश्विनी की मां श्रीमती मानिक भिडे खुद किशोरी अमोनकर जी की शिष्या हैं. तो बचपन से ही अश्विनी के कानों रागों की मिठास घुलने लगी. सुरों की शुरुआती शिक्षा तो पंडित नारायणराव दातार से मिली, लेकिन इसके बाद मां मानिक भिडे ने कड़े अनुशासन में जयपुर-अतरौली घराने की गायकी की तालीम शुरू की. सोलह साल की उम्र में अश्विनी ने गंधर्व महाविद्यालय से संगीत विशारद पूरा किया. उनकी गायकी की चमक पहली बार नोटिस की गई 1977 में जब ऑल इंडिया रेडियो संगीत प्रतियोगिता में अश्विनी को राष्ट्रपति से गोल्ड मेडल मिला.

1985 में एचएमवी से अश्विनी भिडे का पहला अलबम निकला. उसके बाद तो अब तक सोनी म्यूजिक, टाइम्स म्यूजिक, म्यूजिक टुडे, रिदम हाउस, नवरस जैसे ब्रांड्स से अनगिनत रिकॉर्ड्स निकल चुके हैं. अश्विनी भिडे ने अपने संगीत सफर को सिर्फ गायकी तक सीमित नहीं रखा. उन्होंने शास्त्रीय, उप शास्त्रीय और भक्ति रचनाएं भी कीं. अक्टूबर 2004 में अश्विनी की बनाई बंदिशों की किताब आई- राग राचनांजलि. 2012 में राग रचनांजलि-पार्ट टू भी प्रकाशित की गई. ये दोनों किताबें सगीत के विद्यार्थियों के बीच खासी लोकप्रिय हैं.

गुरु पंडित रत्नाकर पई का अश्विनी के संगीतमय सफर में अहम रोल है. पंडित रत्नाकर पई को अश्विनी बचपन से ही जानती थीं क्योंकि वो अश्विनी घर के पास ही रहते थे. जब अश्विनी ने खुद बंदिशें बनाने की कोशिश शुरू की उसी दौरान उनकी पंडित रत्नाकर पई जी से मुलाकात हुई. पंडित रत्नाकर पई की बनाई बंदिशें देखकर अश्विनी बहुत प्रभावित हुईं. अश्विनी ने उन्हें अपनी बनाई बंदिशें दिखाईं तो बहुत तारीफ और प्रोत्साहन मिला. इसके बाद अश्विनी पंडित रत्नाकर पई से भी मार्गदर्शन लेने लगीं, उनके कार्यक्रमों में बराबर जाने लगीं.

अश्विनी का पढ़ाई लिखाई का सफर भी बहुत दिलचस्प है. संगीत शिक्षा के साथ अश्विनी भिडे ने मुंबई यूनिवर्सिटी के भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर से माइक्रो बायोलोजी में मास्टर डिग्री ली, बायो केमिस्ट्री में डॉक्टरेट किया, लेकिन संगीत से इतना लगाव था कि गाने को ही फुल टाइम करियर बना लिया. भीमसेन जोशी, पंडित जसराज, कुमार गंधर्व और किशोरी अमोनकर को सुनते हुए अश्विनी बड़ी हुईं. केसर बाई और मोगू बाई को भी खूब मन से सुना. इसीलिए उनकी गायकी में बुजुर्गों के चमत्कारी संगीत की गूंज है.

राग की भावपूर्ण प्रस्तुति, राग के व्याकरण के अंदर रहते हुए उसमें सुरों का सौंदर्य पैदा करना अश्विनी की खासियत है. इसीलिए उनकी गायकी में शास्त्रीयता के साथ पूरा न्याय भी होता है और राग का पूरा रस भी. हर प्रस्तुति में वो राग की गराइयों में उतरने की कोशिश करती हैं. शास्त्रीय रागों के साथ ठुमरी दादरा, भजन, अभंग खूब मन से गाती हैं. संस्कृत पर कमांड है, स्तोत्र और श्लोक भी गाती हैं. बहुत सी भक्ति रचनाएं उन्होंने खुद कंपोज की हैं

अश्विनी की उपलब्धियों की फेहरिस्त लंबी है. साल 2014 का अश्विनी भिडे देशपांडे को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार मिला. 2005 में राष्ट्रीय कुमार गंधर्व सम्मान से नवाजी गईं. 2011 में महाराष्ट्र सरकार का सांस्कृतिक पुरस्कार मिला. 2010 में सह्याद्रि दूरदर्शन की तरफ से संगीत रत्न अवॉर्ड दिया गया. पंडित मल्लिकार्जुन मंसूर अवॉर्ड और पंडित जसराज गौरव पुरस्कार जैसे अनगिनत अवॉर्ड हासिल कर चुकी अश्विनी पूरे मनोयोग से संगीत की सेवा कर रही हैं

आज अश्विनी भिडे देशपांडे देश के व्यस्ततम और सर्वाधिक लोकप्रिय गायिकाओं गिनी जाती हैं. दुनिया भर में दौरे करती रहती हैं. आकाशवाणी और दूरदर्शन की टॉप ग्रेड आर्टिस्ट हैं. स्कूल कॉलेज और संगीत सभाओं में वो लेक्चर डेमॉन्सट्रेशन करती रहती हैं. साथ ही अपने शिष्यों को जयपुर घराने की गायकी की बारीकियां सिखा रही हैं. अश्विनी भिडे देशपांडे हिंदुस्तानी संगीत के फलक पर ऐसे ही जगमगाती रहें- यही दुआ है.

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