क्या आपने मुंंबई आते ही गाना गाना शुरु कर दिया था या फिर आपको स्ट्रग्ल करना पड़ा, मुंबई में आपका सफर कैसे शुरु हुआ
मुंबई पहुंचने के बाद मैं शुरूआत में पेइंग गेस्ट के तौर पर रहती थी। इसी दौरान मेरे पिता जी की पोस्टिंग भारत से बाहर हो गई। उन्हें स्विटजरलैंड भेजा गया। पापा ने जाने से पहले मुंबंई में एक घर खरीदा। हम अपने घर में ‘शिफ्ट’ हो गए। मैंने सेंट जेवियर ज्वाइन कर लिया। वहां मैं गाने लगी। इसी दौरान मेरे भैया के कुछ दोस्त जो अक्सर दिल्ली में हमारे घर आते थे उनसे मुलाकात हुई। वो सब ‘एडवर्टाइजिंग’ की दुनिया में आ गए थे। उनका नाम विजय था, वो गुरूदत्त साहब के सबसे छोटे भाई थे। मैं उन्हें राखी बांधती थी और विजय अन्ना बुलाती थी। उन्होंने ही सेंट जेवियर्स में मेरे एडमिशन में मदद की। उन्होंने कहाकि मैं बहुत सारे जिंगल्स करता रहता हूं। तुम मेरे लिए जिंगल्स गाओ। इससे तुम्हें पैसे भी मिलने लगेंगे। पहला जिंगल जो मैंने उनके लिए गाया उसे हिंदी में गीता दत्त जी गा रही थीं। जो उनकी भाभी भी थीं। उसी जिंगल को मुझे तमिल में गाना था। वो अमूल का जिंगल था। मुझे याद है कि गीता दत्त जी कितनी कमाल की महिला थीं। जितनी बड़ी कलाकार उतनी नेकदिल इंसान। मैं नर्वस हो रही थी कि इनके सामने कैसे गाऊंगी। वो मेरी हालत समझ रही थीं। उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, जिसके बाद मैंने गाया। यही से मेरे प्रोफेशनल जिंगल गाने की शुरूआत हुई।
आपको मुंबई में पहली बार गाना गाने का ऑफर किसने दिया और ये मौका आपको कैसे मिला?
इसी दौरान हमारे कॉलेज में तमाम फिल्मी कलाकारों के बच्चे पढ़ते थे। अनगिनत लोग वहां मौके मौके पर चीफ गेस्ट बनकर आते रहते थे। कभी हेमंत कुमार जी आ रहे हैं, कभी वहीदा रहमान जी आ रही हैं। वहीदा जी के बच्चे तो हमारे साथ ही पढ़ते भी थे। हेमंत दा की बेटी मेरे साथ पढ़ती थी। मुझे याद है कि एक बार कॉलेज के एक कार्यक्रम में मैं गा रही थी। उस रोज अमीन सयानी साहब और हेमंत कुमार जी चीफ गेस्ट थे। कार्यक्रम खत्म होने के बाद हेमंत दा मेरे पास आए और बोले कि मैं स्टेज में शो करता हूं और मेरी बेटी को गाने का शौक नहीं है तो क्या तुम मेरे साथ स्टेज शो करने चलोगी? मैं खुशी से झूम गई मैंने तुरंत कहा बिल्कुल दादा मैं आपके साथ गाऊंगी। तब तक अमीन सयानी साहब भी आ गए। उन्होंने मुझसे कहाकि वो मुझसे मिलना चाहते हैं। उन्होंने अगले दिन कॉलेज के बाद मुझे अपने दफ्तर आने के लिए कहा।
आप मुंबई क्या सोचकर आयी थीं?
अगले दिन मामुनी मुझे अमीन सयानी जी के ऑफिस लेकर गईं। मैं आज जो भी कुछ हूं वो मामुनी की वजह से ही हूं। अमीन सयानी जी ने साफ साफ पूछा कि आप अपनी बेटी को गवा कर क्या बहुत सारे पैसे कमाना चाहती हैं? मामुनी ने कहा बिल्कुल नहीं, मुंबई आने का मकसद पैसे कमाना नहीं था। मेरी तरफ इशारा करके उन्होंने कहाकि ये लता मंगेशकर जी को भगवान मानती है। उनको सरस्वती मानती है। मैं चाहती हूं कि इसके अंदर भी कुछ वैसा ही ‘परफेक्शन’ आए। रही बात पैसे की तो अगर ये अच्छा गाएगी तो पैसे तो अपने आप आ जाएंगे। अमीन सयानी बोले मैं आपको एक आदमी का पता बताता हूं आप उनके पास जाइए, देखिए वो क्या कहते हैं। उन्होंने मुझे सी. रामचंद्र जी पास भेजा।
क्या मुंबई में आपके करियर के रास्ते खुद ब खुद बनते गए या फिर आपको इसके लिए बहुत इंतज़ार करना पड़ा?
उन दिनों सी रामचंद्र का नाम बहुत बड़ा था। वो फिल्मों में ज्यादा नहीं थे लेकिन उनका नाम बहुत बड़ा था। मैं उनके पास गई। उन्होंने बोला कि बेटा कुछ सुनाओ। मैंने डरते डरते उनको कुछ सुनाया। सुनने के बाद वो बोले कि तुम गाती तो अच्छा हो लेकिन मेरे पास 10 साल बाद आना। अभी तुम बहुत छोटी हो। उनकी बात सुनकर मामुनी थोड़ी उदास हो गईं। हम लोग वहां से लौट आए। इधर कॉलेज में मेरी पढ़ाई चलती रही। इसी बीच हेमंत दा ने क्या किया कि एक रोज सीधा मन्ना डे अंकल को फोन कर दिया। हेमंत दा ने मन्ना अंकल से कहाकि देखो एक लड़की है, जिसका बैकग्राउंड क्लासिकल म्यूजिक का है और मुझे लगता है कि वो तुम्हारे साथ बहुत अच्छा ‘ड्यूइट’ गा सकती है। आप इस लड़की को अपने प्रोग्राम में ‘ट्राई’ करो। ठीक इसी दौरान एक रोज हेमंत दा ने मुझे फोन करके पूछा कि मैं अगले दिन क्या कर रही हूं। मैंने बताया कि मैं कॉलेज जाऊंगी। बोले तुमको एक दिन कॉलेज बंक करना पड़ेगा। तुम कल राजकमल स्टूडियो पहुंच जाओ। सुबह सुबह 9.30 बजे पहुंच जाना। मैं और मामुनी बिल्कुल सही समय पर पहुंच गए। वहां हेमंत दा पहले से ही थे। उन्होंने मुझे टैगोर गीत सिखाया…मतलब दो लाइन सिखाया। फिर बोले- अब इंतजार करो। उस जमाने में संगीतकारों के साथ ‘लाइव’ गाना होता था। मैं और सारे संगीतकार स्टूडियो में इंतजार करने लगे।
आप पहली बार लता जी से कैसे मिलीं, आपको वो मौका कैसे मिला?
मैं ये तो समझ रही थी कि हम किसी बड़े व्यक्ति का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी। थोड़ी देर बाद स्टूडियो का दरवाजा खुला और उससे लता मंगेशकर दी अंदर आई। उनको देखकर मेरी हालत खराब हो गई। मैं परेशान हो गई। हेमंत दा मेरी हालत समझ रहे थे। उन्होंने मुस्कराते हुए कहाकि तुम्हें लता जी के साथ ये दो लाइन गानी है। वही दो लाइन जो उन्होंने मुझे सिखाई थी। मैं बता नहीं सकती कि उस दिन मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। मेरी सरस्वती साक्षात मेरे सामने खड़ी थीं। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं सपना देख रही हूं। उस जमाने में एक ही केबिन में खड़े होकर गाना होता था। थोड़ी ही देर में एक माइक लता जी के लिए लगाया गया और एक मेरे लिए। मैं बहुत डरी हुई थी। मुझे लग रहा था कि लता जी के सामने मैं क्या गाऊंगी। डर के मारे रिहर्सल में मैं अपनी लाइन तक भूल गई। लता जी मेरी तरफ देखा और मुस्करा दिया। तभी कान में दादा की आवाज आई, क्या हुआ तुम भूल गई या डर गई। मैं जवाब तक नहीं दे पा रही थी। फिर हेमंत दादा बोले अब फाइनल टेक करेंगे। ‘टेक’ हो भी गया। बाद में मुझे पता चला कि वो एक बांग्ला फिल्म का गाना था। मैं आज तक यकीन नहीं कर पाती हूं कि माइक के सामने मेरा पहला गाना लता जी के साथ था।