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ये कहानी तब की है जब साल 2017 बीत रहा था। साल 2017 के बड़े विवादों में एक विवाद फिल्म इंडस्ट्री से भी जुड़ा रहा। उस विवाद के बारे में आप भी जानते होंगे। संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘पदमावती’ को लेकर विवाद काफी समय तक गरम रहा था। कर्णी सेना पूरे देश में इस फिल्म को लेकर विरोध कर रही थी। फिल्म की रिलीज पर भी संकट के बादल थे। देश के बाहर भी ‘डिस्ट्रीब्यूटर्स’ फिल्म को लेकर आशंकित थे। फिल्म सेंसर बोर्ड, मंत्रालय से लेकर फिल्म इंडस्ट्री के तमाम बड़े नाम इस विवाद में कूद चुके थे। फिल्म मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पदमावत पर आधारित थी। फिल्म में दीपिका पादुकोण, शाहिद कपूर और रणवीर सिंह मुख्य भूमिका में थे। फिल्म के प्लॉट में अलाउद्दीन खिलजी और पदमावती के संबंध हैं और इन दोनों को लेकर फिल्माए गए सीन्स को लेकर घनघोर विवाद चला था। खैर, विवाद फिल्म के एक गीत- घूमर को लेकर था। जो दीपिका पादुकोण पर फिल्माया गया था। इस गाने में दीपिका पादुकोण ने राजस्थान का पारंपरिक लोकनृत्य किया था। इस गाने को श्रेया घोषाल ने गाया है। गाना चित्तौड़गढ़ के किले में शूट किया गया था। इस गाने को लेकर बवाल इसलिए था क्योंकि कर्णी सेना का कहना है कि इस गाने में जिस तरह एक क्षत्राणी को खुलेआम नृत्य करते दिखाया गया है वो परंपरा के खिलाफ है। इसके अलावा इस गाने में जिस तरह की पोशाक दीपिका पादुकोण ने पहनी है उसके खुलेपन को लेकर भी खूब विरोध हो रहा है। तमाम विरोध के बाद भी इस गाने को रिलीज किया गया था। जिसके करोड़ों लोगों ने देखा। खैर, चलिए ये तो हुआ विवाद का प्रसंग। अब अपनी राग पर आते हैं। ये गाना शास्त्रीय राग वृंदावनी सारंग पर आधारित है

राग वृंदावनी सारंग की जड़ में हमारे लोकसंगीत की खुशबू है जो आपको घूमर गाने को सुनकर आसानी से समझ आ रही होगी। राग वृंदावनी सारंग के आधार पर इससे पहले भी कई लोकप्रिय गाने कंपोज किए गए हैं। गुजरे जमाने का एक ऐसा ही गाना फिल्म-नागिन का है। 1954 में रिलीज हुई इस फिल्म का संगीत जाने माने कलाकार हेमंत कुमार ने दिया था। इस फिल्म का ये गीत लोगों की जुबां पर आज भी है, जो राग वृंदावनी सारंग पर ही आधारित है। जिसके बोल थे- जादूगर सैयां छोड़ मोरी बहियांइसके अलावा राग वृंदावनी सारंग पर पचास से लेकर नब्बे के दशक में कई फिल्मी गाने कंपोज किए गए। राग वृंदावनी सारंग पर आधारित फिल्मी गानों में 1943 में रिलीज फिल्म- तानसेन का घटा घनघोर, 1959 में आई फिल्म-रानी रूपमती का आजा भवरा सूनी डगर, 1964 में आई फिल्म-कश्मीर की कली का हाय रे हाय, 1966 में रिलीज फिल्म- दिल दिया दर्द लिया का सावन आए या ना आए और 1993 में रिलीज फिल्म- रूदाली का झूठी मूठी मितवा आवन बोले प्रमुख हैं।

अब आपको हमेशा की तरह राग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग वृंदावनी सारंग का जन्म काफी थाट से माना गया है। इस राग में ‘ग’ और ‘ध’ नहीं लगता है। इस राग की जाति औडव-औडव है। इस राग को लेकर एक मतभेद भी है। राग वृंदावनी सारंग का वादी ‘रे’ और संवादी ‘प’ है। वादी औरसंवादी सुर को लेकर हम हमेशा आपको बताते रहे हैं कि किसी भी राग में वादी और संवादी सुर का महत्व वही होता है जो शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है। दरअसल कुछ जानकार इस राग को खमाज थाट का राग भी मानते हैं। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि किसी भी राग के थाट को समझने के लिए उसके स्वरूप को समझना जरूरी है। स्वरूप के आधार पर राग वृंदावनी सारंग खमाज के मुकाबले काफी थाट का राग दिखाई देता है। इस राग के कई प्रकार प्रचलन में हैं यानी गाए बजाए जाते हैं। जिसमें मियां की सारंग, गौड़ सारंग और मध्यमादि सारंग ज्यादा प्रचलित हैं। राग वृंदावनी सारंग में छोटा ख्याल, बड़ा ख्याल तो गाया जाता है लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि इस राग में ठुमरी नहीं गाई जाती है। आम तौर पर इसी राग को राग सारंग भी कहा जाता है। आइए अब आपको राग वृंदावनी सारंग का आरोह अवरोह और पकड़ बताते हैं।

आरोहनी सा, रे, म प, नी सां

अवरोहसां, नी, , म रे, सा

पकड़नी सा रे, म रे, प म रे, नी सा 

हनुमान चालीसा के आपने कई स्वरूप सुने होंगे। राग वृंदावनी को लेकर भी हनुमान चालीसा में प्रयोग किया गया है जो इंटरनेट पर उपलब्ध है।

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