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आपको ये एहसास कब हुआ कि आप एक कलाकार बन चुके हैं और अब आपके फैंस भी हैं

एक बार अमेरिका में एक कार्यक्रम हुआ था। वहां का एक वाकया मुझे याद आ रहा है। वहां मेरा कार्यक्रम सुनने के लिए एक करीब 80 साल की महिला आई थीं। कार्यक्रम खत्म करने के बाद मैं लोगों से मिलने के लिए रूकता हूं। लोग फोटो खींचाना चाहते हैं, ऑटोग्राफ लेना चाहते हैं। मैंने तब उन्हें भी देखा। उनकी पर्सनैलिटी बिल्कुल अलग सी थी। उनका एक ‘औरा’ था। उन्होंने कहा- ‘आई हैव नॉट सीन गॉड बट टुडे आई फील देयर इस सम गॉड इन योर म्यूजिक’ यानि आज मुझे अनुभुति हुई कि यहां आपके संगीत में भगवान मौजूद थे। उन्होंने कहा आप यीशु की तरह संगीत बजा रहे थे। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मुझे ऐसी तारीफ किसी ने नहीं दी थी। मेरी आंखों के सामने वो शाम घूम गई जब मैंने पहला ऑटोग्राफ मुंबई में दिया था। वो मेरा दूसरा ही कार्यक्रम था। उस समय मुझे ये अहसास भी हुआ था कि अब मैं कलाकार बन गया हूं। अब लोग मेरा ऑटोग्राफ लेने के लिए आ रहे हैं। वो एक सुखद अनुभव जरूर था लेकिन मैंने उसे बस इस तरह लिया कि ऑटोग्राफ इकट्ठा करने का जो काम मैं सालों पहले करता था वो काम अब लोग मेरे लिए कर रहे हैं। लेकिन ऐसी तारीफ तो कभी किसी ने की ही नहीं थी। ऐसे ही एक बार जाने माने कलाकार एरिक क्लिपटन ने टेक्सस में एक बड़ा कार्यक्रम किया था। उसमें करीब साठ हजार लोग थे। वहां पर बीबी किंग और एरिक क्लिपटन जैसे बड़े बड़े कलाकार थे। वहां मुझे 12 मिनट का वक्त दिया गया था। 12 मिनट में मुझे अपनी इतने सालों की तपस्या दिखानी थी। ऊपर वाले के आशीर्वाद से वो कार्यक्रम भी बहुत सफल रहा था।

आपको पद्मभूषण से लेकर ग्रैमी अवार्ड तक हर तरह के बड़े सम्मान मिले, आपने फिल्मों में भी संगीत दिया है तो आप इस संगीत की साधना के बारे में युवाओं से क्या कहना चाहेंगे

मैंने हिंदी फिल्मों के लिए भी थोड़ा बहुत काम किया है। एक फिल्म आई थी ‘बवंडर’ उसमें मैंने अपने बेटे सौरभ के साथ काम किया था। मुझे एआर रहमान भी कभी कभी बुलाते हैं। ‘लगान’ और ‘साथिया’ के लिए उन्होंने मुझे बुलाया था। विशाल भारद्वाज ने ‘इश्किया’ और ‘डेढ़ इश्किया’ जैसी फिल्मों के लिए बुलाया। बप्पी लाहिड़ी जी ने भी बुलाया। इस तरह थोड़ा बहुत फिल्मी म्यूजिक भी किया। एआर रहमान जी के सेकेट्री का फोन आया कि वो आपसे बात करना चाहते हैं। वो मणिरत्नम जी की फिल्म थी। मैं जब एआर रहमान से मिलने गया तो मणिरत्नम जी वहां मौजूद थे। उन्होंने ग्रैमी अवॉर्ड का जिक्र करते हुए कहाकि वो मेरे साथ काम करके बहुत खुश हैं। विशाल भारद्वाज भी कहते हैं कि “पंडित जी मैं आपको क्या बताऊंगा आपको जैसा समझ आए वैसा कीजिए”। उसके बाद मैं जो दिल से निकलता है वो कर देता हूं। जीवन के इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी मैंने खुद पर महात्वाकांक्षा को हावी नहीं होने दिया। मैंने ग्रैमी या पद्मभूषण पाने के लिए काम नहीं किया। शास्त्रीय संगीत युवाओं तक पहुंच जाए वही सबसे ज्यादा जरूरी है। लोग हमारे पांव छूते हैं इतनी इज्जत देते हैं इतना प्यार करते हैं उससे ज्यादा बढ़कर कुछ भी नहीं है। शास्त्रीय संगीत रातों रात सफलता या प्रतिष्ठा दिलाने वाली ‘फील्ड’ नहीं है। इसमें लगातार मेहनत और समर्पण चाहिए। शास्त्रीय संगीत में आपकी यात्रा धीरे धीरे चलती है। कलाकार को पहचान या मान्यता बहुत धीरे धीरे मिलती है। कोई इम्तिहान नहीं है, कोई डिग्री नहीं है। आपको पद्मश्री मिल गया इसका भी ये मतलब नहीं कि अब आपको लोग सर आंखों पर बिठा लेंगे।  ऐसे में अच्छा है कि कदम धरती पर रहें, सहज रहें और संगीत की साधना करते रहें।

आपने मोहनवीणा बनाया जिसने आपको संगीत जगत में ना सिर्फ अलग पहचान दिलायी बल्कि सफलता भी दिलायी तो क्या आपके बच्चे भी ये साज बजाते हैं या उन्होंने भी कोई नया साज बनाया है?

मेरे दो बेटे हैं। सलिल ने मोहनवीणा में भी थोड़ा बदलाव किया। उन्होंने मोहनवीणा से ‘नेक’ हटा दिया है  और पूरा साज एक ही लकड़ी के टुकड़े से बनाया है। उनके ‘सात्विक वीणा’ में कोई जोड़ नहीं है। इसकी वजह ये है कि एक बार सफर के दौरान मेरे साज को सही तरीके से नही रखा गया। जिससे उसका ‘नेक’ टूट गया था। मेरा कार्यक्रम था ‘मॉन्ट्रियल’ में, मैंने जब वहां साज खोला तो देखा कि वो तो टूटा हुआ है। मैं परेशान हो गया। बाद में मैंने उसे बनवाकर कार्यक्रम किया। उसी घटना के बाद सलिल के मन में आया कि इस परेशानी को हमेशा के लिए ही खत्म कर दिया जाए। इसलिए उन्होंने लकड़ी के एक पूरे टुकड़े पर इस साज को बनाया। छोटे बेटे सौरभ भी मोहनवीणा बजाते हैं। उनकी एक रिकॉर्डिंग भी अभी एचएमवी से आई है। वो कम्पोजर भी हैं। म्यूजिक कंपोज करता है। मेरे जितने प्रोजेक्ट हुए- ‘म्यूजिक फॉर रिलेक्सेशन’, ‘म्यूजिक फॉर सोल’, ‘सेलीब्रेशन ऑफ लव’, ‘मेघदूतम’, ‘मीरा’ सब उसी ने किया है। कॉन्पोजीशन उसकी है बजाया मैंने हैं। वो साउंड इंजीनियर भी है। सलिल और साज का किस्सा तो बड़ा चर्चा में भी आया था। एक बार मेरे साथ एक और बड़ा दिलचस्प वाकया हुआ। नागालैंड की एक सोसाइटी है जो नागा म्यूजिक को जगह जगह प्रचार प्रसार करती है। मैं उनका ‘ब्रैंड एम्बेसडर’ हूं। नागा म्यूजिक को लेकर हम लोग पांच छ देशों की यात्रा पर भी जा चुके हैं। वो लोग मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मैं वहां का ‘स्टेट गेस्ट’ होता हूं। जब भी जाता हूं वहां राजभवन में ठहरता हूं। उनकी सोसाइटी का एक म्यूजियम है जिसमें उन्होंने अलग अलग तरह के साज रखे हुए हैं। एक बार मैं भी वहां गया, मैं वहां भावुक हो गया। मैं इतना भावुक था कि मैंने बगैर सोचे समझे उन्हें वो साज ‘डोनेट’ कर दिया जो 28 साल से मेरे साथ था। अब मेरे इस फैसले को मेरे घरवालों ने पसंद नहीं किया। सलिल ने खास तौर पर, उन्होंने कहाकि ये ठीक नहीं है। वो हमारी धरोहर है। उसे हम अपने साथ रखेंगे। वहां म्यूजियम में उसका कोई उपयोग नहीं है। वो यहां रहेगा तो हम रोज उसे देखेंगे। उसकी ‘वैल्यू’ हमारे यहां होगी कि इस साज ने आपको पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। आखिरकार मैंने वहां के लिए दूसरा मोहनवीणा बनाया और अपना पुराना मोहनवीणा वापस लिया।

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