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शुभा मुदगल के गाने तो आप सभी ने सुने हैं लेकिन बेहद कम लोग जानते हैं कि वो जिस परिवार से हैं वहां संगीत का माहौल नहीं बल्कि पढ़ाई का माहौल हुआ करता था। पिता जी इंग्लिश के प्रोफेसर थे मां हमेशा से सख्त थी और शादी के बाद जब वो ससुराल में एक पत्नी और बहू बनकर गयी और फिर मां बनने के बाद उन्हें संगीत को लेकर क्या कहा गया और उन्होंने संगीत को अपनी ज़िंदगी में बनाए रखने के लिए क्या कुछ किया ये सब बाते उनके फैंस जरुर जानना चाहेंगे। शुभ मुदगल को संगीत से बेहद प्यार था दिन रात वो संगीत में ही रमीं रहती थी लेकिन एक दौर ये भी था जब उन्हें मास्टक डिग्री में एडमिशन लेने से पहले संगीत या पढ़ाई में से किसी एक को चुनने के लिए कहा गया। बचपन से लेकर ससुराल तक उन्होंने संगीत के लिए क्या कुछ किया और कैसे उनका ये सफर आगे बढ़ता ही चला गया आइए उन्हीं से जानते हैं।

आपके पिता जी इंग्लिश के प्रोफेसर थे तो आपको गाना गाने का शौक या घर में वो माहौल कैसे मिला?

एक अंग्रेजी के प्रोफेसर वाले परिवार में संगीत इस कदर कैसे आ गया? ये एक जटिल प्रश्न है। मैं चाहूंगी कि ये बात आप लोगों को एक सामाजिक रीति रिवाज से जोड़कर बताऊं। मेरी जो नानी थीं, उनका जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जहां संगीत को लेकर कोई बहुत दिलचस्पी नहीं थी। लेकिन नानी जी खुद संगीत सीखना चाहती थीं। उन्होंने जब अपने पिता जी से कहाकि उन्हें भारतीय संगीत सीखना है तो उनके पिता जी ने कहाकि वो तो मैं नहीं कर सकता हूं। हां, अगर तुम्हें पियानो सीखना है तो मैं तुम्हारे लिए टीचर लगा दूंगा। यानी उस दौर में जब मेरी नानी युवती थीं तब तक भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर लोगों में उतनी श्रद्धा नहीं थी। ये भी हो सकता है कि ऐसा मेरे ही परिवार के साथ हो कि पियानो का टीचर लगवा देंगे लेकिन शास्त्रीय संगीत सीखाने वाला नहीं। ऐसे में मेरी नानी जी ने पियानो सीखा लेकिन उनकी हमेशा ही इच्छा रही कि वो भारतीय संगीत को सीखें। मेरे पास उनकी कई ऐसी तस्वीरें हैं जिसमें वो कहीं किसी से सितार लेकर ‘पोज’ कर रही हैं तो कभी इसराज लेकर पोज कर रही हैं। फिर उन्होंने मेरी मां और उनकी दो बहनों को ‘सिंगल पेरेंट’ के तौर पर पाला। मेरे नाना जी भी आर्टिस्ट थे। वो ‘वाटर कलर’ आर्टिस्ट थे। उनका देहांत बहुत जल्दी हो गया था। उनके बाद मेरी नानी ने हमेशा अपने दम पर सबकुछ किया और अपने तीनों बच्चों को पढ़ाया लिखाया।

क्या शादी के बाद गाना गाने के लिए और इस सफर पर आगे बढ़ने के लिए आपको कोई परेशानी हुई?

उन तीनों बहनों को भी कलाओं से प्यार था। इसमें से मेरी मां तो कला के प्रति काफी समर्पित थीं। उन्होंने डांस सीखा, गाना सीखा, थिएटर में भी भाग लिया। जबरदस्त रूचि थी लेकिन नानी को कभी नहीं लगा कि मेरी मां ‘प्रोफेशनल म्यूजिसियन’ या ‘आर्टिस्ट’ बन सकती थीं। वो उनको नहीं मंजूर था। उन्होंने हर तरह से कोशिश की कि मां को ‘एक्सपोजर’ मिले लेकिन पेशेवर कलाकार नहीं बनने दिया। फिर मेरी मां ने मुझे और मेरी बहन को पूरी छूट दी। संगीत सीखने के दौरान हमसे कभी भी ये नहीं कहा गया कि तुम कब से स्टेज पर गाओगी? कब रेडियो पर गाओगी? कब टीवी पर आओगी? कुछ भी ऐसा नहीं। बस हमें इतना बताया गया कि कला से जुड़ना एक तरह से अपने को समृद्ध करना है और वो तुम्हें करना चाहिए। हमसे कभी ये नहीं कहा गया कि अब बोर्ड की परीक्षा हो रही है तो अब गाने की क्लास बंद हो जाएगी या डांस क्लास बंद हो जाएगी। बोर्ड की परीक्षा हो, बीए की परीक्षा हो या कोई भी परीक्षा हो, गाना बजाना जो भी सीख रहे हैं वो चलता रहा। फिर जब मैंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साइकॉलजी, संगीत और अंग्रेजी साहित्य विषय से ‘ग्रेजुएट’ कर लिया तब मां ने कहाकि तुम्हारे ऊपर तो संगीत का जूनून चढ़ा हुआ है। ये बात साफ जाहिर है। पूरे दिन तुम्हारा मन उसी में लगा रहता है। अगर इसमें तुम्हें ‘आगे’ कुछ करना है, इस ‘आगे’ की कोई परिभाषा उन्होंने नहीं दी कि मुझे मंच पर कुछ करना है या मंच के पीछे कुछ करना है। उन्होंने बस इतना कहाकि जो भी तुम्हें करना है संगीत के क्षेत्र में, मुझे लगता है कि अब तुम्हें समर्पित रूप से संगीत सीखना पड़ेगा। अब ये नहीं हो सकता कि तुम पहले क्लास जाओ, फिर शाम को थोड़ी देर सीख लो। ‘हॉबी’ वाली अवस्था अब चली गई है। अगर तुम्हें यही करना है तो फिर तुम समर्पित रूप से संगीत सीखो और मैं तुम्हें एक वर्ष देती हूं। तुमको एमए में दाखिला लेने की कोई जरूरत नहीं है। एक साल तक तुम संगीत सीखो और देखो कि क्या यही रास्ता है तुम्हारा, यही दिशा लेनी है तुम्हें या कुछ और करना है। अब आप सोचिए उस जमाने में ये ‘ऑप्शन’ देना कि ऐसा करो, ये बहुत बड़ी बात है। मुझे लगता है कि वो मेरे लिए ‘टर्निंग प्वाइंट’ था क्योंकि मुझे एक वर्ष भी नहीं लगा और मैंने उनसे कहाकि मुझे यही करना है यानी संगीत ही करना है। दूसरी बात मैं ये भी कहूंगी कि मां के लिए ये फैसला लेना शायद कठिन होता अगर पिता जी विरोध करते लेकिन ऐसा नहीं था। उन्होंने भी साथ दिया। मेरे पूरे परिवार ने, चाहे वो मेरा अपना परिवार हो या मेरे पति का परिवार हो, मेरी बहन, मेरा बेटा, मेरी सासू मां सभी ने मुझे बगैर किसी शर्त के सहयोग दिया। जो किसी कलाकार के लिए वरदान है। मुझसे कभी किसी ने नहीं कहाकि तुम कितने प्रोग्राम गा रही हो? तुम्हें क्या मिल रहा है? बस मुझसे हमेशा यही कहा गया कि- सीखना और रियाज करना यही मेरी जिंदगी है, हम तुम्हारे साथ हैं। मुझे इस तरह का सपोर्ट मिला है। आज जब कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या परेशानियां हुईं? क्या संघर्ष किया? तब मैं कहती हूं कि मुझे लगता है कि मैं तो बहुत ही खुशकिस्मत हूं कि मुझे इस प्रकार का ‘सपोर्ट’ मिला है परिवार से।  बाद में भी मां ने ही मुझे रास्ता दिखाया कि मुझे क्या करना है, उन्होंने साफ कर दिया कि बाद में ये मत कहना कि तुम पढ़ रही थी या और कुछ कर रही थी इसलिए तुम संगीत नहीं कर पाई। मेरी मां से काफी बातचीत होती रहती थी। जब मैं मंच पर गाने लगी, और बाद में जब मैं मां भी बन गई तब तक। एक बार मुझे याद है कि मेरा बेटा धवल तब साल भर का भी नहीं रहा होगा जब मुझे ग्वालियर से एक निमंत्रण आया। मैं सोच रही थी कि मैं इतने छोटे बच्चे को छोड़ कर कैसे जाऊंगी गाने के लिए। मां ने कहा- “हम सब हैं साथ में तुम्हारे बाद में ये मत कहना कि बच्चों को पाल रही थी कि इसलिए तुम कुछ नहीं कर पाई और तुम गायिका हो। क्या और गायिकाओं ने बच्चे नहीं पाले हैं क्या, कौन आता था उनकी देखभाल करने के लिए। तुमको भी वैसा ही करना होगा”। मतलब ऐसा नहीं था कि वो मुझपर रीझी जा रही हों। उन्होंने मेरा साथ पूरी तरह से दिया लेकिन मुझे अंतिम क्षण तक उनसे अच्छी खासी डांट पड़ती थी और हमेशा उनसे बड़ी खरी खरी सुनने को मिलती थी। वो कहती थीं कि क्या और बड़ी गायिकाओं ने बच्चे नहीं पाले। सभी के परिवार हैं। घर हैं। उन्होंने जो संघर्ष देखे हैं वो तुम लोग क्या देखोगे। ये सब बात मत मुझे बताना कि बच्चा अभी छोटा है कैसे जाऊं, गाना है तो जाओ बस गाओ। मां की ताकीद ये भी थी कि ये भी मत कहना कि मेरी तान अच्छी नहीं चल रही थी क्योंकि मैं बच्चा पाल रही थी। उनके सामने कोई बहानेबाजी नहीं चलती थी।

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