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रागगिरी से खास बातचीत में सिंगर अलका याज्ञनिक ने बचपन की यादें शेयर करते हुए अपने कई दिलचस्प किस्से हमारे साथ शेयर किए। अलका याज्ञनिक की फैन फॉलोइंग जबरदस्त है ऐसे में उनके फैंस उनसे जुड़ी हर बात जानने में दिलचस्पी रखते हैं। तो हमारे कुछ ऐसे ही सवाल जो उनके फैंस जानना चाहेंगे उनके जवाब उन्होंने हमें दिए

आप बचपन में बेहद चंचल थी तो ऐसे में गायकी के बारे में आपने कब और कैसे सोचा?

मेरी पैदाइश कलकत्ता की है। मैं वहीं बड़ी हुई हूं। मेरे पिता जी नेवी में थे और कलकत्ता में ही ‘पोस्टेड’ थे। मैंने जब से होश संभाला तब से मैंने देखा था कि मम्मी रियाज करती थीं। उनके गुरू आते थे और वो तानपुरे पर रियाज करती थीं। मुझे भी तब से ही चाव था कि क्या हो रहा है। मैं अक्सर ये जानने के लिए कि क्या हो रहा है उनके पास जाकर बैठ जाया करती थी। मां के अलावा मेरी मौसी भी शास्त्रीय संगीत सीख चुकी थीं। लिहाजा संगीत का संस्कार मुझे मेरी मां के परिवार की तरफ से मिला। मैं जब तीन-चार साल की थी तब ही मम्मी ने ये नोटिस कर लिया था कि मेरी रूचि संगीत की तरफ है। जिस उम्र में बच्चे पूरा दिन खेलते-कूदते रहते हैं, उस उम्र में मैं सारा दिन रेडियो के सामने बैठी रहती थी और गाने सुनती रहती थी। उन्हीं गानों को सुन-सुन कर मैं गाती भी थी। उनकी नकल करने की कोशिश करती थी। मेरी इन्हीं सब आदतों को देखकर मम्मी को लगा कि मेरे अंदर संगीत है। मैं ‘गॉड गिफ्टेड’ हूं। तब उन्होंने मुझे थोड़ा-थोड़ा ट्रेनिंग देना शुरू किया। फिर जब मैं पांच साल की थी तब मैंने पहली बार ऑल इंडिया रेडियो में बच्चों के लिए भजन का एक कार्यक्रम था, उसके लिए गाया। धीरे धीरे वो ‘डेवलप’ होता गया। जैसे जैसे मैं बड़ी होती गई मम्मी को लगा कि मेरे अंदर कुछ ‘एक्स्ट्राऑर्डिनरी टैलेंट’ हैं और मुझे ‘सपोर्ट’ करना चाहिए। जिससे मैं अपनी कला को निखार सकूं। पापा का भी बड़ा सपोर्ट था। उन्होंने संगीत की कोई तालीम नहीं ली थी लेकिन वो भी स्वाभाविक तौर पर ही अच्छा गाते थे। उन्हें संगीत का बड़ा शौक था।

आप बचपन में अपने भाई के साथ डुएट गाती थी लेकिन आप तो भाई खूब झगड़ा भी करती थी तो संगीत का तालमेल भाई के साथ कैसे बैठा?

बचपन में मैं बहुत बदमाश थी। उससे भी ज्यादा बातूनी। भाई के साथ खूब झगड़ा करती थी। भाई मुझसे करीब तीन साल छोटा है। वो भी बहुत कमाल का गाता है। कई बार तो मुझे लगता है कि वो मुझसे अच्छा ना सही लेकिन मेरे जैसा तो गाता ही है। लेकिन उसने ये तय किया कि वो गायकी में नहीं जाएगा। उसने संगीत को शौक की तरह ही लिया। वो तबला या ढोलक जैसे इंस्ट्रूमेंट बहुत शानदार बजाता है। बचपन में उसने तबला बजाना सीखा भी है। अब वो कॉरपोरेट वर्ल्ड में है। खैर, बचपन में भाई के साथ खूब झगड़े-झमेले होते थे। वो मेरी तुलना में बहुत सीधा था। चुप रहता था जबकि मैं एक नंबर की जिद्दी थी। पूरे घर में मेरी दादागीरी चलती थी। हां, लेकिन मैं अपने भाई को लेकर बहुत ‘प्रोटेक्टिव’ भी थी। मैं उससे झगड़ा करू, लड़ाई करूं कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन कोई और अगर उसे कुछ कहता था तो मुझे बर्दाश्त नहीं होता था। हम दोनों ‘म्यूजिक’  को लेकर कई तरह के खेल खेलते थे। मैं गा रही हूं वो बजा रहा है। ऐसे ही तीन अलग अलग ‘लेवल’ पर गमले रखने का ‘प्लांटर’ हुआ करता था तो भाई उन पर तीन थालियां रख देता था। उसमें सिक्के डाल देता था और उसके बाद ‘रूलर’ लेकर उसे ड्रम की तरह बजाया करता था। उसी के साथ मैं गाती थी। हम लोग बाकयदा इसकी टेपरिकॉर्डर में रिकॉर्डिंग करते थे और बाद में सुनते भी थे। ज्यादातर ‘डुएट’ गाने गाते थे।

आपके स्कूल में आपके टीचर्स आपकी बहुत शिकायत करते थे, ऐसा क्यों होता था?

इसके अलावा स्कूल में भी जब पापा मम्मी पैरेंटस टीचर मीटिंग में जाते थे तो मेरी टीचर्स हमेशा एक ही शिकायत करती थीं कि अलका बहुत ‘इंटैलिजेंट’ है लेकिन बात बहुत करती है। इसका ध्यान बात करने में ज्यादा होता है। कुछ बच्चे होते हैं ना खूब शोर मचाते हैं। चिल्लमचिल्ली करते हैं। जिद करते हैं कि मुझे ये चाहिए, मुझे यहां जाना है। मैं ऐसी ही बच्ची थी। मुझे बचपन से ही फिल्म देखने का बहुत शौक था। जब भी पापा मम्मी मुझे छोड़कर फिल्म देखने जाते थे तो मैं साथ जाने के लिए खूब जिद करती थी। यहां तक कि जमीन पर लेट जाती थी कि मुझे भी साथ चलना है। मेरे बिना आप लोग फिल्म देखने नहीं जा सकते हैं। कई बार तो पापा मम्मी को मुझे लेकर जाना पड़ता था। इसी तरह की जिद के चलते कई बार तो मम्मी से पिटाई भी खाई है। पापा तो खैर मेरे मारते नहीं थे। मारने की बात सोचते तक नहीं थे। कई बार तो इसलिए भी पिट जाती थी क्योंकि मुझे रियाज नहीं करना होता था। मैं कहती थी कि मैं रियाज नहीं करूंगी। मम्मी गुस्से में कहती थीं कि ऊपरवाले ने तुम्हें इतना हुनर दिया है उसका कुछ करोगी या उसे ऐसे ही बर्बाद कर दोगी। वो मेरे रियाज को लेकर बहुत ‘पर्टिकुलर’ रहती थीं कि मुझे जो हुनर मिला है मैं उसे जितना बेहतर कर सकती हूं करूं और मैं बहुत आलसी थी। मैं रियाज से दूर भागती थी कि मुझे खेलना है। लिहाजा दूसरी बदमाशियों के अलावा रियाज ना करने की वजह से भी बचपन में कई बार मेरी पिटाई हो जाती थी। आज मैं जिस जगह पर हूं उसके पीछे यही वजह है। मेरे मम्मी पापा ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। पापा ने अपनी नौकरी से प्री मेच्योर रिटायरमेंट लेकर बॉम्बे आने का फैसला मेरे लिए ही किया था। उन्होंने मेरे लिए बहुत ‘सेक्रिफाइस’ किया। आज मैं जो कुछ हूं उन्हीं की बदौलत हूं क्योंकि मैं कभी खुद को लेकर बहुत महात्वाकांक्षी नहीं थी। बहुत ज्यादा रूचि भी नहीं थी। मैं गाना इसलिए गाती थी क्योंकि मुझे गाना अच्छा लगता था। मुझे ये बनना है या वो बनना है जैसी कोई चाहत मेरे अंदर नहीं थी। बल्कि मुझे तो इस बात पर गुस्सा भी आता था कि हर छुट्टियों में मुझे बॉम्बे ले आते हैं। और कहीं घुमाने नहीं ले जाते हैं। जब मैं गुस्सा होती थी तो मम्मी समझाती थीं कि तुम भाग्यशाली हो कि तुम्हें ये टैलेंट मिला है। इसे खराब नहीं करना चाहिए। अपने हुनर को और संवारना चाहिए। जबकि मुझे बहुत चिढ़ होती थी कि मुझे हर बार छुट्टियों में बॉम्बे ले जाते हैं कहते हैं गाना गाओ।

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