आप क्या मानते हैं कामयाब होना कितना जरुरी है और क्यों जरूरी है?
मैं मानता हूं कि ये जो ‘क्रिएटिव’ लाइन है उसके लिए सीधा ईश्वर से आशीर्वाद मिलता है। अच्छा गायक हो, अच्छा वादक हो उसे इस आशीर्वाद को हजम करना आना चाहिए। यही काम बहुत मुश्किल होता है। जिस आदमी को पहचान नहीं मिलती, जिस आदमी को जनता खारिज कर देती है, जिस आदमी को कोई बुलाता नहीं, उसका गाना बजाना कोई नहीं सुनता को उसके अंदर गुस्सा आ जाता है। झुंझलाहट आ जाती है। हताशा आ जाती है। मुझे किसी ने एक लतीफा सुनाया था वो मैं आपको सुनाता हूं। एक बार दो फक्कड़ ‘म्यूजियंस’ आपस में मिले। पहले ने दूसरे से कहा सिगरेट पिलाओ। सिगरेट का पहला ही कश अंदर जाने के बाद पहले ने दूसरे से कहा- अब बस दुनिया में दो ही अच्छे ‘म्यूजियंस’ हैं- मैं और तुम। उसके बाद सिगरेट के एक दो कश और लेने के बाद उन्होंने कहा- वैसे तू भी क्या करता है। असल में ये उनके अंदर का गुस्सा है। ऐसे कलाकारों को नाकामयाब भी नहीं कहना चाहिए, क्योंकि हर कलाकार अपने हिसाब से अच्छा गाता है, अच्छा बजाता है। कोई भी कलाकार को हम बुरा नहीं कह सकते हैं क्योंकि वो भी उन्हीं सात सुरों पर काम कर रहा है। वही कामोद गा रहा है। वही बिहाग गा रहा है या बजा रहा है। रही बात कामयाबी कि तो वो तो भगवान ही देता है। ऐसे ही लोगों से प्यार मोहब्बत अगर किसी इंसान की किस्मत में है तो मिलता है नहीं है तो नहीं मिलता है। मैं असली कामयाबी इसी को मानता हूं जब लोग आपको प्यार करने लगें। कोई कलाकार कितना ही रियाज कर ले, अगर उसे लोगों से प्यार और आशीर्वाद नहीं मिला तो सारा रियाज बेकार है।
लोग आपको 14-15 साल की उम्र से ही उस्ताद कहने लगे तो आप इस सम्मान को किस तरह देखते हैं?
एक बार मैं और उस्ताद विलायत खान साहब रोम गए थे। मेरे ख्याल से सत्तर के दशक की बात है। वहां एक बहुत बड़ी कॉन्फ्रेंस थी। मेरे साथ मेरी पत्नी भी थीं। हम सब लोग एक साथ ही फ्लाइट से गए थे। इटली के बहुत बड़े थिएटर आर्टिस्ट थे जो हमें बुलाने आए थे, उन्होंने हमें अपने घर में ठहराया था। विलायत खान साहब भी अपनी पत्नी के साथ गए थे। उनके रूकने के लिए अलग इंतजाम किया गया था। एक दिन हम सभी लोग बैठे थे तो उस आदमी ने मुझसे पूछा कि हम कार्यक्रम की ‘पब्लिसिटी’ में आपका नाम कैसे लिखें? हालांकि यूं तो ये बेवकूफी की ही बात है कि आप कलाकार से पूछें कि आपकी ‘पब्लिसिटी’ कैसे की जाए। फिर भी मैंने बड़ी सहजता के साथ जवाब दिया कि इसमें मैं क्या कह सकता हूं, जैसी आप लोगों की मर्जी। लेकिन हमारे आस पास जो लोग बैठे थे उन्होंने अपने अपने सुझाव देने शुरू कर दिए। ये लिखिए…वो लिखिए…ऐसा लिखिए…वैसा लिखिए। फिर भी मैने अपनी बात दोहराई कि आपको जो ठीक लगे वो लिखिए। फिर उस आयोजक ने कहा कि हमारी मजबूरी को समझिए, दरअसल विलायत खान साहब के करार में पैसे रूपए के लेन देन के अलावा लिखा है कि पब्लिसिटी में उनके लिए लिखा जाए- म्यूजियन ऑफ द सेंचुरी। मैंने सोचा कि मैं मजाक में कहूं कि मेरे लिए लिख दो- म्यूजियन ऑफ डबल सेंचुरी। फिर भी मैंने ये बता कही नहीं। मैं विलायत खान साहब की बहुत इज्जत करता था। वो हमारे पूजनीय हैं। मैंने हमेशा उन्हें बड़े भाई की तरह इज्जत दी है। फिर मैंने कहाकि आप सिर्फ इतना लिख दो कि ‘मोस्ट लव्ड म्यूजिसियन ऑफ इंडिया’। कोई उस्ताद लिखने की जरूरत नहीं है। कोई ‘विजर्ड’ लिखने की जरूरत नहीं है। सिर्फ इतना लिख दीजिए ‘मोस्ट लव्ड म्यूजिसियन ऑफ इंडिया’ अमजद अली खान। आयोजकों ने फिर ऐसे ही कार्यक्रम की पब्लिसिटी की। मजा भी इसी बात का है जब दुनिया आपके नाम के आगे उस्ताद या पंडित लगाए। मैंने आजतक खुद से अपने नाम के आगे उस्ताद नहीं लगाया। मेरा लेटर हेड देख लीजिए। मेरा विजिटिंग कार्ड देख लीजिए। सिर्फ अमजद अली खान लिखा है। दुनिया भले ही हमें 14-15 साल की उम्र से उस्ताद अमजद अली खान कहना शुरू कर दिया था। मैं उसे एक आशीर्वाद की तरह लेता हूं। ये चीजें आपको मिलती हैं आप इनकी मांग नहीं कर सकते हैं। मैं तो मानता हूं कि इतने बड़े बड़े अवॉर्ड मिल जाते हैं, छोटी सी उम्र में प्रयाग संगीत समिति जैसी संस्था से सरोद सम्राट की उपाधि मिलना, इन सब बातों से आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। जिम्मेदारी इस बात की कि हमारे जरिए किसी का निरादर ना हो। हमारे जरिए किसी का दिल ना टूटे। जाने अनजाने में हमसे कोई गलती ना हो जाए।
एक किस्सा है आप एक कार्यक्रम में गए थे जहां आपके जाने के बाद दूसरे कलाकार को मंंच से जाने के लिए आयोजकों ने कहा, उस समय आपको कैसा महसूस हुआ
आपको हाल ही में नागपुर में एक कॉन्फ्रेंस का किस्सा बताता हूं। मैं एक म्यूजिक कॉन्फ्रेंस में गया था। मुझसे पहले एक युवा कलाकार गाना गा रहे थे। मैं ग्रीन रूम में काफी देर से बैठा था। आयोजक को इस बात का अहसास हुआ कि मैं बहुत देर से इंतजार कर रहा हूं। उसने तुरंत उस युवा कलाकार को एक चिट पहुंचा दी कि अब बस बंद करिए, खान साहब आ गए हैं। अचानक उस कलाकार का गाना बंद हो गया। उसके बाद मेरा कार्यक्रम शुरू हुआ। बाद में मैंने पता किया, जब मुझे पूरी बात पता चली तो मुझे बहुत खराब लगा। मुझे इस बात का बुरा लगा कि वो कलाकार अच्छा गा रहा था। मेरा दिल नहीं माना। मैंने उस कलाकार को फोन किया। मैंने उससे कहाकि मेरी वजह से आपको गाना बंद करना पड़ा- आई एम सॉरी। वो कलाकार सुबह होटल मिलने ही आ गए। कहने लगे कि मैं तो आपको सुनने ही आया था। मैंने भी उन्हें बताया कि मुझे भी उनकी गायकी सुनने में मजा आ रहा था। मैंने बाकयदा कहा कि आयोजकों को ऐसा नहीं करना चाहिए था। मेरे ख्याल से किसी कलाकार को बता देना चाहिए कि उसे कितनी देर गाना बजाना है। ये गलत है कि आप कार्यक्रम के बीच में चिट पहुंचा दें। मेरे दिमाग में बस एक बात चल रही थी कि उस कलाकार के दिल पर क्या गुजरी होगी कि अचानक उसे अपना कार्यक्रम बंद करना पड़ा। इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।