साल 1961 की बात है। मशहूर अभिनेता देव आनंद एक फिल्म बना रहे थे। इस फिल्म में उनके साथ नंदा, साधना शिवदासानी, लीला चिटनिस और ललिता पवार अभिनय कर रहे थे। यूं तो फिल्म के निर्देशक के तौर पर नाम अमरजीत का लिया जाता है लेकिन देव आनंद का दावा रहा कि फिल्म का निर्देशन उनके भाई विजय आनंद ने किया था। इस फिल्म के एक गाने की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। हुआ यूं कि देव आनंद और विजय आनंद ने इस फिल्म में संगीत बनाने का जिम्मा जयदेव को दिया था। देव आनंद अपनी फिल्मों के संगीत को लेकर बहुत मेहनत किया करते थे। गीत लिखने का जिम्मा साहिर लुधियानवी पर था। साहिर ने इस फिल्म के लिए एक से बढ़कर एक गीत लिखे। मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, अभी ना जाओ छोड़कर, कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया जैसे सुपरहिट नगमें इस फिल्म में थे। इसी फिल्म में एक और गाना था जिसे लेकर बड़ी दिलचस्प कहानी है। हिंदी फिल्मी संगीत के इतिहास के इस अमर गाने के बोल थे- अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम। हिंदी फिल्मी संगीत में ये गाना मधुरतम प्रार्थनाओं में से एक है। आज करीब पचास साल से भी ज्यादा पुराने इस गाने को लोग भूले नहीं हैं।
किस्सा यूं हुआ कि इस गाने के लिए देव आनंद और विजय आनंद ने तय किया कि इसे लता मंगेशकर ही गाएंगी। परेशानी ये थी कि उन दिनों लता मंगेशकर और फिल्म के संगीतकार जयदेव के बीच बातचीत बंद थी। दरअसल इस फिल्म से पहले किसी बात पर जयदेव और लता जी में मतभेद हो गया था और लता मंगेशकर ने जयदेव के संगीतबद्ध गानों को गाने से मना कर दिया था। मुसीबत तब और बढ़ गई जब देव आनंद और विजय आनंद ने तय किया कि अगर इस गाने को लता जी से गवाने के लिए संगीतकार को बदलना पड़ा तो उससे भी वो पीछे नहीं हटेंगे। अपनी बात को लता मंगेशकर के साथ साझा करने के लिए वो दोनों लता मंगेशकर के घर पहुंच गए। दोनों भाईयों ने लगभग जिद करने जैसी हालत में लता जी को बता भी दिया कि अगर वो गाना नहीं गाएंगी तो वो संगीतकार को ही बदल देंगे। लता मंगेशकर ने लिए बड़ी दुविधा की स्थिति थी। वो ये नहीं चाहती थीं कि छोटी सी बात पर हुए मतभेद के लिए जयदेव को फिल्म से हटा दिया जाए। नतीजा उन्होंने गाने के लिए हामी भर दी। इस गाने को तैयार करने के दौरान ही जयदेव और लता मंगेशकर में फिर से बातचीत शुरू हुई। इस गाने की लोकप्रियता के बारे में कुछ भी कहा जाए वो कम है। लता मंगेशकर ने अपने लगभग ज्यादातर स्टेज शो में इस गाने को गाया है। इस गाने की रिकॉर्डिंग के बाद जयदेव और लता मंगेशकर ने काफी फिल्मों में साथ काम किया। जयदेव के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर ने बाद मे ‘ये दिल और उनकी निगाहों के साए’ (फिल्म प्रेम पर्बत) और ‘तूं चंदा मैं तेरी चांदनी’ (फिल्म रेशमा और शेरा) जैसे कई और सुपरहिट गाने गाए।
वापस लौटते हैं अल्लाह तेरा नाम पर। ये भजन संगीत निर्देशक जयदेव ने राग गौड़ सारंग पर कंपोज किया था। इस शास्त्रीय राग पर यूं तो कई फिल्मी गाने कंपोज किए गए हैं लेकिन शायद ही कोई और गीत ‘अल्लाह तेरो नाम’ जैसा लोकप्रिय हुआ हो। 1952 में आई फिल्म-आसमां का ‘देखो जादू भरो मोरे नैना’, 1953 में आई फिल्म-हमदर्द का ‘ऋतु आए ऋतु जाए’ और फिल्म सोसाइटी का ‘लहरों में झूलूं’ पसंद किया जाता है। फिल्म एकादशी में अविनाश व्यास के संगीत में लता मंगेशकर ने राग गौड़ सारंग में ये गीत भी गाया था। जिसके बोल थे ‘झूलो झूलो रे झुलना झुलाऊं’। फिल्मी गीतों से अलग इस राग में विश्वविख्यात ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह की गाई एक ग़ज़ल भी काफी लोकप्रिय हुई थी। 90 के दशक में आई जगजीत सिंह की एल्बम ‘फेस टू फेस’ के लिए ये ग़ज़ल खामोश गाजीपुरी ने लिखी थी, जिसके बोल थे- दैरो हरम में बसने वालों। खयाल गायकी के मुकाबले लाइट म्यूजिक में गौड़ सारंग का इस्तेमाल कम हुआ है लेकिन जो गाने बने हैं वो यादगार बन पड़े हैं। लता जी के गाए अल्लाह तेरो नाम की तरह ही ग़ज़ल प्रेमियों में लोकप्रिय है मेहदी हसन की गाई- भूली बिसरी चंद उम्मीदें चंद फसाने याद आए। ये ग़ज़ल भी गौड़ सारंग पर ही आधारित है।
अब आपको राग गौड़ सारंग केशास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से हुई है। इस राग में दोनों ‘म’ यानी शुद्ध ‘म’ और तीव्र ‘म’ दोनों का इस्तेमाल होता है। तीव्र म का वक्र प्रयोग किया जाता है। राग गौड़ सारंग में ‘ग’ ‘रे’ ‘म’ ‘ग’ स्वर समुदाय मुख्य अंग है। राग गौड़ सारंग के आरोह अवरोह में सात-सात स्वर इस्तेमाल किए जाते हैं इसलिए इसकी जाति संपूर्ण संपूर्ण है। राग गौड़ मल्हार में वादी स्वर ‘ग’ है और संवादी स्वर ‘ध’ है। आसान भाषा में हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि किसी भी राग में वादी और संवादी स्वर का वही महत्व होता है तो शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है। राग गौड़ मल्हार के गाने का समय दोपहर का होता है। आइए राग गौड़ मल्हार का आरोह अवरोह देख लेते हैं।
आरोह– सा, ग रे म ग, प म (तीव्र) ध प, नी ध सां
अवरोह– सां ध नी प, ध म(तीव्र) प, ग म रे ग रे म ग, प रे सा
पकड़– ग रे म ग, प रे सा, ऩी सा ग रे म ग
राग गौड़ सारंग को उस्ताद अमजद अली खान की एल्बम पोर्ट्रेट ऑफ ए लीजेंड में सुना जा सकता है।