संगीत की साधना गुरु के बिना अधूरी है तो आपने सबसे पहले संगीत किनसे सीखना शुरु किया?
दिल्ली में हम लोग दिल्ली में कालीबाड़ी के पास रहते थे। वहां पर एक बासु आंटी रहती थीं जो रवींद्र संगीत सिखाती थीं। सबसे पहले मैंने उन्हीं के पास सीखना शुरू कर दिया। मुझे याद है उन दिनों दुर्गा पूजा से पहले एक रवींद्र संगीत का ‘कॉम्पटीशन’ हुआ करता था। तब मैं करीब सात साल की थी। वहां सबसे छोटे बच्चों वाले ग्रुप में मुझे ‘फर्स्ट प्राइज’ मिला। जब घरवालों को लगा कि वाकई मेरा मन संगीत सिखने का है। तो मेरे लिए एक दूसरे गुरू की तलाश की गई। उन दिनों बलराम पुरी जी थे, जो भारतीय महाविद्यालय में शास्त्रीय संगीत सिखाते थे। उनको इस बात के लिए कहा गया कि वो हम लोगों को सिखाएं। वो घर आए लेकिन मुझे याद है कि उन्होंने साफ तौर पर एक बात कही। उन्होंने मेरी मां से कहा कि वो मुझे और भैया को सिखाएंगे लेकिन उन्हें दो साल तक कोई ये नहीं कहेगा कि भजन तैयार करा दीजिए। फिल्मी गीत तैयार करा दीजिए। बच्चों को यहां गाना है-वहां गाना है जैसी बातें। उनके कहने का सीधा मतलब ये था कि वो हम लोगों को ‘सरेगमपधनीस’ सिखाना चाहते थे। अच्छी तरह उसका इल्म कराना चाहते थे। उन्हें ये नहीं पसंद था कि बीच बीच में उनसे ये कहा जाए कि बच्चों को कुछ लोगों के सामने गाना है इसलिए वो कुछ और तैयार करा दें। बलराम पुरी जी ने साफ कहा था कि अगर इस तरह सिखाना है तो वो सही मास्टर नहीं हैं। लेकिन मां और मामुनी दोनों ने कहाकि वो हम लोगों को अच्छा संगीत सिखाना चाहती हैं इसलिए मास्टर जी जैसे चाहते हैं वैसे सिखाएं। इसके बाद उन्होंने बहुत प्यार से हम लोगों को सिखाना शुरू कर दिया। मास्टर जी हमारे हीरो थे।
क्या बचपन में कभी ऐसा हुआ है कि आपको खेल और संगीत में किसी एक को चुनना पड़ा हो?
मैं दिल्ली में जीसस एंड मेरी में पढ़ती थी। मेरी आदत थी कि स्कूल से आकर ‘होमवर्क’ किया और उसके बाद बहुत हुआ तो ‘लॉन’ में जाकर पिट्ठू खेल लिया। थोड़ी बहुत उछल कूद कर ली। हमारे घर के आस पास बच्चे बहुत रहते थे तो हम लोग सब मिलकर ही खेलते थे। हम लोग कभी कभार क्रिकेट भी खेलते थे। लेकिन मैं पहली ही गेंद पर आउट हो जाती थी। इसके बाद मेरे भाई लोग मुझे बाउंड्री पर फील्डिंग करने के लिए भेज देते थे। लेकिन साढ़े चार पांच बजे के करीब मां आवाज लगाती थीं, मास्टर जी आ गए। इस आवाज को सुनते ही मैं और मेरे भाई खेल छोड़कर भागते थे। मास्टर जी आ गए इस वाक्य के बाद कुछ समझ में ही नहीं आता था। वो पहले आधे घंटे तानपुरा को ‘ट्यून’ करते थे। उसके बाद एक घंटे तक सिखाते थे। फिर कुछ गाना बजाना होता था। हम लोग सिर्फ उनकी ‘कॉम्पोजिशन’ ही गाते थे। इसके बाद वो हमें चुटकुले सुनाते थे। हमे हंसाते थे। होता ये था कि घर से उनके निकलते निकलते साढ़े आठ-नौ बज चुका होता था। तीन घंटे से भी ज्यादा का समय हम उनके साथ ही बिताते थे। आप सोचिए कोई बच्चा खेल छोड़कर तीन घंटे तक उस उम्र में शास्त्रीय संगीत के लिए बैठेगा। ये मैं इसलिए कह रही हूं कि ये ‘क्रेडिट’ मास्टर जी का है कि वो इतनी देर तक हम लोगों को संगीत से जोड़े रखते थे।
आप सरकारी नौकरी करना चाहती थी तो फिर सिंगर कैसे बन गईं?
उनसे सिखते सिखते कुछ वक्त बीता, जब उन्होंने मुझे आस पास के ‘कॉम्पटीशन’ में हिस्सा लेने की इजाजत दे दी। उन दिनों मंत्रालयों में भी संगीत की प्रतियोगिताएं हुआ करती थीं। मैंने तीन प्रतियोगिताएं जीतीं। जब तक मेरा स्कूल खत्म हुआ तब तक मामुनी को यकीन हो गया था कि मैं गाना गा सकती हूं। ये उनका ही सपना था कि मैं गाने गाऊं। इससे उलट संगीत सिखने के बाद भी मेरा सपना था कि मैं कोई अच्छी सी सरकारी नौकरी करूं। जहां विदेश में मेरी ‘पोस्टिंग’ हो जाए। दरअसल, मुझे घूमने का बहुत शौक था। बाद में मैंने आईएफएस का इम्तिहान भी दिया, जिसमें मुझे कामयाबी नहीं मिली। इसी बीच हेमा मालिनी जी ‘ड्रीमगर्ल’ बन गईं। उन्होंने बहुत नाम कमा लिया। भट्टाचार्य अंकल रिटायर होने वाले थे, मामुनी ने उनसे कहाकि वो हम लोगों को लेकर मुंबई चलें, वो मुझे हर हाल में ‘प्लेबैक सिंगर’ बनाना चाहती थीं। मामुनी ने कहा कि मुंबई में उन्हें तो कोई नहीं जानता है लेकिन अगर कोई मुश्किल आई तो हेमा मालिनी जी की मां और हेमा जी तो हैं हीं। मामुनी को भरोसा था कि ये लोग हमारी मदद करेंगे। मेरे पिता जी ‘एजुकेशन एंड कल्चर अफेयर्स’ में थे। उनके मंत्रालय से तमाम कलाकारों को ‘फाइनेंसियल ग्रांट’ मिला करती थी। तमाम बड़े कलाकार पापा को जानते थे। पापा ने मामुनी से कहाकि क्यों ना इसको शास्त्रीय संगीत सिखाया जाए। शास्त्रीय संगीत ज्यादा बेहतर है। उनका बड़ा मन था कि मुझे और अच्छी तरह शास्त्रीय संगीत सिखाया जाए। उन्होंने मामुनी से यहां तक कहाकि फिल्मी संगीत से अच्छा और पढ़ा लिखा ‘क्राउड’ इसको सुनने आएगा। लेकिन मामुनी तब तक सबकुछ तय कर चुकी थीं। उन्होंने साफ साफ कहाकि ये भले ही आपकी बेटी है लेकिन ये मेरी बेटी भी है। मैंने तय कर लिया है कि ये मुंबई ही जाएगी। इस तरह मामुनी मुझे मुंबई लेकर आ गईं।