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कानों में सुरीला रस घोलने वाले अपने लोकसंगीत के बारे में जानिए

By December 23, 2021Uncategorized

चैती-चैता, सोहर, होरी और कजरी के बारे में जानिए

इस खास सीरीज में हमने आपके साथ शास्त्रीय संगीत की गायन शैलियों के बारे में बात की। हमने ध्रुपद, ख्याल, ग़ज़ल, कव्वाली जैसी शैलियों पर चर्चा की। उनके बीच के फर्क को भी समझा। आज बात करते हैं अपने देश के लोकसंगीत की और लोकसंगीत में कुछ बेहद प्रचलित शैलियों की। इन शैलियों के नाम आपने जरूर सुने होंगे। आज हम आपको बताएंगे कि इन बेहद खूबसूरत शैलियों की जड़ में क्या है। संगीत की महफिलों में अक्सर कलाकार चैती, चैता, कजरी, होरी,  घाटो, सोहर जैसी चीजें गाते हैं। मौजूदा समय में घाटो अब कम ही सुनने को मिलता है। घाटो में योग वियोग दोनों होता है। संगीत के जानकार मानते हैं कि घाटो बैराग है जबकि चैती भक्ति है। इन शैलियों को भले ही लोकसंगीत में रखा जाता है लेकिन सच्चाई ये है कि कई बड़े कलाकार इन्हीं शैलियों को जब अपने अंदाज में गाते हैं तो वो उसे उपशास्त्रीय गायन के करीब ले जाते हैं। इसकी खूबसूरती को आप इस तरह से समझिए एक वक्त में बनारस में लोकसंगीत के ऐसे ऐसे समारोह हुआ करते थे जहां उस्ताद बिस्मिल्लाह खान, पंडित किशन महाराज, नारायण मिश्रा, बच्चालाल मिश्रा जैसे दिग्गज कलाकार अपने अपने साजों के साथ बैठकर कार्यक्रम किया करते थे। आपको बात आगे बढ़ाने से पहले उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की बजाई एक कजरी सुनाते हैं।

दरअसल, भारत के लोकसंगीत में इतनी मिठास है कि आप बस यूं समझिए कि आपके खाने की थाली में जो काम ‘स्वीट डिश’  का होता है वही काम इन शैलियों का है। जो संगीत महफिलों का मजा कई गुना बढ़ा देती हैं। आपको एक एक करके इन शैलियों के बारे में कुछ जानकारी देते हैं। शुरूआत करते हैं सोहर से जो लोकसंगीत का काफी लोकप्रिय अंग है।

सखी सब गावेंली सोहर

ऐसा माना गया है कि लोक संगीत हमारा सबसे प्राचीन संगीत है। माना गया है कि पहले लोकमत है और फिर वेद मत क्योंकि पहले हम पैदा हुए फिर हमने वेद पढ़ा। पैदा होते ही कौन सा संगीत होता है- वो है लोक संगीत। उसका नाम है सोहर। खेती के समय गेहूं की फसल की कटनी हो रही है- “आइल गोहूंवा के कटइवा मोरी बारी धनिया” अब लोग इस तरह का लोक संगीत कम ही गाते हैं। आइए आपको पंडिच छन्नूलाल मिश्र का गाया सोहर सुनाते हैं। जो बहुत लोकप्रिय है।

चैती एवं चैता का फर्क

बनारस में देहात के इलाकों में अब भी चैती-चैता होता है। चैता उसको कहते हैं जब भगवान राम का जन्म होता है। चैत रामनवमी को चैता गाया जाता है इसीलिए इसकी हर लाइन के अंत में ‘रामा’ लगाते हैं। आप ये समझिए कि चैता पुरूष है और चैती स्त्री है। चैता ज्ञान है जबकि चैती में श्रृंगार रस प्रधान होता है। मूलत: बनारस में गाई जाने वाली चैती बची तो है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इसका रूप पहले के मुकाबले काफी हद तक अपभ्रंश हो चुका है। पहले चैती का मतलब था- चैत की निंदिया रे, अरे जियरा अलसाने हो रामा मतलब चैत की नींद में आलस सा हो जाता है। अब अपभ्रंश है अरे झूलनी में लगली नजरिया ओ रामा। जैसे चैत मास बोले रे कोयलिया ओ रामा मोरे रे अंगनवाआपको पंडित छन्नू लाल मिश्र की गाई चैती सुनाते हैं- सेजिया से सैयां रूठ गईलें हो रामा

कजरी के बारे में भी जानिए

कजरी पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध लोकगीत है। इसे सावन के महीने में गाया जाता है। आजमगढ़ की कजरी, मिर्जापुर की कजरी, बनारस की कजरी और छपरा की कजरी में थोड़ा थोड़ा फर्क है। अब आप कजरी का फर्क देखिए। मिर्जापुर में कहते हैं कि “गोरिया पाएं नहीं सैयां के सवनवा में.. जब से गए परदेस, कोई भेजे ना संदेस…गोरिया सोचे बैठ अपने भवनवा में” ये बात बिरहन कह रही है। हम लोगों के बनारस की कजरी में बोल बनाते हैं “सजनी छाई घटा घनघोर…हमरे सांवरिया नहीं आए”। आजमगढ़ की कजरी के बोल हैं “सावन भादो की निसरी अधियरिया…कजरिया खेले जाइबे हो नैहरवा…इसके जवाब में पुरूष कहता है कि- जो तू धनिया नैहर चली जईबू, दूसर हम लाइब हो मोरी धनिया, फिर स्त्री कहती है- जो तू सैयां रे दूसर ले अईबो, जहरवा हम खाबै हो नैहरवा। धनिया का मतलब है-स्त्री। छपरा की कजरी के बोल हैं – सावन भदउंवा के बरसे ल पानी। लगल बड़ी काई ओही पनघटवा।  आपको पद्मश्री से सम्मानित लोकगायिका मालिनी अवस्थी की गाई कजरी सुनाते हैं।

लोकगीत में मशहूर है पंडित छन्नूलाल मिश्र की गाई होरी

पंडित छन्नू लाल मिश्र कहते हैं कि- “हमारा उद्देश्य यही है कि शास्त्रीय संगीत को इतना सरल करके गाया जाए कि साधारण जनता को भी हमारी बात समझ में आ जाए। ना गोप ना गोपी ना श्याम ना राधाना साजन ना गोरीखेले मसाने में होरी, दिगंबर खेले मसाने में होली की लोकप्रियता इसी बात का सबूत है। आप भी इस होरी को सुनिए

इन लोकसंगीत की शैलियों को सहेजने और संवारने में कई नामी गिरामी कलाकार लगे हुए हैं। विश्वविख्यात गायिका गिरिजा देवी और उस्ताद अमजद अली खान की इस जुगलबंदी को सुनिए, जो कजरी है। बोल हैं- झीरी झीरी बरसे सावन रस बूंदिया।

लोकसंगीत की इन शैलियों की मिठास ने आपके कानों में मीठा रस जरूर घोला होगा। साथ ही उम्मीद करते हैं कि इन शैलियों के बारे में आप के पास बेहतर जानकारी पहुंची होगी।

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