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साल 1978 की बात है। मशहूर अभिनेता देव आनंद एक फिल्म बना रहे थे- देस परदेस। इस फिल्म के प्रोड्यूसर-डायरेक्टर भी वही थे। इस फिल्म को सिनेमा फैंस कई वजहों से याद करते हैं। एक तो बतौर अभिनेत्री टीना मुनीम की ये पहली फिल्म थी। दूसरे इस फिल्म की सपोर्टिंग कास्ट में अजीत, प्राण, अमजद खान, श्रीराम लागू, टॉम ऑल्टर, बिंदू, प्रेम चोपड़ा, एके हंगल, सुजीत कुमार, महमूद और पेंटल जैसे उस दौर के जाने माने चेहरे शामिल थे। इसके अलावा इस फिल्म के लिए देव आनंद ने बतौर संगीतकार राजेश रोशन को चुना था। राजेश रोशन को उस वक्त तक फिल्म जूली के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिल चुका था लेकिन इंडस्ट्री में वो नए-नए ही थे। यूं भी देव आनंद को अपनी फिल्मों में मजबूत संगीत पक्ष के लिए जाना जाता है। संगीतकार राजेश रोशन पर भरोसा करने का देव आनंद का दांव भी खाली नहीं गया। राजेश रोशन ने इस फिल्म के लिए कमाल का संगीत तैयार किया था। जिसमें एक गाना था- नजराना भेजा किसी ने प्यार का, है दीवाना जो बस तेरे दीदार का।

इसी फिल्म में एक और गाना था- ये देस परदेस। जिस गाने को फिल्म की कास्टिंग के दौरान इस्तेमाल किया गया था। इस गाने को अमित खन्ना ने लिखा था। फिल्म के बाकी सभी गीत भी उन्हीं ने लिखे थे। अमित खन्ना फिल्मी दुनिया की बड़ी हस्तियों में शामिल हैं। उन्होंने करीब 400 गाने लिखने के अलावा सिनेमा के और भी पहलुओं पर काम किया है। इस गाने की खास बात ये थी कि इसमें फिल्म की कहानी की झलक थी। दरअसल इस फिल्म की कहानी विदेशों में काम करने वाले भारतीयों की जिंदगी पर आधारित थी। फिल्म में दिखाया गया था कि समीर साहनी (प्राण) नौकरी करने के लिए विदेश जाते हैं। कुछ दिन बाद परिवार से उनका संपर्क टूट जाता है। घबराए परिवार वाले उनके छोटे भाई वीर साहनी (देव आनंद) को उन्हें ढूंढने के लिए भेजते हैं। जब वीर साहनी वहां पहुंचते हैं तो उन्हें वहां काम कर रहे भारतीयों की दुदर्शा का पता चलता है। इसी पहलू को इस गाने के जरिए राजेश रोशन और अमित खन्ना ने परदे पर उतारा था। राजेश रोशन ने इस ‘सिचुएशनल’ गाने ये देस परदेस को शास्त्रीय राग शंकरा की जमीन पर तैयार किया था। फिल्म के संगीत की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म के संगीत के लिए राजेश रोशन को फिल्मफेयर अवॉर्ड में सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के लिए ‘नॉमिनेट’ किया गया था। उस साल फिल्म सत्यम शिवम सुंदरम के लिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी को अवॉर्ड दिया गया था। लेकिन साल 1978 की बिनाका गीतमाला में इस फिल्म के तीन गानों की धूम थी। खैर, राग शंकरा पर आधारित दूसरे फिल्मी गानों में 1943 में रिलीज फिल्म तानसेन का रूमझुम-रूमझुम बहुत हिट हुआ था। खेमचंद प्रकाश के संगीत निर्देशन में इस गाने को उस दौर के बेहद लोकप्रिय गायक केएल सहगल ने गाया था। इसके अलावा साल 1960 में रिलीज फिल्म छलिया का बोलो बोलो कान्हा और 1963 में रिलीज फिल्म सुशीला का बेमुरव्वत बेवफा गाना भी राग शंकरा के आधार पर तैयार किया गया था। बेमुरव्वत बेवफा गाना मुबारक बेगम ने गाया था।

राग शंकरा को भगवान शंकर को समर्पित राग माना जाता है। पंडित राजन मिश्र और साजन मिश्र ने इस राग में एक मधुर शिव भजन गाया है- जय शिवशंकर जय गंगाधर। राग शंकरा का भाव वीर रस से भरा हुआ है। इस राग में काफी दमखम और स्पष्टता  दिखाई देती है।

आइए अब आपको राग शंकरा के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। इस राग की उत्पति बिलावल थाट से हुई है।  इसे उत्तरांग प्रधान राग माना गयाहै। जिसमें कई बार वीर रस की महक भी आती है। राग शंकरा के आरोह में ‘रे’ और ‘म’ और अवरोहमें ‘म’ नहीं लगता है। इस राग की जाति औडव-षाढव है। राग शंकरा का वादी स्वर ‘प’ और संवादी स्वर ‘स’ है। किसी भी शास्त्रीय राग में वादी संवादी स्वर का वही महत्व होता है जो शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है। इस राग में सभी शुद्ध स्वर लगते हैं और इसे गाने बजाने का समय मध्यरात्रि को माना गया है। राग शंकरा को लेकर कुछ मतभेद भी है। दरअसल, ध्रुपद गायक इसे औडव- औडव जाति का राग मानते हैं। एक और परिभाषा ये भी है कि राग शंकरा में सिर्फ म नहीं लगता है इसलिए ये षाढव-षाढव जाति का राग है। बावजूद इन बातों के सबसे ज्यादा प्रचलित परिभाषा पहली वाली ही है यानी राग शंकरा के आरोह में ‘रे’ और ‘म’ और अवरोह में ‘म’ नहीं लगता है। आइए अब आपको राग शंकरा का आरोह अवरोह और पकड़ बताते हैं।

आरोहसा, , , नी ध सां

अवरोहसां नी प, नी ध, सां नी प, , रे, सा

पकड़  नी ध सां नी S, ग प (रे) ग स

राग शंकरा के स्वरूप को लेकर थोड़ा मतभेद है। ख्याल गायकी और ध्रुपद गायकी में इस राग को बरतने का तरीका थोड़ा अलग-अलग है। शास्त्रीय गायन और ध्रुपद गायकी में अगर आप इस राग को सुनेंगे तो आपको ये फर्क महसूस होगा।

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