हिंदुस्तानी संगीत का बड़ा नाम हैं वनराज भाटिया। 31 मई 1927 को मुंबई में जन्मे वनराज भाटिया ने वेस्टर्न क्लासिकल म्यूजिक की ट्रेनिंग ली थी। बावजूद इसके उन्होंने तमाम हिंदी फिल्मों में भी संगीत दिया। श्याम बेनेगल जैसे मंझे हुए निर्देशक की वो पहली पसंद थे। श्याम बेनेगल की कई फिल्मों में वनराज भाटिया ने ही संगीत दिया है। श्याम बेनेगल को वनराज भाटिया की मौलिकता पसंद आती थी। जिस तरह वो लीक से अलग हटकर फिल्में बनाते थे, वैसे ही वनराज भाटिया लीक से हटकर उन फिल्मों का संगीत। श्याम बेनेगल की ऑल टाइम ग्रेट फिल्मों में मंथन, भूमिका और मंडी में वनराज भाटिया का ही संगीत था। इसके अलावा उन्होंने श्याम बेनेगल की फिल्म जुनून और त्रिकाल का संगीत भी दिया था। इसके अलावा गोविंद निहलानी की फिल्म तमस का संगीत भी वनराज भाटिया ने ही दिया था। तमस हिंदी के बड़े लेखक भीष्म साहनी की लिखी रचना थी। इस फिल्म के संगीत के लिए वनराज भाटिया को 1988 में नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। हम वनराज भाटिया का किस्सा आपको इसलिए सुना रहे हैं क्योंकि एक नए राग की कहानी उनकी ‘लकी गायिका’ के बहाने आपको सुनाएंगे। कौन थीं ये ‘लकी गायिका’ आप ये सोचिए।
वनराज भाटिया को एक गायिका को संगीत प्रेमियों के सामने लाने का भी श्रेय जाता है। वो गायिका हैं प्रीति सागर। ऐसा नहीं है कि प्रीति सागर को पहला मौका वनराज भाटिया ने दिया था लेकिन सच यही है कि उन्होंने एक बार जब प्रीति सागर को अपनी फिल्म में गाना गवा लिया तो उसके बाद उनकी हर फिल्म में प्रीति सागर ने एक-दो गाने जरूर गाए। एक कड़वा सच ये भी है कि प्रीति सागर को वनराज भाटिया के अलावा और किसी संगीतकार ने गाने नहीं गवाए। बाद में वो जिंगल्स और छोटे बच्चों की लोरियां गाने लगीं। दरअसल, 1975 में आई फिल्म जूली का एक गाना प्रीति सागर ने गाया था। वो गाना बहुत हिट हुआ, जिसमें इंग्लिश की लिरिक्स थीं- माई हार्ट इस बीटिंग। ये गाना बहुत लोकप्रिय हुआ। इसके बाद जिस तरह श्याम बेनेगल और वनराज भाटिया की जोड़ी थी, वैसे ही वनराज भाटिया और प्रीति सागर की जोड़ी हो गई। 1975 में निशांत, 1976 में मंथन के बाद 1977 में वनराज भाटिया जब भूमिका का संगीत तैयार कर रहे थे तो उन्होंने एक लाजवाब गाना तैयार किया। जिसके बोल थे- तुम्हारे बिन जी ना लगे घर में। दरअसल, हुआ यूं कि भूमिका से पहले निशांत और मंथन में गाने ना के बराबर थे। इसलिए वनराज भाटिया प्रीति सागर को ज्यादा मौका नहीं दे पाए थे। सिवाय इसके कि फिल्म मंथन में प्रीति सागर ने ‘मेरा गाम कथा पारे’ गाना गाया था। जो जबरदस्त हिट हुआ था। इस गाने के लिए प्रीति सागर को 1978 में फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया था। ऐसे में श्याम बेनेगल ने जब भूमिका में संगीत का जिम्मा वनराज भाटिया को दिया तो उनके पास खुद को अभिव्यक्त करने का ज्यादा मौका था। दरअसल भूमिका फिल्म में 6 गाने थे। जाहिर है वनराज भाटिया को एक बार फिर प्रीति सागर की याद आई और उन्होंने इस फिल्म में दो गाने प्रीति सागर ने गवाए। ‘तुम्हारे बिना जी ना लगे घर में’ इसी में से एक है।
दिलचस्प बात ये भी है कि इस फिल्म के लिए सिवाय एक गाने में भूपिंदर सिंह के वनराज भाटिया ने उस दौर के किसी भी बड़े गायक को नहीं लिया था। तुम्हारे बिना जा ना लगे घर में को वनराज भाटिया ने शास्त्रीय राग तिलक कामोद की जमीन पर तैयार किया था, जिसे उनकी उम्मीद के मुताबिक प्रीति सागर ने बड़ी ही खूबसूरती से निभाया। वनराज भाटिया अब भी कहते हैं कि उन्होंने प्रीति सागर से उनका सर्वश्रेष्ठ काम कराया। स्मिता पाटिल पर फिल्माया गया ये गाना अब भी लोग पसंद करते हैं। इस गाने के अलावा और भी फिल्मी गीत राग तिलक कामोद के आधार पर बनाए गए। जिसमें 1960 में आई फिल्म-सारंग का ‘चली रे चली मै तो देश पराए’, 1962 में आई फिल्म-हरियाली और रास्ता का ‘तेरी याद दिल से भुलाने चला हूं’ और 1964 में आई फिल्म-दुल्हा दुल्हन का ‘हमने तुमसे प्यार किया है जितना कौन करेगा’ उतना काफी लोकप्रिय हुए। राग तिलक कामोद के स्वर राग देश से मिलते हैं लेकिन अपने खास चलन की वजह से तिलक कामोद अलग पहचान लिया जाता है। फिल्म चित्रलेखा में एक गीत तकरीबन तिलक कामोद के छोटा ख्याल जैसा था- ए री जाने ना दूंगी। तिलक कामोद का चलन चंचल किस्म का है। इस राग में छोटा ख्याल और ठुमरियां खूब गाई जाती हैं। तिलक कामोद की मिठास देखनी हो तो फिल्म उमराव जान में उस्ताद गुलाम मुस्तफा खां की गाई ठुमरी सुनिये- झूला किन्ने डाला रे अमरैया। फिल्म में इस ठुमरी का फीमेल वर्जन भी है जिसे शाहिदा ने गाया था।
आइए अब राग तिलक कामोद के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। इस राग की उत्पत्ति खमाज थाट से
मानी जाती है। इस राग का वादी स्वर ‘स’ और संवादी स्वर ‘प’ है। इस राग को गाने बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर है। इस राग के आरोह में ‘ग’ और ‘ध’ नहीं लगता है जबकि अवरोह में ‘रे’ नहीं लगाया जाता है। लिहाजा इसे औडव षाडव जाति का राग कहा जाता है। आइए अब आपको राग तिलक कामोद का आरोह अवरोह बताते हैं
आरोह– सा रे ग सा, रे म प ध म प, नी सां
अवरोह– सां प, ध म ग, सा रे ग S सा नी
राग तिलक कामोद में पंडित भीमसेन जोशी की एक रिकॉर्डिंग खूब सुनी और देखी जाती है। जो करीब 30 साल पहले एम्सटर्डम में रिकॉर्ड की गई थी। इसके अलावा ग्वालियर घराने के विश्वविख्यात कलाकार डीवी पलुष्कर की गाई राग तिलक की बंदिश ‘कोयलिया बोले’ को भी लोग खूब सुनते हैं।