आइए अब आपको राग केदार के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी जाती है। इस राग में दोनों मध्यम प्रयोग किए जाते हैं। इसके अलावा बाकी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। इस राग का वादी ‘म’ और संवादी ’स’ है। इस राग को गाने बजाने का समय रात का पहला पहर माना जाता है। इस राग की जाति औडव षाडव है। राग केदार के आरोह में में ‘रे ग’ और अवरोह में ‘ग’ वर्जित किया जाता है। इस राग का आरोह अवरोह देख लेते हैं
आरोह– सा, म, प, म प ध नी सां
अवरोह– सां नी ध प, म प ध प म, रे सा
पकड़– सम प, म प ध प म, रे सा।
इसी राग में उस्ताद मेहंदी हसन की गाई ग़ज़ल भूली बिसरी चंद उम्मीदें भी काफी लोकप्रिय है। इस राग को राग हमीर के करीब का राग भी माना जाता है।