साल 1960 की बात है। डायरेक्टर एस यू सनी एक फिल्म बना रहे थे- कोहिनूर। एस यू सनी इससे पहले भी करीब आधा दर्जन फिल्में बना चुके थे। इसमें ‘मेला’ और ‘बाबुल’ जैसी फिल्में शामिल थीं। एस यू सनी अपनी बनाई ज्यादातर फिल्मों में बतौर एक्टर दिलीप कुमार के साथ ही काम करते थे। कोहिनूर से पहले बनाई गई तीन फिल्मों में उन्होंने लगातार दिलीप कुमार को ही साइन किया था। ये फिल्में थीं ‘मेला’, ‘बाबुल’ और ‘उड़न खटोला’, हालांकि इस बार यानी कोहिनूर में दिलीप कुमार को ‘साइन’ करने के पीछे एक खास वजह थी। ऐसा कहा जाता है कि 1955 में रिलीज फिल्म-देवदास के बाद दिलीप कुमार ने लगातार कुछ ऐसी फिल्में की जिनकी बदौलत उन्हें ‘ट्रेजेडी किंग’ का टाइटिल मिल गया। ये भी कहा जाता है कि डॉक्टरों ने दिलीप कुमार को सलाह दी थी कि वो गंभीर फिल्मों की बजाए कुछ हल्की फुल्की फिल्में करें। ऐसा ना सिर्फ उन्हें इसलिए कहा गया था कि उनकी ‘इमेज’ बदलेगी बल्कि तबीयत के लिहाज से भी ये उनके लिए अच्छा रहेगा। ऐसे दौर में एस यू सनी और दिलीप कुमार एक बार फिर साथ आए और उन्होंने फिल्म की- कोहिनूर। कुछ ऐसी ही कहानी इस फिल्म की हीरोइन मीना कुमारी के साथ भी थी। जिन्हें तब तक ‘ट्रेजेडी क्वीन’ का टाइटिल मिल चुका था। इस फिल्म में अपनी उसी छवि को बदलने के लिए मीना कुमारी ने कुछ मजाकिया सीन भी किए थे। 1960 में रिलीज हुई फिल्मों में से कोहिनूर एक बेहद कामयाब फिल्म साबित हुई थी। इस फिल्म का एक गाना था- मधुबन में राधिका नाचे रे। जो आज करीब पांच दशक बाद भी बेहद सुना और पसंद किया जाता है।
इस गाने के राग की कहानी सुनाए उससे पहले एक दिलचस्प पहलू पर बात करते हैं। अगर आप इस गाने को याद करेंगे तो पाएंगे कि करीब 7 मिनट के इस गाने में शुरू के करीब 4 मिनट तक दिलीप कुमार के सामने एक सितार रखा हुआ है, जिसे वो बजा नहीं रहे हैं। इस दौरान उनकी ‘लिप सिंकिंग’ (गायक के गाने पर होंठ हिलाना) कमाल की है। इसका खास तौर पर जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इस गाने में कई जगह तानें इस्तेमाल हुई हैं और दिलीप कुमार ने उसे बेहद खूबसूरती से निभाया है। इसके अलावा गाने में जहां जहां ‘सम’ आता है वहां दिलीप कुमार बेहतरीन अभिनय करते हैं। खैर, गाना शुरू होने के 4 मिनट के बाद दिलीप कुमार सितार उठाते हैं और एक परिपक्व कलाकार की तरह वो सितार बजाते हैं। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस गाने को फिल्माने से पहले उन्होंने सितार बजाने का इतना अभ्यास किया था कि उनकी उंगलियां कट गई थीं। महीनों अभ्यास चलता रहा। फिल्म का संगीत नौशाद ने तैयार किया था और ये नौशाद साहब की चाहत थी कि स्क्रीन पर जब दिलीप कुमार सितार बजाएं तो वो नौसिखिया ना लगें। उस दौर की फिल्मों को लेकर अभिनेता की गंभीरता को समझना चाहिए कि दिलीप कुमार ने भी बाकयदा सिर्फ इस गाने के लिए सितार बजाना सीखा था। साथ ही साथ अगर आप इस गाने को ध्यान से देखेंगे तो 4 मिनट और 50 सेकेंड के करीब एक और दिलचस्प बात पर गौर कीजिएगा। दरअसल, इस गाने में नौशाद साहब ने एक और प्रयोग किया था। उन्होंने जल तरंग की आवाज निकालने के लिए चीनी मिट्टी के अलग अलग आकार की कटोरियों का इस्तेमाल किया है। जिसे एक व्यक्ति छड़ी से बजा रहा है और उससे निकलने वाली आवाज गाने को और खूबसूरत बनाती है। इस गाने के बोल शकील बदायूंनी ने लिखे थे। मधुबन में राधिका नाचे को नौशाद साहब ने राग हमीर पर तैयार किया था।
ये इस राग और गाने की खूबसूरती है कि शास्त्रीय संगीत सीखने वाले हर कलाकार से जब मंच पर फिल्मी गानों की फरमाइश होती है तो वो ये गाना जरूर गाता है। इस गाने के अलावा लोकप्रिय भजन श्री रामचंद्र कृपालु भजमन भी शास्त्रीय राग हमीर पर ही आधारित है। ये भजन संत तुलसीदास की रचना है। इस भजन को भी ज्यादातर कलाकारों ने गाया है। इस भजन को 1942 में रिलीज हुई फिल्म भरत मिलाप में भी इस्तेमाल किया गया था। इस फिल्म को विजय भट्ट ने डायरेक्ट किया था। जिन्होंने बाद में बैजू बावरा, गूंज उठी शहनाई, हरियाली और रास्ता और हिमालय की गोद में जैसी फिल्में भी बनाई।
अब आपको राग हमीर के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग हमीर की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी जाती है। इस राग में दोनों ‘म’ का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा बाकि सभी सुर शुद्ध लगते हैं। इस राग की जाति संपूर्ण मानी गई है। इस राग का वादी सुर ‘ध’ और संवादी सुर ‘ग’ है। राग हमीर को गाने बजाने का समय रात का पहला प्रहर है। राग केदार और राग कामोद को इस राग के करीब माना जाता है। आइए आपको राग हमीर का आरोह, अवरोह और पकड़ भी बताते हैं।
आरोह– सा रे सा, ग म (नी) ध– नी सां
अवरोह– सा नी ध प म (तीव्र) प ग म रे सा
पकड़– सा रे सा, ग म (नी) ध
पद्मभूषण से सम्मानित शास्त्रीय गायकों की जोड़ी राजन साजन मिश्र जी का गाया राग हमीर खूब सुना जाता है। जिसके बोल हैं- कैसे घर जाऊं।