इस कहानी के तीन किरदार हैं। तीनों कला की अलग अलग दुनिया से हैं लेकिन तीनों में एक रिश्ता है। वो रिश्ता है संगीत का। इन तीनों किरदारों में से पहले किरदार हैं विश्वविख्यात संतूर वादक पंडित शिवकुमार शर्मा। दूसरे हैं जाने-माने अभिनेता शशि कपूर और तीसरे लोकप्रिय एंकर और अभिनेता अनु कपूर। अनु कपूर टीवी के कार्यक्रम अंत्याक्षरी की एंकरिंग के साथ साथ कई सुपरहिट फिल्मों में ‘कैरेक्टर रोल’ में हिट रहे हैं। पिछले दिनों फिल्म जॉली एलएलबी-2 में उनके अभिनय को बहुत सराहा गया था। इसके अलावा इन दिनों वो रेडियो पर एक बेहद लोकप्रिय शो भी होस्ट किया करते हैं। हुआ यूं कि एक बार अनु कपूर ने शशि कपूर के सामने एक ‘डिमांड’ रख दी। डिमांड भी ऐसी जो यूं तो बहुत मुश्किल नहीं थी लेकिन थी थोड़ी अटपटी। दरअसल अनु कपूर ने शशि कपूर से कहाकि वो उन्हें पंडित शिवकुमार शर्मा का अपाइंटमेंट दिलवा दें। शशि कपूर को लगा कि अनु कपूर शायद पंडित शिवकुमार शर्मा से सीखना चाहते हैं। बाद में जब अनु कपूर ने कहाकि वो शिव जी के बड़े फैन हैं और सिर्फ उनसे मुलाकात करना चाहते हैं तो शशि कपूर ने वायदा किया कि वो उन्हें शिव जी से जरूर मिलवा देंगे। शशि जी ने शिव जी से बात की और मुलाकात का समय फिक्स हो गया। अनु कपूर ने शिव जी से मुलाकात की। ढेरों बात की। चलते-चलते कहा कि उन्हें पंडित जी का बजाया एक राग बहुत ज्यादा पसंद है। पंडित जी ने पूछा- कौन सा राग? जवाब मिला- गोरख कल्याण।
असल में पंडित शिवकुमार शर्मा की शशि कपूर से दोस्ती थी। आप जानते ही हैं कि पंडित शिवकुमार शर्मा और विश्वविख्यात बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने कई हिंदी फिल्मों में शिव-हरि के नाम से संगीत दिया है। इस जोड़ी के निर्देशन में बनी सभी फिल्मों का संगीत लाजवाब रहा है। सिलसिला, चांदनी, डर, लम्हें जैसी फिल्मों के नाम तुरंत याद आते हैं। फिल्म सिलसिला में शशि कपूर का एक छोटा सा ‘गेस्ट अपीयरेंस’ भी था, जो बाद में शिव जी के साथ गहरी दोस्ती में बदल गया। इसीलिए अनु कपूर ने शिव जी तक पहुंचने का रास्ता शशि जी के जरिए निकाला। ये मुलाकात अभी तक दोनों को याद है। ये मुलाकात इसलिए भी खास थी क्योंकि अनु कपूर बताते हैं कि ये उनके जीवन का इकलौता मौका है जब वो किसी से समय लेकर मिलने गए थे। इसके पीछे अनु कपूर का संगीत को लेकर जुनून था। तमाम टीवी कार्यक्रमों में दर्शक उन्हें बहुत ही सुरीला गाते देख और सुन चुके हैं। पंडित शिवकुमार भी अनु कपूर की संगीत की समझ की तारीफ करते हैं।
राग गोरख कल्याण खयाल गायकी के लिहाज से तो काफी लोकप्रिय है लेकिन फिल्मी गाने इस राग में ज्यादा नहीं मिलते। हालांकि तबले के उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने संगीत निर्देशन में बनी फिल्म साज़ में इस राग का बहुत खूबसूरत इस्तेमाल किया है। साज़ में राग गोरख कल्याण पर आधारित एक गीत है- फिर भोर भई जागा मधुबन। देवकी पंडित के गाए इस गीत को सुनते ही राग गोरख कल्याण की याद आ जाती है
आइए अब आपको हमेशा की तरह राग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग गोरख कल्याण खमाज थाट का राग है। इस राग में कोमल ‘नी’ लगता है। इसके अलावा बाकि सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। इस राग के आरोह में ‘ग’ और ‘प’ नहीं लगता है। जबकि अवरोह में ‘ग’ नहीं लगता है। इस राग का वादी स्वर ‘स’ और संवादी स्वर ‘म’ है। वादी और संवादी स्वर के बारे में हम बताते आए हैं कि वादी-संवादी स्वर का किसी भी राग में वही महत्व होता है जो शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है। नाम से जरूर ऐसा लगता है कि राग गोरख कल्याण राग कल्याण का एक प्रकार है लेकिन स्वरूप में ये राग कल्याण से बिल्कुल अलग है। इसीलिए संगीत के कई जानकार इसे सिर्फ राग गोरख कहा करते हैं। राग गोरख कल्याण, राग दुर्गा और बागेश्वरी के करीब का राग है। राग गोरख कल्याण मंद्र सप्तक में अधिक खिलता है। खास तौर पर जब मंद्र ‘नी’ पर कलाकार जोर देते हैं तो ये राग दुर्गा और बागेश्वरी से अलग दिखाई देने लगता है। आइए अब आपको इस राग के आरोह अवरोह और पकड़ के बारे में बताते हैं।
आरोह- सा सा रे म, सां ध S नी ध सां
अवरोह- सां ध प ध नी ध प म, रे म रे सा ऩी S ध़ सा
पकड़- नी ध म, रे म रेसाऩी S ध़ S सा, रे म
राग गोरख कल्याण की जमीन पर कुछ और हिंदी फिल्मों के गाने भी कंपोज किए गए हैं जिसमें जाने-माने संगीतकार नौशाद का तैयार किया गया गाना- दिल की कश्ती अब भी सुना और पसंद किया जाता है। ये गाना 1967 में रिलीज हुई फिल्म-पालकी में था जिसे लता मंगेशकर ने गाया था। ये गाना वहीदा रहमान पर फिल्माया गया था। संगीतकार नौशाद को अपनी फिल्मों में शास्त्रीय रागों के खूबसूरती से प्रयोग के लिए अब भी याद किया जाता है।