साल 1964 में वी शांताराम की एक फिल्म आई थी- गीत गाया पत्थरों ने. संगीत दिया था ‘सेहरा’ में ‘पंख होते तो उड़ आती रे’ और ‘तकदीर का फसाना’ जैसे मधुर गीत दे चुके संगीतकार रामलाल ने. इस फिल्म का टाइटिल सॉन्ग मार्केट में आया तो एक नाम रातों-रात चर्चा में आ गया. ये नाम था किशोरी अमोनकर का
शास्त्रीय संगीत की दुनिया में आज इस नाम को प्यार और सम्मान से ‘किशोरी ताई’ कहा जाता है. ‘गान सरस्वती’ कहा जाता है. किशोरी अमोनकर जयपुर अतरौली घराने से ताल्लुक रखती हैं. उनकी मां मोगूबाई कुर्दीकर अपने समय की जानी-मानी शास्त्रीय गायिका थीं. मोगूबाई कुर्दीकर जयपुर अतरौली घराने के उस्ताद अल्लादिया खां साहब की शिष्या थीं. उनकी समकालीन और गुरु बहन थीं मशहूर गायिका केसरबाई केरकर. किशोरी अमोनकर का जन्म 10 अप्रैल 1931 को मुंबई में हुआ. बहुत छोटी थीं तभी पिता साथ छोड़ गए. तीन बहन-भाइयों में किशोरी सबसे बड़ी थीं. उन्होंने बचपन में बहुत संघर्ष देखा. पैसों की तंगी थी, एक कमरे में घर में पूरा परिवार रहता था. मां मोगूबाई कुर्देकर को गाना गाकर घर चलाना था. लेकिन मोगूबाई कुर्देकर ने बच्चों को पढ़ाई लिखाई भी कराई और संगीत भी सिखाया .
किशोरी अमोनकर बताती हैं कि मां कॉन्सर्ट के लिए जाती थीं तो ट्रेन से थर्ड क्लास में सफर करती थीं, रात भर का सफर होता था तो सोती नहीं थीं. किशोरी को तानपुरे पर संगत के लिए अपने साथ ले जाती थीं. मां के कंधे पर सिर टिकाकर ट्रेन में बैठे-बैठे पूरी रात गुजर जाती थी. मोगूबाई कुर्देकर रोज दस-दस घंटे रियाज़ करती थीं. कड़े रियाज़ का वही संस्कार किशोरी जी को भी मिला.
मां की इच्छा के मुताबिक किशोरी ने संगीत का हर पहलू सीखा- क्लासिकल भी, सुगम संगीत भी, मराठी गाने भी, भजन भी. मां के अलावा किशोरी अमोनकर ने उस्ताद अनवर हुसैन खां, पंडित बालकृष्ण बुआ, मोहन रावजी पालेकर, शरतचंद्र आरोलकर और अंजनीबाई मालफेकर से भी तालीम ली. ये वो दौर था जब शास्त्रीय गायकी में मर्दों का दबदबा था, महिला शास्त्रीय गायिकाओं को बहुत सम्मान नहीं मिलता था. लेकिन किशोरी ने अपनी मां की तरह अपने लिए ऊंचा मकाम बनाया.
कर्नाटक संगीत के गुरु पंडित बालमुरली कृष्णा के साथ भी किशोरी अमोनकर ने कई कॉन्सर्ट किए हैं
‘गीत गाया पत्थरों ने’ के बहुत साल बाद साल 1990 किशोरी अमोनकर शेखर कपूर की फिल्म दृष्टि में एक गाना गाया- मेहा झर झर बरसत रे. फिल्म में संगीत भी किशोरी अमोनकर का ही था
लेकिन बाद में उन्होने फिल्मी दुनिया से किनारा कर लिया. एक इंटरव्यू में किशोरी जी ने कहा – ‘मुझे नहीं लगता कि मैं फ़िल्मों में दोबारा गाऊंगी, मेरे लिए स्वरों की भाषा बहुत कुछ कहती है, यह आपको अद्भुत शांति में ले जा सकती है और आपको जीवन का बहुत सा ज्ञान दे सकती है, इसमें शब्दों और धुनों को जोड़ने से स्वरों की शक्ति कम हो जाती है ‘ किशोरी जी के जीवन में एक वक्त ऐसा भी आया जब उनकी आवाज चली गई, लेकिन मां सरस्वती की कृपा थी कि आयुर्वेदिक इलाज के बाद उन्हें खोई हुई आवाज़ वापस मिल गई.
किशोरी अमोनकर का संगीत आध्यात्मिक है. भक्ति से भरा है. साधना से पैदा हुआ है. वो बताती हैं कि मां ने सिखाया- म्यूजिक कोई एंटरटेनमेंट नहीं है, एंजॉयमेंट नहीं है. म्यूजिक ईश्वर की साधना है, सुर ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता हैं. इसलिए किशोरी अमोनकर जब गाती हैं तो मानो सिर्फ ईश्वर के लिए गाती हैं.
किशोरी अमोनकर आज हिंदुस्तान के वरिष्ठ और शीर्षस्थ गायिकाओं में गिनी जाती हैं. उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण, संगीत साम्राज्ञी, आईटीसी संगीत पुरस्कार जैसे तमाम सम्मानों से नवाजा जा चुका है. देश और दुनिया में उनका नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है.
गायिका के अलावा किशोरी जी एक श्रेष्ठ गुरु भी हैं. उनकी तालीम ने मानिक भिड़े, अश्विनी भिड़े देशपांडे, आरती अंकलेकर जैसे मंजे हुए कलाकार पैदा किए हैं. अमोल पालेकर ने किशोरी अमोनकर के जीवन और संगीत सफर 72 मिनट की डॉक्यूमेंट्री बनाई है, नाम है- भिन्न षड़ज. फिल्म का बड़ा हिस्सा मराठी में है लेकिन संगीत के छात्रों और रसिकों को ये फिल्म ज़रूर देखनी चाहिए.