हमारे देश में छोटी उम्र में अद्भुत, अलौकिक प्रतिभाएं यानी चाइल्ड प्रॉडिजीज़ बहुत मिलती हैं लेकिन ऐसी ज्यादातर प्रतिभाएं बड़े होने पर अपनी वो खास पहचान खो देती हैं. ऐसे बिरले ही होते हैं जो अपनी बढ़ती उम्र के साथ लोगों की बढ़ती उम्मीदों को पूरा कर सकें. किराना घराने के गायक अरशद अली खान को ऐसे बिरले लोगों में शामिल किया जा सकता है.
पहली बार अरशद अली खान को सुना था तो वो करीब 8 साल के थे. प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद में आईटीसी का कॉन्सर्ट था. सफेद कुर्ता पायजामा पहने छोटे से बच्चे ने राग पूरिया कल्याण गाना शुरू किया. एक ताल की अति विलंबित लय में. बंदिश थी- आज सो बन. आंखों और कानों पर यकीन करना मुश्किल था. आवाज़ बच्चे की थी, स्केल बच्चे का था इसलिए आंख बंद करके सुनने पर लगता था कि सधे सुरों में कोई महिला कलाकार गा रही हैं. बड़ा खयाल के बाद छोटा खयाल- मोहे घर आजा. खेल-खेल में मुश्किल सरगम और तेज़ तानें लेते हुए उस्तादी के साथ सम पर आना. सुननेवाले अवाक थे.
अरशद अली खान अब युवा हैं, आज भी पूरिया कल्याण बड़े मन से गाते हैं
अरशद की इस तैयारी के पीछे उनका रियाज़ तो है ही, लेकिन जिन्होंने इस हीरे तो तराशा वो हैं अरशद के मामा उस्ताद मशकूर अली खान और उस्ताद मुबारक अली खान. अरशद सारंगी नवाज पद्मश्री उस्ताद शकूर खान के पोते हैं. बहुत छोटी उम्र में मामा लोगों के अंडर में गुरु शिष्य परंपरा के तहत अरशद की ट्रेनिंग शुरू हो गई थी. साल 1988 में जब अरशद 4 साल के थे, तभी कोलकाता में चलनेवाली ITC संगीत रिसर्च एकेडमी की ओर दिल्ली में एक टैलेंट हंट शो रखा गया. जजेज ने अरशद को सुना तो भौंचक्के रह गए. अरशद सलेक्ट हुए और आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी का हिस्सा बने. 6 साल की उम्र में उन्हें आईटीसी संगीत रिसर्च एकेडमी में स्कॉलर का दर्जा मिल गया.
ITC SRA में भी अरशद की तालीम उस्ताद मशकूर अली खान के मार्गदर्शन में ही जारी रही. जुलाई 2009 में अरशद ITC SRA में म्यूजिशियन स्कॉलर का दर्जा हासिल कर चुके थे और 2012 आते आते वो इसी एकेडमी में ट्यूटर बन गए. अपने उस्ताद से अरशद को एक से बढ़कर एक दुर्लभ बंदिशों का खज़ाना मिला है.
अपनी प्रतिभा की वजह से अरशद बचपन से ही छोटे उस्ताद के तौर पर मशहूर होने लगे थे. 1993 में 9 साल की उम्र में अरशद को सवाई गंधर्व सम्मेलन में गाने का मौका मिला. किराना घराने के सिरमौर भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी ने अपनी 75वीं सालगिरह पर अरशद को खास न्योता दिया था. इस सम्मेलन में 9 साल के अरशद अली खान को ‘बिगेस्ट सेंसेशन’ कहा गया. पंडित भीमसेन जोशी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि अरशद ने अपने नन्हें कंधों पर किराना घराने की गायकी की समृद्ध परंपरा को बड़ी खूबसूरती से उठा रखा है
मेरुखंड स्टाइल के सुरीले आलाप, नाभि से निकलती हुई गंभीर आवाज, तालचक्र के दायरे में खेलते हुए बोल आलाप, बोल तानें और बिजली की रफ्तार वाली तानकारी. क्या मजाल कि सुर ज़रा भी हिल जाए. सरगम और तानों की स्पीड और सफाई, साथ ही अरशद का पूरा बॉडी लैंग्वेज रामपुर सहसवान घराने के उस्ताद राशिद खान की याद दिला जाता है. वैसे अरशद पर राशिद खान का प्रभाव हो भी सकता है क्योंकि राशिद भी आईटीसी एसआरए के प्रोडक्ट हैं और अरशद के सीनियर हैं
अरशद अली कैसे संगीतमय परिवार से आते हैं इसका अंदाजा आपको इस वीडियो से हो जाएगा. जरा देखिए परिवार के एक सदस्य अमजद अली की सेहरा बंधाई के मौके पर किस तरह मंगल गीत के तौर पर राग शहाना की बंदिश गाई जा रही है
अरशद अली खान के नाम उपलब्धियों की लंबी लिस्ट है. 2002 में जादू भट्ट पुरस्कार, 2010 में भारतीय संस्कृति संसद की ओर से बेस्ट वोकलिस्ट, 2011 में रसा एंड मेल्टिंग पॉट प्रोडक्शंस की ओर से बेस्ट यंग टैलेंट ऑफ द ईयर, एचएमवी, सारेगामा जैसे लेबल से कई अलबम और देश-विदेश के सबसे प्रतिष्ठित संगीत समारोहों शिरकत. हिंदुस्तान के अलावा यूरोप और मिडिल ईस्ट में हिंदुस्तानी संगीत सुननेवालों में अरशद अपनी पहचान बना रहे हैं. लेकिन अरशद के सामने अभी उम्र पड़ी है, अरशद को अभी बहुत आगे जाना है, बहुत नाम कमाना है.