Forms of Music की सीरीज में पिछली बार हमने आपको शास्त्रीय संगीत की सबसे पुरानी विधा ध्रुपद के बारे में बताया था। ध्रुपद गायकी के बाद अब आपको ले चलते हैं शास्त्रीय गायकी के घरानों की तरफ। आपने निश्चित तौर पर सुना होगा कि फलां कलाकार फलां घराने के थे और फलां कलाकार फलां घराने के। मसलन- भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी किराना घराने के थे। पंडित जसराज जी मेवाती घराने के। ऐसे तमाम उदाहरण सामने आते हैं। इन घरानों के फर्क को समझने के लिए शास्त्रीय संगीत की बहुत बारीक समझ होनी चाहिए। लेकिन आसान शब्दों में कहें तो किसी एक रचना को निभाने के तरीके में जो फर्क है वही इन घरानों की पहचान है। आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि हर कलाकार किसी न किसी घराने से हो ऐसा जरूरी नहीं। कई कलाकार घरानों की परंपरा से अलग हटकर भी संगीत साधना करते हैं। ऐसे कलाकारों में पंडित कुमार गंधर्व का नाम अग्रणी है। जो किसी भी घराने में बंधकर गायकी नहीं करते थे। खैर, चलिए आज अपनी इस खास श्रृंखला में बात भारतीय शास्त्रीय संगीत के घरानों की।
शास्त्रीय संगीत में घरानों की परंपरा बड़ी पुरानी है। आपको बताते हैं कि ख्याल गायकी में कौन कौन से घराने मशहूर हुए। उनकी क्या खासियत है और उनके बड़े कलाकार कौन-कौन से हैं?
ग्वालियर घराना सबसे पुराना माना जाता है
ख्याल गायकी में ग्वालियर घराने को सबसे पुराना माना जाता है। इस घराने को शुरू करने वालों में हद्दू-हत्थू और निसार हुसैन खान का नाम प्रमुख है। इसके अलावा ग्वालियर घराने में नत्थन पीरबख्श का योगदान भी अहम माना जाता है। ग्वालियर घराने की गायकी में स्वरों की बढ़त सरल होती है। गंभीर किस्म की गायकी इस घराने की बड़ी पहचान है। गंभीर किस्म की पहचान के पीछे पारंपरिक बंदिशों का गाया बजाना जाना है। किसी भी राग के बीच में पेश की जाने वाली तानें भी इस घराने में बड़ी विविधता के साथ पेश की जाती हैं। संगीत सम्राट विष्णु दिगंबर पलुस्कर इसी घराने से थे। आपको बता दें कि विष्णु दिगंबर पलुस्कर महान कलाकार डीवी पलुस्कर के पिता थे। उनके अलावा इस घराने के बड़े कलाकारों में पंडित बालकृष्ण करंजिकर, पंडित ओंकार नाथ ठाकुर, वीणा सहस्रबुद्धे और मालिनी राजोलकर का नाम लिया जाता है। पंडित एलके पंडित, पंडित शंकर राव पंडित भी ग्वालियर घराने की बड़ी पहचान हैं। मौजूदा समय में मीता पंडित ग्वालियर घराने की गायकी परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।
बेहद लोकप्रिय है शास्त्रीय गायकी का किराना घराना
भारत रत्न से सम्मानित किए गए पंडित भीमसेन जोशी किराना घराने से ही थे। किराना घराना का प्रतिनिधि गायक अब्दुल करीब खान को माना जाता है। महान कलाकार सवाई गंधर्व भी किराना घराने से ही थे। इस घराने की गायकी में मींड और गमक को वीणा के सुर की तरह पैदा किया जाता है। सुरों की साधना इस घराने के कलाकारों की पहचान है। ऐसा भी माना जाता है कि इस घराने के गायक तानपुरे को ‘प’ की बजाए ‘नी’ पर ट्यून कराते हैं। ये किराना गायकी की पहचान है। हीराबाई बरोड़कर, गंगूबाई हंगल और प्रभा आत्रे जैसे जाने माने और विश्व विख्यात कलाकार किराना घराने की परंपरा को बहुत आगे ले गए हैं।
उस्ताद बड़े गुलाम अली खान वाला पटियाला घराना
पटियाला घराना ख्याल गायकी के बड़े घरानों में गिना जाता है। इस घराने के प्रतिनिधि गायकों में अली बख्श और फतेह अली खान की गिनती होती है। हालांकि इस घराने की लोकप्रियता बड़े गुलाम अली खान के आने के बाद से बढ़ी। इस घराने में ठुमरियों की गायकी पर महारत हासिल है। इस घराने की गायकी में भावपक्ष पर भी काफी जोर दिया जाता है। मंद्र, मध्य और तार यानी तीनों सप्तक में इस घराने के कलाकार अपनी द्रुत ताने प्रस्तुत करते हैं। इस घराने के मौजूदा कलाकारों में पंडित अजय चक्रवर्ती का नाम पूरी दुनिया में विख्यात है। उनके अलावा परवीन सुल्ताना भी खासी मशहूर हैं। बड़े गुलाम अली खान का जिक्र हुआ है तो उनकी ठुमरी सुने बिना कैसे आगे बढ़ सकते हैं। ठुमरी के बोल हैं- याद पिया की आए
मेवाती घराने की पहचान हैं पंडित जसराज
इस घराने के प्रतिनिधि गायक नाज़िर खान थे। इस घराने की गायकी में वैष्णव भक्ति का प्रभाव भी सुनने को मिलता है। इस घराने के गायक आम तौर पर अपनी गायकी खत्म करने से पहले एक भजन जरूर सुनाते हैं। विश्वविख्यात कलाकार पंडित जसराज इस घराने के मौजूदा प्रतिनिधि कलाकार हैं। नए कलाकारों में पंडित संजीव अभ्यंकर का नाम भी बड़े अदब से लिया जाता है।
जयपुर- अतरौली घराने की देन हैं एक से बढ़कर एक कलाकार
शास्त्रीय संगीत की दुनिया में मल्लिकार्जुन मंसूर, केसरबाई, किशोरी अमोनकर, श्रुति साडोलकर, पद्मा तलवलकर और अश्विनी भीड़े देशपांडे जैसे नामचीन कलाकारों का क्या कद है ये बताने की जरूरत नहीं है। ये सभी कलाकार अतरौली घराने के हैं। इस घराने की शुरूआत महान कलाकार अल्लादिया खान ने की थी। इस घराने की गायकी को कठिन इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इसमें वक्र स्वर समूहों को प्रस्तुत किया जाता है। आपको हाल ही में अपने लाखों चाहने वालों को अलविदा कह गईं किशोरी ताई की गायकी सुनाते हैं।
आगरा का भी है अपना शास्त्रीय घराना
फैयाज खान साहब को आगरा घराने की शुरूआत करने वाला माना जाता है। दरअसल आगरा घराने की पहचान पहले ध्रुपद गायकी में थी बाद में ख्याल गायकी में भी इस घराने के कलाकारों ने अपनी अलग पहचान बनाई। आगरा घराने की गायकी को दमदार गायकी कहा जाता है क्योंकि इस घराने के गायक स्वरों में दमदारी के साथ प्रस्तुति देते हैं। इस घराने की गायकी में लयकारी का महत्व काफी ज्यादा है। इस घराने के बड़े कलाकारों में सीए व्यास, जितेंद्र अभिषेकी, विजय किचलू, सुमति मुटाटकर का नाम लिया जाता है।
रामपुर सहसवां घराना भी है गायकी का मशहूर घराना
भारतीय शास्त्रीय संगीत के घरानों में रामपुर सहसवां का भी विशेष महत्व है। इसका प्रतिनिधि गायक उस्ताद इनायत हुसैन खान को माना जाता है। इस घराने में कलाकार गायकी में एक एक सुर के साथ बढ़त लेते हैं। आलाप की शुरूआत बंदिश के साथ ही करने वाले रामपुर सहसवां के कलाकारों ने बंदिश के साहित्य पर बहुत ध्यान दिया है। उस्ताद इनायत खान के अलावा उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान, उस्ताद निसार हुसैन खान और राशिद खान इस घराने के प्रमुख गायक हैं। राशिद खान इस वक्त देश के सबसे नामचीन शास्त्रीय गायकों में से एक हैं। उन्होंने शास्त्रीय गायकी को बड़ी बुलंदियों तक पहुंचाया है।
और अंत में आपको पंडित कुमार गंधर्व की गायकी सुनाते हैं जो घरानों की परंपरा से अलग थे। ऐसे और भी कई कलाकार हैं जिन्होंने खुद को किसी घराने की बंदिश में नहीं बांधा और बहुत नाम कमाया। पंडित कुमार गंधर्व का अमर भजन