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बॉलीवुड के सुपरहिट प्लेबेक सिंगर पंकज उधास का गाना चिट्ठी आयी है तो आप सबने सुना है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस गाने का ख्याल कब आया और फिर ये गाना कैसे बना। हर गाने की अपनी जर्नी होती है उसी तरह से इस सुपरहिट गाने की भी अपनी जर्नी है जो बेहद दिलचस्प है। रागगिरी से हुई खास बातचीत में पंकज उधास ने फिल्म नाम के गाने चिट्ठी आयी है के पीछे की पूरी कहानी हमारे साथ शेयर की और बताया कि किस तरह वो आज भी जब ये गाना अपने किसी कॉन्सर्ट में गाते हैं तो लोग रोने लगते हैं।

आपका गाना चिट्ठी आयी है सुपर डुपर हिट हुआ लेकिन इसके पीछे की कहानी क्या है?

फिल्म नाम के गाने चिट्ठी आई है के पीछे इतनी कहानियां हैं कि मैं पूरी एक किताब लिख सकता हूं। 1984 में मेरा एक कॉन्सर्ट लंदन के रॉयल एल्बर्ट हॉल में हुआ था। उसी कार्यक्रम में मैंने पहली बार गाया था- ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल। इसके बाद मेरी ‘पॉपुलैरिटी पीक’ पर थी। पूरी दुनिया में पंकज उधास के नाम का एक ‘क्रेज’ सा बना हुआ था। इसी दौरान मशहूर लेखक सलीम-जावेद की जोड़ी अलग हुई। इन दोनों के बीच जो भी ‘मिसअंडरस्टैंडिग’ हुई हो लेकिन दोनों ने ‘ऑफिशयली  डिक्लेयर’ करने अलग होने का फैसला किया। उसी समय मशहूर अभिनेता राजेंद्र कुमार अपने बेटे कुमार गौरव को फिर से एक बार बड़े पैमाने पर ‘रीलॉन्च’ करना चाहते थे। उसी वक्त तय हुआ कि उस फिल्म की कहानी सलीम साहब लिखेंगे। सलीम जावेद की जोड़ी टूटने के बाद ये सलीम साहब की पहली फिल्म थी। वो भी बहुत जोश से भरे हुए थे। उन्हें भी साबित करना था कि वो अकेले भी लिख सकते हैं। उनकी कहानी का हिस्सा था कि संजय दत्त हिंदुस्तान से चला गया है और वो ऐसा कुछ ‘क्रिएट’ करना चाहते थे जिससे संजय दत्त का अहसास हो कि वो देश के बाहर क्या कर रहा है उसे अपने मुल्क वापस लौटना चाहिए। वो कोई हादसा हो, ऐसी बात हो जिससे संजय दत्त को अपने वतन लौटने की समझ आए। इस पर पूरी टीम के बीच कई बार ‘डिस्कशन’ हो चुका था। जो मुझे बाद में पता चला।

इस गाने में आपको भी फिल्माया गया है इसके पीछे ही कहानी क्या है क्योंकि प्लेबैक सिंगर बहुत कम ही फिल्मों में स्क्रीन पर इस तरह दिखते हैं?

फिर सलीम साहब ने ही ये आइडिया दिया कि इस ‘प्वाइंट’ पर एक ऐसा गाना होना चाहिए जिसको सुनकर संजय दत्त के दिल में ये बात उठती है कि उसे अब हर हार में वतन वापस लौटना है। महेश भट्ट साहब उस फिल्म के डायरेक्टर थे। फिर बात यहां पहुंची कि एक ऐसा सीन हो कि एक लाइव प्रोग्राम चल रहा है जिसमें संजय दत्त जाते हैं और वहां ही उन्हें भावुक होकर घर वापस लौटने की बात समझ आती है। फिर तय हुआ कि ये लाइव प्रोग्राम किसी बहुत ही ‘पापुलर’ कलाकार का होना चाहिए। ऐसे कलाकार से कराना चाहिए जो उस वक्त सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो। ‘प्रेजेंटेबल’ और ‘यंग’ भी हो। तब मेरा नाम आया। तब तक ये तय नहीं था कि ये गाना फिल्माया किसपर जाएगा। फिर सलीम साहब ने ही जोर दिया कि पंकज उधास इसके लिए बिल्कुल मुफीद हैं। उन्होंने कहाकि अगर हमें ‘रीयल सिचुएशन’ बनानी है तो पंकज उधास को ही गाना है, हमें उन्हीं पर इसे फिल्माना भी चाहिए। ताकि पूरा का पूरा सीन बिल्कुल ‘नैचुरल’ लगे  कि पंकज उधास का कॉन्सर्ट चल रहा है। संजय दत्त उस कॉन्सर्ट को देखने गए हैं और वहां  उनका ‘चेंज ऑफ हार्ट’ होता है। इस तरह वो गाना हुआ। फिल्म सुपरहिट हुई। गाना सुपरहिट हुआ। मेरी पहचान ही अलग बन गई। वो गाना आनंद बक्षी साहब ने लिखा था। चूंकि मैं खुद विदेश में रहकर वापस वतन लौटा था इसलिए वो दर्द उस गाने में उतर कर आया।

इतने साल बाद जब आप इस गाने को दोबारा सुनते हैं तो क्या वही सेम फीलिंग आती है?

आज तीन दशक से भी ज्यादा का समय बीत गया है लेकिन वो गाना उसी तरह पसंद किया जाता है। हजारों लोग मुझे मिले हैं जो कहते हैं कि वो जब भी गाना सुनते हैं उनकी आंखे भर आती हैं। मैं खुद भी आजतक जब भी इस गाने को गाता हूं मेरा गला भर आता है। वो अहसास… वो ‘फीलिंग’ आ ही जाती है। मेरे साथ साथ मेरे साथी कलाकारों की आंखे नम होती हैं।

क्या कभी कॉन्सर्ट में ये गाना गाते समय आपको भी रोना आया है?

मुझे याद है कि एक बार हम लोग अमेरिका के दौरे पर थे। लगातार कॉन्सर्ट चल रहे थे। 12-13 कॉन्सर्ट थे लगातार। टूयर लंबा होता जा रहा था। आखिरी कार्यक्रम वॉशिंगटन में था। हम लोग वॉशिंगटन पहुंचे। उस कॉन्सर्ट के बाद ही हम लोगों को वापस इंडिया लौटना था। ये बात हर किसी के जेहन में थी। कार्यक्रम शुरू हुआ। चिट्ठी आई है की फरमाइश हुई। मैंने गाना शुरू किया। अभी दूसरा पैरा ही गाया था कि सामने की ‘रो’ में बैठे हर इक शख्स को मैंने आंसू पोंछते देखा। हर कोई अपनी अपनी आंखे पोंछ रहा था। मुझे भी ‘फीलिंग’ हुई कि अब आगे गाना मुश्किल होगा। एकाध सेकंड के बाद जब अपने बगल की तरफ देखा तो मेरे साथ तबला बजाने वाले साथी कलाकार रो रहे थे। दूसरी तरफ नजर गई तो वॉयलिन बजाने वाले रो रहे थे। सभी की आंखों में आंसू छलक रहे थे। यहीं से मेरी हालत और खराब होने लगी और आखिर में तीसरा पैरा मैंने शुरू तो किया लेकिन मुझसे भी नहीं गाया गया। मुझे गाना रोकना पड़ा। मैंने ‘ऑडिएंस’ से माफी मांगी और कहाकि मुझे दो मिनट का समय दीजिए। इन दो मिनटों में मैंने पानी पीया। खुद को संभाला और फिर जाकर वो गाना खत्म किया। ये तो हमारे साथ हर बार हुआ है। आज भी मेरे हर ‘कॉन्सर्ट’ में सबसे ज्यादा फरमाइश इसी गाने की होती है। वो गाना ही ऐसा बन गया है कि उसकी फरमाइश हमेशा रहेगी। इसके अलावा एक और फिल्म का गाना है जिसकी फरमाइश बहुत होती है। वो फिल्म थी साजन, जिसका गाना था- ‘जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके, लगता नहीं दिल कहीं बिन आपके’। इसके अलावा जिन गानों की फरमाइश सबसे ज्यादा होती है, उसमें से ‘निकलो ना बेनकाब जमाना खराब है’, ‘चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी बाकि सब कंगाल’, ‘मोहे आई ना जग से लाज मैं इतना झूम के नाची आज कि घुंघरू टूट गए’, ‘दीवारों से मिलकर रोना अच्छा लगता है’, ‘हुई महंगी बहुत ही शराब कि थोड़ी थोड़ी पिया करो’, ‘मैं कहां जाऊं होता नहीं फैसला, इक तरफ उसका घर एक तरफ मयकदा’। ये वो गजलें हैं जिनको सुनने वालों ने बेइंतहा प्यार दिया है।

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