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पंडित हरि प्रसाद चौरसिया ने बॉलीवुड में कई सुपरहिट फिल्में की। बॉलीवुड फिल्म सिलसिला, फासले, लम्हे, चांदनी, डर ऐसी सुपरहिट फिल्में हैं कि इनका संगीत आज तक लोगों को पसंदीदा संगीत है। एक बांसूरी वादक के तौर पर संघर्ष  कर रहे पंडित हरि प्रसाद चौरसिया जी को इतनी बड़ी बॉलीवुड फिल्में कैसे मिलीं और उन्हंने कैसे इस सफलता को पाने के लि संघर्ष किया इस बारे में उन्होंने रागगिरी से हुई खास बातचीत में बताया। पंडित हरि प्रसाद चौरसिया अकेले नहीं थे बल्कि इस संघर्ष में उनके जोड़ीदार शिवकुमार शर्मा भी शामिल हैं। आइए पंडित जी से ही जानते हैं उनके बॉलीवुड में आने से लेकर सुपरहिट हो जाने तक की पूरी कहानी

आपको मुंबई में काला पानी की सजा के तौर पर समझकर आपसे जलने वाले लोगों ने आपका ट्रांसफर करवाया था लेकिन ये सजा आपके लिए सपनों को सच करना का माध्यम कैसे बनीं इस बारे में हमें बताइए

मुंबई का काला पानी मेरे लिए सफेद पानी की तरह निकला। वहां रेडियो के कार्यक्रम कर ही रहा था कि फिल्मी दुनिया के कुछ बड़े संगीतकारों ने भी मेरी बांसुरी सुनी और मुझे बुला लिया। मदन मोहन साहब हों, रोशन हों इन लोगों ने मुझे बुलवाया। उनके लिए बांसुरी बजाई तो बस समझिए की भीड़ लग गई। फिल्म का काम तो बहुत जोर से चला। रेडियो में तो बहुत कम पैसे मिलते थे, यही सोचकर मुझे मुंबई भेजा भी गया था। लेकिन ईश्वर की कृपा से सब बहुत अच्छा हो गया। बाद में मुझे ही रेडियो छोड़ना पड़ा कि अब मैं नहीं कर सकता हूं। उस जमाने में जितने भी संगीत निर्देशक थे सभी का अपना अपना घराना था। उनकी अलग अलग पहचान थी। मान लीजिए कि अगर कहीं गाने के साथ उनका नाम ना भी लिखा हो तो लोग बता देते थे कि ये फलां संगीतकार का गाना है। उन लोगों के साथ काम करके मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। वो बड़े अच्छे लोग थे। बड़ी इज्जत करते थे। उनके घरों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। मुझे याद है कि एक दफा बेगम अख्तर का कार्यक्रम रखा गया था। ऐसे कार्यक्रमों में बहुत कमाल की बातें हुआ करती थीं।

बॉलीवुड में आपको काम तो खूब मिला लेकिन यहां आपको जोड़ीदार भी मिला और वो थे शिवकुमार शर्मा तो वो पल कब आया जब आपने सोचा कि दोनों को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए

मदन मोहन साहब का मेरे ऊपर गजब का भरोसा था। जब मैं बजाता था तो वो दूर खड़े होकर बस सुनते थे। अपने असिस्टेंट को उन्होंने कह रखा था कि इन्हें मत छेड़ना ये जो करना चाहते हैं इन्हें करने दो। हम लोगों को कभी उन्होंने नहीं कहा कि ऐसे बजाइए या वैसे बजाइए। जो बजाया वो उसी को ठीक मानते थे। इतनी कद्र करते थे कि अगर सम भी लगा दिया तो खुश हो जाते थे। वाह-वाह करते थे। वो बहुत अच्छे और बहुत गुणी लोग थे। अब तो समय पूरी तरह बदल चुका है। अब तो रिकॉर्डिंग कहां हो रही हो, मिक्सिंग कहां हो रही है कुछ पता ही नहीं चलता है। ये वही समय था जब मैं और शिवकुमार शर्मा फिल्म इंडस्ट्री में एक समय पर काम कर रहे थे। कई साल से हम काम कर रहे थे। लोगों को पता चल चुका था कि ये दोनों क्या काम करते हैं। हम दोनों के बारे में ये बात मशहूर थी कि हमें म्यूजिक डायरेक्टर कुछ नहीं बताता। हम अपने आप काम खुद ही करते हैं। यश चोपड़ा को लगा कि अगर इन दोनों को कोई फिल्म दी जाए तो कुछ अच्छा ही करेंगे। उन्हीं की तरफ से ऑफर आया। हम लोगों ने आपस में बात की और कहाकि हम बिल्कुल करेंगे। हम रोज ही फिल्मों के लिए काम कर रहे थे फिर संगीत निर्देशन क्यों नहीं? पहली-पहली फिल्म थी- सिलसिला। फिर सिलसिला के बाद फासले, लम्हे, चांदनी, डर जैसी फिल्में हमने उनके लिए कीं, सभी का संगीत बहुत लोकप्रिय हुआ। किसी भी शास्त्रीय कलाकार के नाम से इस तरह का फिल्म संगीत का काम जुड़ा नहीं है। सच ये भी है कि चूंकि हम लोग दिन भर संगीत में ही डूबे रहते थे इसलिए फिल्मों का संगीत बनाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। हम लोगों के लिए वो आसान काम था। हम यूं भी दिन भर स्टूडियो में रहकर संगीत बनने के अलग अलग आयाम देखा ही करते थे।

शिव हरि की जोड़ी की पहचान उस दौर में बहुत बड़ी हो गई थी ऐसे में आप दोनों जब एकसाथ भी और अलग-अलग भी काम करते थे तो सब कैसे मैनेज करते थे

फिल्म को देखने वाले फिल्म के संगीत को सुनने वाले करोड़ो में हैं। क्लासिकल म्यूजिक सुनने वाले कम हैं। जब हम क्लासिकल म्यूजिक सुनने वालों के दिल जीत चुके थे उसके बाद फिल्मों के ऑफर पर काम किया। फिल्म इंडस्ट्री वाले भी बहुत खुश हो गए कि इन दोनों कलाकारों की जोड़ी अद्भुत है। दोनों शास्त्रीय संगीत के बड़े-बड़े कार्यक्रम करते हैं और हमारे लिए भी बजाते हैं। जिससे शिव-हरि के तौर पर हमारी पहचान और बड़ी हो गई। हम लोगों ने ज्यादातर काम यश चोपड़ा के लिए ही किया। इसकी वजह भी बड़ी साफ थी। मेरे और शिव जी के पास समय की भी जबरदस्त किल्लत रहती थी। अपने कार्यक्रम करने होते थे। गुरूकुल भी संभालना होता था। तमाम अलग अलग ‘टूर’ करने होते थे। इसलिए ज्यादा काम नहीं कर सकते थे। फिल्म चांदनी का किस्सा याद आ रहा है। लता मंगेशकर जी सुबह हमारे लिए गाने की रिकॉर्डिंग करके गईं। शाम को ही उन्होंने फोन करके कहाकि पंडित जी मेरा भाई सुबह से एक ही गाना गुनगुना रहा है। मैंने पूछा कौन सा? बोली- तेरे मेरे होंठों पे पीछे पीछे गीत मितवा। मैंने लता जी को शुक्रिया अदा करते हुए कहाकि इसके लिए तो मुझे आपको फोन करना चाहिए और आप मुझे फोन कर रही हैं। उन्होंने कहाकि नहीं-नहीं मेरे भाई को ये गाना बहुत ही पसंद आया। फिर मैंने कहाकि ये गाना इसलिए अच्छा है क्योंकि आपने गाया है। लता जी का भी बहुत प्यार रहा जो आज भी कायम है।

आपकी जोड़ी सुपरहिट रही शिव हरि की सुपरहिट जोड़ी में कभी कोई तकरार देखने या सुनने को नहीं मिली इसकी बड़ी वजह क्या है?

हम दोनों की एक आदत और थी। अगर हमें लगता था कि कोई बदलाव कराना है तो हम वो भी कराते थे। फिल्में साइन करने का फैसला हम दोनों मिलकर ही करते थे। उनके साथ की नजदीकी कुछ इस तरह की रही कि जो वो सोचते थे ठीक उसी वक्त मैं भी वैसा ही कुछ सोच रहा होता था। जब मैं कुछ सोचता था तो कुछ वैसा ही वो सोच रहे होते थे। दोनों के विचार बहुत मिलते जुलते हैं। इसीलिए साथ काम करना बहुत आसान रहा। कभी मुझे कोई गाना अच्छा लगता था तो मैं गुनगुनाता था। कभी वो ऐसा ही करते थे। ये आपसी समझ ही हम लोगों के संगीत के कामयाब होने की वजह रही। हम दोनों में कभी कोई तकरार नहीं हुई। मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं।

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