भारत की मशहूर प्लेबेक सिंगर कविता कृष्णमुर्ति के बारे में तो आप पहले ही से ही काफी कुछ जानते हैं लेकिन उनके बचपन से जुड़े कुछ एक्सक्यूज़िव किस्से आज रागगिरी के इस इंटरव्यू में हम आपको बता रहे हैं। रागगिरी से हुई खास बातचीत में कविता जी अपने बचपन की कई बातें हमारे साथ शेयर की। वो कहां रहती थी, संगीत की ओर उनका रुझान कैसे हुआ और बचपन में उन्हें कैसे डांट पड़ती थी ये किस्स भी उन्होंने बताए। तो आइए उनसे हुई खास बातचीत में उन्होंने हमारे सवालों के क्या जवाब दिए आपको बताते हैं।
आप अपने बचपन और अपने परिवार के बारे में बताइए कुछ
मेरी जिंदगी की पृष्ठभूमि काफी अलग है। मेरे मम्मी पापा तो कृष्णमूर्ति यानी ‘प्योर’ तमिलियन थे, लेकिन हमारे पड़ोस में भट्टाचार्य अंकल की एक बंगाली ‘फैमिली’ रहती थी। हम दोनों परिवारों में कमाल की दोस्ती थी। खास तौर पर मेरी मां और आंटी में, मैं भट्टाचार्य आंटी को ‘मामुनी’ यानी मां ही बुलाती थी। मेरे पिता जी और भट्टाचार्य अंकल सरकारी नौकरी करते थे। ये दोस्ती इतनी गहरी थी कि जब मेरे पिता जी को बड़ा घर मिला तो भट्टाचार्य अंकल ने अपना घर छोड़ दिया और दोनों परिवार साथ ही रहने लगे। हां, उस घर में दोनों परिवारों का किचन अलग था। एक तमिलियन किचन, एक बंगाली किचन। ये सारी कहानी मेरे जन्म से पहले की है। जो मुझे थोड़ा बड़े होने पर पता चली। भट्टाचार्य अंकल की एक बेटी थी, जो मेरी बड़ी दीदी हैं। वो अभी दिल्ली में रहती हैं। इन दो परिवारों के साथ रहने का असर ये हुआ कि मेरी मां बंगाली सीख गईं और आंटी ने तमिल सीख लिया। मैं भी जब धीरे धीरे बड़ी हुई तो मैं अपने पापा मम्मी से तमिल या ‘इंग्लिश’ में बात करती थी और भट्टाचार्य अंकल-आंटी के साथ बंगाली या हिंदी में। ऐसे करके बचपन से ही मुझे इन सारी भाषाओं को सीखने का मौका मिल गया।
आपका घर हेमा मालिनी के पड़ोस में था और उनकी वजह से आपको भरतनाट्यम सिखाने की कोशिश भी की गयी तो फिर आपने डांस क्यों नहीं सीखा और गायक ही बनना है ये कैेसेे सोचा?
इन दो परिवारों के साथ आने का सीधा मतलब दो संस्कृतियों का मिलना भी था। बंगालियों के यहां भी गीत संगीत का बहुत माहौल होता है और दक्षिण भारत में तो हर घर में संगीत किसी ना किसी तौर पर रहता ही है। लिहाजा संगीत तो मुझे सीखना ही था। उस पर से मेरे पड़ोस में हेमा मालिनी रहती थीं। हेमा जी उन दिनों भरतनाट्यम सीखा करती थीं। हेमा जी मेरी दीदी की दोस्त थीं। उनकी मां और मेरी मामुनी भी बहुत अच्छे दोस्त थे। जब मैं पांच छ साल की थी तो ये लोग मुझे भी भरतनाट्यम की क्लास में साथ लेकर जाते थे। मुझे कोई वजह तो नहीं पता लेकिन मुझे ये याद है कि उस समय भी मैं यही कहती थी कि मुझे डांस नहीं सीखना है मैं गाना सीखना चाहती हूं। मैं वहां सभी का सर खाती थी कि मुझे गाना सिखाओ, मुझे गाना सिखाओ। ये लोग हर रोज मुझे डांस क्लास में खींचकर ले जाते थे और मैं वहां जाकर कहती थी कि मुझे तो गाना सीखना है। डांस में मेरा कोई ‘इंटरेस्ट’ नहीं था। आखिर में मेरे लिए और मेरे बड़े भाई के लिए संगीत के टीचर को ढूंढा गया।
बचपन में आपको एक बार बहुत डांट पड़ी थी उसकी वजह क्या थी?
बचपन से मैं बहुत सीधी सादी बच्ची थी। मैं बहुत डरपोक थी। बस एक बार का मुझे याद है कि मुझे जबरदस्त डांट पड़ी थी। हुआ यूं कि विजयादशमी का दिन था। दुर्गा मां की प्रतिमा के विसर्जन के लिए कालीबाड़ी से लोग यमुना जी जाया करते थे। बड़े बड़े ट्रक खड़े रहते थे। इलाके के सारे बच्चे, पूजा कमेटी के सदस्य सब लोग ट्रक में चढ़कर यमुना तक जाते थे। हम लोगों को साफ तौर पर बताया गया था कि खबरदार अगर तुम लोग उस ट्रक में चढ़े। मेरे सारे दोस्त जा रहे थे, लेकिन हमें इसकी ‘परमिशन’ नहीं थी। आखिर में एक बार मैं और मेरे भाई छुपकर उस ट्रक में चढ़ ही गए और घर पर बिना बताए मूर्ति के साथ चले गए। रास्ते में थोड़ी थोड़ी दूरी पर रूककर दूसरी जगहों से भी मां की मूर्ति आती थी। जुलूस और बड़ा हो जाता था। ऐसा करके करते यमुना से लौटते लौटते रात के साढ़े आठ बज गए। जय मां के जयकारे लगा लगा कर हमारी आवाज भी बैठ चुकी थी। मेरे गले से तो बिल्कुल आवाज नहीं निकल रही थी। रात को जब सब लोग घर लौटे तो मम्मी-पापा-अंकल-मामुनी सब के सब बदहवास होकर इधर उधर हमें ढूंढ रहे थे कि आखिर बच्चे चले कहां गए। फिर किसी तरह उन्हें पता चला कि हम लोग दुर्गा मां की प्रतिमा विसर्जन के लिए गए हैं तब जाकर उनका डर थोड़ा कम हुआ लेकिन रात को जब हम लोग लौटे तो जमकर डांट पड़ी। इतनी डांट पड़ी कि पूछिए मत। मैं जोर जोर से रोने लगी। मां ने रोते रोते खाना खिलाया और उसके बाद मैं सो गई। बाद में चार दिन तक मेरे गले से आवाज नहीं निकली, मैं किसी से बात तक नहीं कर पा रही थी। बाद में मामुनी ने समझाया कि अगर तुम्हें बाकी बच्चों की तरह ही शरारत करनी है तो वो तुम्हें संगीत से दूर ले जाएगा। तुम 4 दिन तक गा नहीं सकोगी। मास्टर जी आएंगे तो किसको सिखाएंगे। तुम ऐसा ही चाहती हो क्या? उस डांट के बाद कभी बदमाशी नहीं की। हां, एक बात और याद आ रही है कि मेरे घर में सभी पुरूष ‘स्मोकिंग’ करते थे। एक बार मेरे भाई और मैंने सिगरेट फूंकने की कोशिश की। सिगरेट का सारा तंबाकू हमारे मुंह में चला गया और उसके बाद खांस खांस कर जो हालत खराब हुई वो पूछिए मत। इसके अलावा मुझे याद नहीं कि बचपन में मैंने कोई शरारत की हो। घर में सबसे छोटी थी तो सबका प्यार मिलता था। डांट नहीं पड़ती थी। बचपन की बहुत खूबसूरत यादें हैं, जिसमें ना तो कोई संघर्ष है और ना ही किसी किस्म की कमी…सिर्फ प्यार है और संगीत है।