आप लखनऊ के रहने वाले हैं लेकिन आपका जन्म नैनीताल में हुआ, क्या इसकी कोई खास वजह है?
मेरा जन्म नैनीताल में हुआ। लोग पूछते हैं कि आप लोग तो लखनऊ के रहने वाले थे फिर जन्म नैनीताल में कैसे हुआ? दरअसल पहाड़ी इलाकों में नैनीताल ही है जो लखनऊ के सबसे करीब है जहां लोग गर्मियों में घूमने जाते हैं। ऐसी ही एक गर्मियों में मेरे मम्मी पापा भी नैनीताल घूमने गए थे और जब दोबारा वहां गए तो दो से तीन होकर वापस आए। मैंने अपनी मां की कोख से नैनीताल देखा था और बाद में मेरा मन हुआ कि मैं बाहर आकर भी नैनीताल देखूं तो मैं वहीं पैदा हो गया। फिर जन्म के बाद हम लोग लखनऊ आ गए। मेरे पिता पुरूषोत्तम दास जलोटा जी का संगीत की दुनिया में बडा नाम था। वो शास्त्रीय संगीत और भजन गायकी के जाने माने कलाकार थे। यूं तो उनका जन्म पंजाब में हुआ था। उन्होंने गायकी की शुरूआत भी वहीं की थी। लेकिन बाद में वो लखनऊ आकर बस गए और फिर वहीं के होकर रह गए। 2004 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया था। मेरी मां का नाम कमला खन्ना था। वो शादी से पहले बहुत ही अच्छा कथक नृत्य करती थीं लेकिन शादी के बाद उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारियों को प्राथमिकता देते हुए कथक करना छोड़ दिया। वो बहुत शानदार गाती भी थीं।
क्या आपको आपका पहला ऑडिशन याद है?
मेरे पहले ऑडिशन की कहानी बड़ी दिलचस्प है। मुझे याद है कि मैं लखनऊ में पहली बार ऑल इंडिया रेडियो का ऑडिशन देने जा रहा था तो मेरी मां ने कहाकि चलो मैं भी तुम्हारे साथ ऑडिशन देकर आती हूं। मैंने कहाकि मां आप रियाज तो करती नहीं है आप ऑडिशन कैसे देंगी। उन्होंने कहाकि नहीं तुम मेरा भी फॉर्म भर दो मैं भी ऑडिशन दूंगी। मैंने उनका भी फॉर्म भर दिया। दिलचस्प बात ये है कि जब ऑडिशन के नतीजे आए तो मेरी मां पास हो गई थीं और मैं फेल हो गया था। ये मेरे पहले ऑडिशन की कहानी है। इसके 6 महीने बाद मैंने इलाहाबाद में ऑल इंडिया रेडियो में ऑडिशन दिया, जिसमें मैं पास हो गया। कई बार मैं सोचता हूं कि जिस ऑल इंडिया रेडियो में मुझे बचपन में फेल किया था आज उसी प्रसार भारती बोर्ड का मैं सदस्य हूं। आज दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो की तमाम व्यस्थाएं हम लोग देखा करते हैं। समय कैसे बदल जाता है। इसके अलावा मेरे घर में बड़े भाई हैं जिनका नाम अनिल है। वो बहुत अच्छा गाना गाते हैं, तबला बजाते हैं लेकिन वो गायकी की दुनिया से अलग ‘बिजनेस’ करते हैं। उसके बाद मेरी दो बहने हैं-अनीता और अंजू। दोनों को संगीत का शौक है और दोनों ही घरेलू महिला के तौर पर जीवन का आनंद ले रही हैं। उसके बाद मेरे सबसे छोटे भाई हैं अजय। पंडित छन्नू लाल मिश्र जी उनके सबसे पसंदीदा गायक हैं। वो रजनीश जी के ‘फ़ॉलोअर’ हैं और अमेरिका में रहते हैं। हमारा बचपन अपने भाई बहनों के साथ छोटी छोटी बदमाशियों और मां-बाप के लाढ़ प्यार के बीच बीता है।
क्या बचपन से ही आपको ये समझ आ गया था कि आप गायकी में ही अपना भविष्य बनाएंगे?
संगीत के लिहाज से देखा जाए तो घर पर गुरू के तौर पर मेरे पिता जी थे। इसके अलावा मुझे ये भी याद है कि उन दिनों लखनऊ में कार्यक्रम के लिए बड़े बड़े कलाकार आया करते थे। जितने भी बड़े कलाकार लखनऊ आते थे उनके कार्यक्रम देखने के लिए हम लोग जरूर जाया करते थे। मुझे याद है कि बचपन में लखनऊ में ही मैंने पहली बार पंडित जसराज जी को सुना था। फिल्मी गायकों में मैंने मुकेश जी और हेमंत कुमार साहब को वहीं सुना। बेगम अख्तर तो लखनऊ में रहती भी थीं तो उन्हें भी सुनने का सौभाग्य मिला। संगीत की दुनिया में पिता जी के बड़े कद का एक और फायदा था। हमारे यहां कई बड़े कलाकार आया जाया करते थे। बिरजू महाराज जी, गुदई महाराज जी, किशन महाराज जी, पंडित रवि शंकर, उस्ताद अली अकबर खान जी ये सभी लोग पिता जी के मिलने जुलने वालों में थे। पिता जी की वजह से इन सभी कलाकारों का आशीर्वाद हमें मिलता रहा। संगीत की दुनिया के कई जाने माने नाम हमारे घर पर ठहरते थे। इसके अलावा मुझे याद है कि एक बार कवि इंदीवर भी हमारे यहां रूके थे। दारा सिंह एक बार हमारे यहां आए थे। उन लोगों को सुन सुन कर और देखकर दिल में ख्याल आता था कि कभी हमें सुनने के लिए भी इसी तरह की भीड़ जमा होगी। इसके लिए खूब मेहनत भी करते थे।
क्या ये बात सच है कि आप बचपन में टीचर्स को गाना सुनाकर पास होते थे
स्कूल में मेरा गाना खूब पसंद किया जाता था। कई टीचर तो ऐसे थे जो इम्तिहान के बाद मुझे घर बुलाया करते थे। मुझे घर भी उस दिन बुलाया जाता था जिस दिन मेरी कॉपी जंचनी होती थी। मैं टीचरों के घर जाकर गाया करता था और मनमर्जी के नंबर मिल जाते थे। बचपन में तो मैं टीचरों को गाने सुना सुनाकर ही पास होता चला गया। उनमें से कुछ टीचर मुझे अब भी मिलते हैं। बड़े भाई अनिल के साथ बचपन का एक किस्सा मुझे हमेशा याद आता है। जैसा मैंने पहले बताया कि वो भी गाना गाते थे। हम लोग बचपन में रेडियो रेडियो खेला करते थे। एक दिन भैया ने कहाकि वो गाना गाएंगे और मैं ‘एनाउंसमेंट’ करूं। मैंने कहाकि मैं क्यों ‘एनाउंसमेंट’ करूंगा, आप ‘एनाउंसमेंट’ करिए मैं गाना गाऊंगा। करते करते बात बढ़ गई। मैं जिद पर उतर आया कि नहीं मैं गाना गाऊंगा और आप ‘एनाउंसमेंट’ करिए। उन्होंने गुस्से में मुझे एक थप्पड़ रसीद कर दिया। वो उम्र में मुझसे बड़े थे इसलिए आखिरकार ‘एनाउंसमेंट’ मुझे करना पड़ा। एक थप्पड़ मैं खा ही चुका था तो अंदर से गुस्सा भी आ रहा था। मैंने ‘एनाउंसमेंट’ शुरू की- ये आकाशवाणी का विविध भारती प्रोग्राम है। रात के 11 बज चुके हैं और कार्यक्रम समाप्त होता है। इतना ‘एनाउंसमेंट’ करने के साथ ही दोबारा पिटने के डर से मैं वहां से भाग गया।