अलका यागनिक बॉलीवुड की मशहूर गायिका हैं लेकिन उन्हें उनकी इस कामयाबी का पहला ब्रेक कैसे मिला ये किस्सा भी बेहद मज़ेदार है। बॉलीवुड में करियर बनाना आसान नहीं है और वो भी तब जब आप बॉम्बे से ना हों। ऐसे में अलका में हुनर है ये बात तो हर कोई जानता था और मानता भी था और उनके माता-पिता उन्हें सिंगर बनाने के लिए लगातार बॉम्बे आया जाया भी करते थे लेकिन आते ही किसी को काम तो नहीं मिलता ऐसे में अलका यागनिक को फिल्मों में गाना गाने का पहला मौका कैसे मिला ये किस्सा उन्होंने रागगिरी से हुई खास बातचीत में बताया।
बॉम्बे में जब कोई सिंगर बनने आता है तो उसके स्ट्रग्ल का अपना किस्सा होता है, आपके स्ट्रग्ल के बारे में आप कुछ बताइए
बॉम्बे में हमारे लिए ‘स्ट्रगल’ यही था कि घंटों घंटों इंतजार करना पड़ता था। कोई कहता था कि अभी नहीं मिल सकते हैं, अभी टाइम नहीं है। कोई कहता था कि अगले महीने मिलेंगे। आर्थिक तौर पर कोई संघर्ष कभी नहीं था क्योंकि मेरे पिता जी अपनी नौकरी में अच्छी तरह ‘सेटल’ थे। संपन्न थे। उस लिहाज से हम लोग हमेशा जिंदगी में ‘कम्फर्टेबल’ रहे हैं। खाना, घर या गाड़ी जैसी ‘बेसिक प्रॉब्लम’ कभी नहीं थी। कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें मुंबई में खाने तक की दिक्कत होती है। मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं था। मम्मी पापा का पूरा सपोर्ट था। बल्कि बाद में तो सांताक्रूज में पापा ने एक छोटा सा घर भी खरीद लिया था। जिसमें हम लोग जब कलकत्ता से बॉम्बे आते थे तो रूकते थे। असली संघर्ष यही था कि अपनी आवाज और अपनी प्रतिभा को लोगों तक कैसे पहुंचाया जाए। ये इतना आसान काम नहीं था। लता दीदी और आशा दीदी एकदम राज्य कर रही थीं। नए सिंगर्स को कोई छूना नहीं चाहता था। बहुत मुश्किल था। किसी को एकाध गाना मिल भी गया तो वो टिकता नहीं था क्योंकि लता जी और आशा जी गाती भी जबरदस्त थीं। किसी संगीतकार तक अपनी आवाज पहुंचाना और फिर ‘ब्रेक’ मिलना बहुत संघर्ष का काम था। बावजूद इसके पापा मम्मी लगातार लगे रहे कि कभी ना कभी लोग तुम्हारे हुनर को पहचानेंगे।
क्या ये बात सच है कि आपको अमिताभ बच्चन की फैन होने का फायदा मिला और इसी वजह से आपको फिल्मों में गाना गाने का पहला ब्रेक भी मिला?
मैं जब 14-15 साल की हो गई थी तब मैंने पहली बार फिल्मों के लिए गाना गाया। उसका किस्सा बड़ा दिलचस्प है। दरअसल कलकत्ता से छुट्टियों में मैं जब भी बॉम्बे आती थी तो कल्याण जी आनंद जी के यहां जाती थी। वो लोग मुझे सिखाते थे। ऐसे गाओ, वैसे गाओ। मैं उनकी नजर में थी। उन्होंने कहा था कि आवाज में जब थोड़ी ‘मैच्योरिटी’ आ जाएगी तो प्लेबैक सिंगिग शुरू करनी चाहिए। हालांकि जब आप मेरा पहला गाना सुनेंगे तो आपको लगेगा कि मेरी आवाज बिल्कुल बच्चों जैसी है। उसमें बहुत बचपना है। दरअसल जब मैं अमित जी के रिहर्सल पर कल्याण जी आनंद जी के म्यूजिक रूम में गई थी तो मैं इसीलिए गई भी थी क्योंकि मैंने दोनों लोगों से कहा था कि मुझे अमित जी से मिलना है। मैं उनकी बहुत बड़ी फैन हूं। तो उन्होंने कहा कि ऐसा करो उनका रिहर्सल शुरू हो रहा है तो तुम स्टूडियो आ जाना वहीं पर उनसे मिल भी लेना। इसी तरह से मैं पहली बार वहां गई और अमित जी से मिली। पहली मुलाकात में मैं सिर्फ उनको देख रही थी। बिल्कुल चुप थी। इस तरह से पहली मुलाकात तो हो गई लेकिन मैंने ये नहीं सोचा था कि उनके साथ जुड़ जाऊँगी। वही गाना गाने को मिलेगा जो वो गा रहे हैं। वो बहुत ही रोमांचक लम्हा था। वो गाना था फिल्म लावारिस का ‘मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है’।
ये गाना अमिताभ जी की आवाज में रिकॉर्ड होने वाला था। अमिताभ जी और कल्याण जी- आनंद जी बहुत करीबी दोस्त थे। अमिताभ जी अक्सर कल्याण जी- आनंद जी के घर आया करते थे। कभी बैठकर बातें कर रहे हैं। कभी कोई गाना सुन रहे हैं। उन दिनों वो लोग बहुत सी फिल्मों पर साथ में काम भी कर रहे थे। मैं जब बॉम्बे जाती थी तो कल्याण जी आनंद जी मुझे बुला लिया करते थे कि आओ स्टूडियो में बैठकर देखो कि क्या कैसे होता है। तो मैं वहां जाया करती थी। एक दिन उन्होंने मुझे बुलाया तो मैंने देखा कि वहां अमित जी बैठे हुए हैं। मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है गाने की तैयारी चल रही थी। फिर मैंने बोला कि रिकॉर्डिंग कैसे होती है ये जानने के लिए मैं रिकॉर्डिंग देखना चाहती हूं तो जब अमित जी ये गाना रिकॉर्ड कर रहे थे तो मैं अपने मम्मी पापा के साथ कल्याण जी आनंद जी के स्टूडियो गई भी थी। मैंने अपनी आंखों से इस गाने को अमित जी को गाते और रिकॉर्ड करते देखा था। इसके बाद कल्याण जी भाई ने बोला कि आज हम आपका वॉयस टेस्ट भी लेंगे। हमें ये देखना है कि आपकी आवाज माइक पर कैसी लगती है। अभी जब अमित जी गा लेंगे तो आप थोड़ा सा गाकर सुनाना। ऑडिशन जैसा कुछ करेंगे। मैंने बोला- ठीक है। मैं बड़ी सीधी, मासूम थी तो मैं कुछ समझी नहीं। मैंने सोचा कि अगर ये कहेंगे गाने के लिए तो मैं गा दूंगी। अमित जी का वर्जन रिकॉर्ड हुआ। तब तक मैं बैठी बैठी उस गाने को सुन रही थी। कल्याण जी आनंद जी ने रिकॉर्डिंग के बाद मुझसे बोला कि अब इसी गाने को बतौर ऑडिशन आप माइक पर गाइए। उन्होंने मुझे गाइड किया कि देखो ये गाना ऐसा गाओ जैसे किसी बहुत ‘मेच्योर’ हीरोइन पर फिल्माया जाना है। आवाज को जितना ‘मेच्योर’ बना सकती हो उतना ‘मेच्योर’ बनाकर गाओ तो मैं जितना हो सका मैंने किया। दो टेक उन्होंने लिए। उन दिनों लाइव रिकॉर्डिंग होती थी तो गाना एक ‘फ्लो’ में रिकॉर्ड होता था। मैंने गाना गा दिया। उसके बाद जब मैं बाहर आई तो कल्याण जी आनंद जी ने मुझसे कहा- देखा तुमने आज प्लेबैक सिंगिग कर ली। तुमने आज राखी जी के लिए गाना गा दिया। मैं समझी नहीं मुझे लगाकि वो मजाक कर रहे हैं क्योंकि वो लोग मेरी खिंचाई बहुत करते थे। मुझे छेड़ते रहते थे। उन दोनों लोगों का सेंस ऑफ ह्यूमर तो पूरी इंडस्ट्री में मशहूर है। उन लोगों का बात करने का तरीका ही बड़ा मजेदार होता था। बस हो गया फिर। मेरे पैरेंट्स को भी यही लगा कि कल्याण जी आनंद जी मजाक कर रहे होंगे। अलका को थोड़ा छेड़ रहे हैं। लेकिन फिर काफी समय बाद जब फिल्म रिलीज होने से पहले प्रीव्यू शो रखा जाता है सिर्फ फिल्म की यूनिट के लिए तो उसमें मुझे बुलाया गया। उस शो में सिर्फ यूनिट के लोग होते हैं। वो प्रकाश मेहरा की फिल्म थी। वो सब लोग थे। कल्याण जी आनंद जी। अमित जी। सब लोग उस शो में थे। वहीं पर मैंने फिल्म देखी- लावारिस। फिल्म में जब राखी जी का सीन आया और जब वो गाना गाती हैं तब मुझे समझ आया कि वाकई मैंने प्लेबैक सिंगिंग की है। मैंने वाकई गाया है। मेरे पैरेंट्स भी बहुत खुश हुए। चूंकि कल्याण जी आनंद जी हर चीज में मजाक करते थे इसलिए मैंने उनकी बात को मजाक समझा था लेकिन वो मजाक नहीं था। तब मुझे ‘रियलाइज’ हुआ। उसके बाद तो वो गाना बड़ा मशहूर हुआ। रेडियो पर अक्सर बजता था। कल्याण जी आनंद जी उसके बाद मुझे प्यार से अलका यागनिक की जगह अंगना यागनिक बुलाते थे।