बचपन से ही आपका संगीत से इतना लगाव है कि कभी आप संगीत सीखने के लिए घर से भागे तो कभी वापस थकहार कर घर लौटे, लेकिन इतने संघर्षों के बावजूद आपको पहला गाने का मौका कब, कहां और कैसे मिला?
जब मैं गोरखपुर में भागकर वापस घर आया तो घरवालों की आंख में आंसू थे। कुछ समय बाद ही मेरे बड़े भाई ने मुझे कार्यक्रम करने के लिए कैलिफोर्निया बुलाया। जब मुझे कैलिफोर्निया का न्यौता मिला तो मैं वापस अपने गुरू जी से मिलने गोरखपुर गया। उन्होंने मुझे देखा तो भावुक हो गए। मैंने जब उन्हें बताया कि कार्यक्रम करने के लिए कैलिफोर्निया जा रहा हूं तो उन्होंने अपने कुछ दोस्तों को मेरा गाना सुनाने के लिए बुलाया। उनके सारे दोस्त संगीत के एक से बढ़कर एक जानकार थे। उन लोगों के सामने मैंने उस्ताद गुलाम अली की कई गजलें गाईं। खूब तारीफ मिली। साथ ही गुरूजी ने ये भी कहाकि अपना भी कुछ तैयार करो। खैर, बाद में अपनी बनाई जाने कितनी चीजें मैंने दुनिया भर में गाईं। मुझे याद है कि उन्हीं दिनों मुझे दिल्ली की एक बर्थडे पार्टी में फिल्मी गाने सुनाने थे। मुझे उस दौर के बड़े बड़े अभिनेताओं के हिट गानों का कैसेट दे दिया गया। मैंने सोचा दो घंटे में इतने सारे गाने कैसे गाऊंगा। लिहाजा मैंने एक ही लड़ी में उन सारे गानों को गाया। जो आइडिया बाद में कई कलाकारों ने आजमाया।
आपको बचपन से ही फिल्में देखना, फिल्मी गाने गाना बहुत पसंद था तो क्या कभी ऐसा हुआ कि आपने एक्टिंग करने के बारे में भी सोचा हो
फिल्मों में और फिल्मी गीतों में मेरी दिलचस्पी शुरू से थी। बचपन में कई बार तो ऐसा होता था कि हम किसी को गाना सुनाकर फिल्म दिखाने को कहते थे। या कुछ खिलाने को कहते थे। गाना सुनाया और फिर समोसा खाने को मिला। घर से तो स्कूल जाने के लिए निकले और रास्ते में किसी को गाना-वाना सुनाकर कहा चलिए अब फिल्म दिखाइए। बचपन में कई फिल्मों के ‘फर्स्ट डे-फर्स्ट शो’ मैंने ऐसे ही देखे हैं। इन बातों के लिए मैंने कभी घर से पैसा नहीं लिया। जब कोई ऐसा जुगाड़ नहीं होता था तो हम लोग सीधे सिनेमा हॉल ही चले जाते थे। वो दौर ही अलग था। सिनेमा हॉल का गेटकीपर हमें बुला लिया करता था। दो गाने सुनता था और उसके बाद बिना टिकट हॉल के अंदर जाने देता था। वो भी कोई ऐसी वैसी नहीं बल्कि हॉल की सबसे अच्छी सीट दिलवाता था। बीच बीच में पापड़ और मूंगफली भी खाने के लिए भेजता था। उस वक्त मेरी उम्र दस साल भी नहीं थी। ये सब 1975-76 के आस पास की बात होगी। उस दौर में धर्मेंद्र कुमार की फिल्में देखना बड़ा पसंद था। फिरोज खान, विनोद खन्ना इन सभी की फिल्में देखने में बड़ा मजा आता था। फिर बच्चन साहब की एंट्री हो गई। बचपन से ही उनके फैन हो गए। ऐसे ही शत्रुघ्न सिन्हा साहब। ये लोग लगते थे कि हीरो हैं। कहीं खड़े होते थे तो लोग उन्हीं को देखते रहते थे। आजकल के हीरो तो मेरी लंबाई के होते हैं पता ही नहीं चलता है कि हीरो हैं या क्या हैं। एकाध बार तो मेरे मन में भी एक्टिंग करने का लालच आया लेकिन इस बारे में ज्यादा सोच नहीं पाया। सरदार था, पगड़ी बांधता था, छोटे छोटे केश थे इसलिए एक्टिंग के बारे में कभी सोचा नहीं। वैसे भी मैं बाल कटाने की सोच भी नहीं सकता था। घर में हमेशा रहता था कि बाल नहीं कटाने, बाल नहीं कटाने। कई बार मन तो करता था कि हीरो बनेंगे लेकिन मन मारना पड़ता था।
आपका सबसे पहला सुपरहिट गाना बोलो ता रा रा था, तो ये गाना कैसे तैयार हुआ इसके पीछे की कहानी क्या है?
खैर, बात शुरूआती दिनों के गाने की कर रहा था। जिसमें मेरा एक गाना बहुत हिट हुआ था। जिसके बोल थे- बोलो तारा रा रा। उस गाने की कहानी भी दिलचस्प है। वो गाना एक दिन मैंने अपनी मां को गुनगुनाते सुना था। मैंने अपनी मां से पूछा कि मैं ये गा सकता हूं? उन्होंने कहाकि क्यों नहीं गा सकते हो। मेरी मां ने भी ये गाना बचपन में अपनी नानी से सुना था। तो बस ये गाना बन गया। वो कहते हैं ना कि मां ने जनम भी दिया और साथ में तकदीर भी दे दी। जनम तो कई माएं देती हैं लेकिन बच्चे अपनी किस्मत की लड़ाई अकेले लड़ते हैं। फाइट करते रहते हैं। मैं खुशनसीब था कि मां ने मुझे जनम देने के साथ साथ भाग्य भी दे दिया। वो गाना जबरदस्त हिट हुआ। लोग मुझे पॉप स्टार बुलाने लगे। तमाम चैनलों पर मेरे गानों की धूम मच गई। घरवाले खूब खुश हुए। मां तो खैर मेरी हमेशा से कहती थीं कि तू मेरा बेटा है, तू राजा भी है और जोगी भी। ये तब की बात है जब मुझे लगता था कि जाने कब मुझे बड़ी जगहों से गाने का मौका मिलेगा। जाने कब मेरा नाम होगा। पिता जी तो खैर हमेशा बहुत तारीफ करते थे। ये अलग बात है कि उन्होंने मुंह के सामने तारीफ ना के बराबर की लेकिन वो मेरी गायकी से खुश बहुत रहते थे। इसी तरह उस्ताद जी कहते थे तू जहां भी कदम रखेगा मौला तेरे साथ है। तू रब का बंदा है। यही वजह है कि मुझे नुसरत फतेह अली खां साहब, मेहंदी हसन साहब, उस्ताद गुलाम अली, आशा जी जैसे बड़े कलाकारों ने हमेशा बहुत प्यार दिया। आशा जी ने कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान स्टेज से कहाकि दलेर जब भी गाते हैं बहुत सुर में गाते हैं। ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी।
आप अमिताभ बच्चन के बहुत बड़े फैन है तो कभी आपने सोचा था कि आप उनसे मिल भी पाएंगे?
इसके बाद 1996-97 के आस पास की बात होगी। मेरे एक दोस्त ने एक दिन मुझसे पूछा कि तू मुंबई कब जाएगा। कुछ रोज बाद ही ऐसा संयोग हुआ कि मेरे एक दोस्त ने मुझसे पूछा कि मुंबई में काम कब करोगे तो मेरे मुंह से निकला- जब पाजी बुलाएंगे। दोस्त ने पूछा- कौन धर्मेंद्र पाजी? मैंने कहा नहीं बच्चन पाजी। वो मंद मंद मुस्कराया। उसने इस बात के लिए मेरी खिल्ली भी उड़ाई कि मैं कितनी बड़ी उड़ान सोच रहा हूं। भले ही वो मेरा दोस्त था लेकिन उसे विश्वास नहीं हुआ। उसने फिर से पूछा कि वो तुझे क्यों बुलाएंगे? मैंने कहा देखना वो मुझे जरूर बुलाएंगे। इस बात को दो महीने ही बीते होंगे कि बच्चन साहब का फोन आ गया।