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साल 1979 की बात है। जाने माने शायर निर्माता निर्देशक गुलजार साहब एक फिल्म बना रहे थे। फिल्म का नाम था-मीरा जो हिंदू संत मीरा के जीवन के पहलुओं पर आधारित थी। मीराबाई ने अपना सुख संपन्नता छोड़कर संत का रास्ता थामा था। गुलजार चाहते थे कि इस फिल्म के जरिए समाज में महिलाओं की स्थिति को दिखाया जाए जिसे अपनी आजादी और स्वाभिमान के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। 1974 में ‘दोस्त’ और 1977 में ‘ईमान धरम’ जैसी फिल्में बना चुके जेएन मनचंदा इस फिल्म को प्रोड्यूस करने के लिए तैयार हो गए। हेमा मालिनी, विनोद खन्ना, शम्मी कपूर जैसे अभिनेताओं को कास्ट कर लिया गया। इनके अलावा भी श्रीराम लागू, भारत भूषण, दीना पाठक और अमजद खान जैसे दिग्गज कलाकारों ने फिल्म साइन कर दी। अब गुलजार को इस फिल्म के संगीत के लिए एक ऐसे कलाकार की जरूरत थी जो मीरा के लिखे भजनों को जान डाल दे। गुलजार अपनी फिल्मों में मजबूत संगीत पक्ष के लिए मशहूर हो चुके थे। उनके निर्देशन में बनी फिल्म- ‘परिचय’, ‘आंधी’, ‘मौसम’ का संगीत लोगों ने खूब पसंद किया था। आखिरकार उन्होंने फिल्म ‘मीरा’ के लिए विश्वविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर को संगीत निर्देशन के लिए तैयार किया।

पंडित रविशंकर उस समय तक दुनिया भर में धूम मचा चुके थे। उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका था। उस वक्त पंडित जी उम्र करीब 60 बरस रही होगी जब उन्होंने फिल्म मीरा के लिए संगीत तैयार किया। फिल्म में चूंकि सभी भजन मीरा के थे इसलिए फिल्म का संगीत पक्ष अलग दिखना चाहिए था। इस फिल्म के बेहद लोकप्रिय भजन ‘ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी’ को तैयार करने के लिए पंडित रविशंकर ने जिस राग को चुना वो राग बेहद खूबसूरत रागों में से एक है। हेमा मालिनी पर फिल्माया गए इस भजन को जिस राग पर आधारित किया गया वो है राग-तोड़ी।  इस भजन में पंडित रविशंकर ने सारंगी, बांसुरी और सितार का अद्भुत संयोजन किया था। फिल्म मीरा के  संगीत का एक और पक्ष बड़ा ही रोचक था। दरअसल फिल्म में मीरा के कुल 12-13 भजनों का इस्तेमाल किया गया था। इसमें खूबी ये थी कि गुलजार साहब और पंडित रविशंकर जी ने सभी भजन एक ही  कलाकार से गवाए थे। सिर्फ एक आलाप था जो एक अन्य कलाकार ने गाया था वरना सभी भजन वाणी जयराम की आवाज में थे। इसके पीछे की शायद एक बड़ी वजह ये रही होगी कि वाणी जयराम को उनकी गायकी के अंदाज की वजह से आधुनिक दौर की मीरा कहा जाता था। इसी फिल्म के भजन मेरे तो गिरधर गोपाल के लिए वाणी जयराम को 1980 में सर्वश्रेष्ठ प्लेबैक सिंगर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था।

भजन के बाद राग तोड़ी के और रंग आपको दिखाते हैं। इस राग में 1956 में आई फिल्म- बसंत बहार में ‘दुनिया ना भाए मोहे’, फिल्म-बैजू बावरा में ‘इंसान बनो’, फिल्म-इंतजार का ‘जिस दिन से पिया’, फिल्म-हिमालय की गोद में का ‘मैं तो एक ख्वाब हूं’ जैसे गाने भी लोकप्रिय हुए। लेकिन इस राग में कंपोज जो गाना अब हम आपको बताने जा रहे हैं वो लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचा। फिल्म थी 1971 में आई अमर प्रेम। संगीत निर्देशक थे आरडी बर्मन। गाने के बोल थे- रैना बीती जाए। गीतकार आनंद बक्षी के लिखे इस गीत को लता मंगेशकर ने गाया था। इस फिल्म के अंतरे में आरडी बर्मन ने राग खमाज का प्रयोग किया था। एक गाने में दो खूबसूरत रागों के इस प्रयोग ने इस गाने को बेहद लोकप्रिय बनाया। फिल्मी गायकी के अलावा राग तोड़ी में और भी कई खूबसूरत कंपोजीशन हैं। चूंकि इस राग के किस्से की शुरूआत की है इसलिए आपको इसी राग में कंपोज किया गया एक और बेहद लोकप्रिय भजन बताते हैं। जिसके बोल हैं – जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम।

आइए अब आपको राग तोड़ी के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। ये राग तोड़ी थाट से पैदा हुआ है इसीलिए ये अपने थाट का आश्रय राग है। इस राग में ऋषभ (रे) और धैवत (ध) कोमल लगता है और मध्यम (म) तीव्र लगता है। गाने का समय है दिन का दूसरा प्रहर। इस राग के आरोह और अवरोह में सातों स्वरों का इस्तेमाल है इसलिए इसकी जाति हो जाती है संपूर्ण-संपूर्ण. वादी यानी अहमियत के लिहाज़ से बादशाह स्वर है धैवत और संवादी यानी वज़ीर स्वर है गंधार। आइए राग तोड़ी का आरोह अवरोह और पकड़ देख लेते हैं।

आरोह- सा रे म॑  s , म॑  नि सां

अवरोह- सा नि  , म॑ रे  रे सा

पकड़-  प म॑  s रे  रे सा

खास बात ये है कि राग तोड़ी को मियां की तोड़ी के नाम से भी जानते हैं। माना जाता है कि इस  राग को संगीत सम्राट मियां तानसेन से बनाया था, इसीलिए इसका नाम मियां की तोड़ी रखा गया।  यूं तो तोड़ी के और भी कई प्रकार हैं जैसे- गुजरी तोड़ी, बिलासखानी तोड़ी,  आसावरी तोड़ी, भूपाल तोड़ी वगैरह। लेकिन आधार राग मियां की तोड़ी ही है, इसलिए सिर्फ तोड़ी कहा जाए तो मियां की तोड़ी समझना चाहिए।

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