1965 में मनोज कुमार और माला सिन्हा की एक फिल्म ने इंडस्ट्री में धूम मचा दी। इस फिल्म को विजय भट्ट ने डायरेक्ट किया था। फिल्म ने ना सिर्फ उस साल का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीता बल्कि उसे साठ के दशक की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली टॉप-20 फिल्मों में भी शामिल किया गया। फिल्म की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बाद में इस फिल्म का तमिल और तेलगु रीमेक भी बना। तमिल रीमेक में एमजीआर जैसे लोकप्रिय कलाकार ने एक्टिंग की थी। इस फिल्म का नाम था- हिमालय की गोद में। इस फिल्म में एक गाने का किस्सा बड़ा दिलचस्प है। हुआ यूं कि डायरेक्टर विजय भट्ट इस फिल्म की सिचुएशन के हिसाब से एक ही गाने के दो वर्जन चाहते थे लेकिन अलग अलग लिरिक्स के साथ। जाहिर है एक गाना माला सिन्हा की खुशी पर और दूसरा उनके दर्द पर फिल्माया गया था। इसके बाद भी कई हिंदी फिल्मों में गानों का ‘सैड’ यानि दुख भरा वर्जन आपने सुना होगा लेकिन उनकी ‘लिरिक्स’ एक ही होती है। यहां बदलाव गीत के बोल में भी किया जाना था। फिल्म में बतौर गीतकार आनंद बक्षी, कमर जलालाबादी और इंदीवर साहब काम कर रहे थे। ये चुनौती इंदीवर ने ली। लगे हाथ आपको ये भी बताते चलें कि इंदीवर का असली नाम श्यामालाल बाबू राय था। उत्तर प्रदेश के झांसी से मुंबई तक का कामयाब सफर तय करने वाले श्यामालाल बाबू राय का उपनाम था- इंदीवर।
ये इंदीवर की काबिलियत ही थी कि उन्होंने एक ही गाने को दो अलग अलग तरीके ले लिखा। पहले गाने के बोल थे- एक तू ना मिला सारी दुनिया मिले भी तो क्या है, मेरा दिल ना खिला सारी बगिया खिले भी क्या है। दूसरे गाने के बोल थे- एक तू जो मिला, सारी दुनिया मिली, खिला जो मेरा दिल सारी बगिया खिली। दोनों ही गाने माला सिन्हा पर फिल्माए गए थे। दोनों ही गानों को लता मंगेशकर ने गाया था। ये काम आसान नहीं था लेकिन ये प्रयोग और ये दोनों ही गाने खूब पसंद किए गए थे। इस गाने को राग चारूकेशी पर कंपोज किया गया था। इसी राग पर फिल्म-सरस्वतीचंद्र का एक बेहद लोकप्रिय गीत कंपोज किया गया था- छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए। लता मंगेशकर की आवाज में गाया गया ये गाना आज भी सुपरहिट है। इस फिल्म का संगीत कल्याण जी आनंद जी ने दिया था। इस फिल्म के संगीत के लिए इस जोड़ी को पहला नेशनल अवॉर्ड भी मिला था। इस गाने को लेकर ये चर्चा बहुत आम हुई थी कि इस गाने को सुनने के बाद प्यार में चोट खाए बहुत से लोगों ने दिल से खुदकुशी का ख्याल निकाला था। इस फिल्म के ही टाइटिल पर बाद में जाने माने डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ने टीवी सीरीज भी तैयार की थी।
इन दो सुपरहिट गानों के अलावा भी कई फिल्मी गाने इस राग पर कंपोज किए गए हैं। फिल्म-राज का गाना ‘अकेले हैं चले आओ कहां हो’, फिल्म-दस्तक का ‘बईंया ना धरो’, फिल्म- मेरे हमसफर का गाना ‘किसी राह में किसी मोड़ पर’ फिल्म-गीत गाता चल का ‘श्याम तेरी बंसी’ और फिल्म-आरजू का बेदर्दी बालमा याद आते हैं। बहुत हाल फिलहाल की फिल्मों में तो नहीं लेकिन नए दौर की फिल्मों में 1990 के दशक में आई फिल्म ‘दीवाना’ का वो गाना खूब हिट हुआ था। जिसके बोल थे- तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करते हैं, ऐ सनम हम तो सिर्फ तुमसे प्यार करते हैं। ये गाना भी राग चारूकेशी पर ही कंपोज किया गया था। चारूकेशी इतना मीठा राग है कि इस राग में जो भी रचना बनी है यादगार बनी है। ये राग वियोग और भक्ति के रस से सराबोर है। सुगम संगीत इस राग में बहुत सुंदर लगता है। मेहदी हसन ने चारूकेशी में एक ग़ज़ल गई है- मैं होश में तो फिर उसपे मर गया कैसे। नसीर काजमी की लिखी ग़ज़ल ‘दुख की लहर ने छेड़ा होगा’ को गुलाम अली ने राग चारूकेशी में ही गाया है। जगजीत सिंह ने भी कुछ ग़ज़लें इस राग में गाई हैं। जिसमें शायर सुदर्शन फाकिर की लिखी ‘पत्थर के खुदा पत्थर के सनम’ और ‘मैं ख्याल हूं किसी और का’ इसी राग में है।
अब इस राग का शास्त्रीय पक्ष भी जान लेते हैं। राग चारुकेशी दक्षिण भारतीय संगीत से लिया गया राग है। इस राग में धैवत और निषाद कोमल लगते हैं, बाकी सारे स्वर शुद्ध हैं। इस राग का वादी स्वर है मध्यम और संवादी है षड़ज। राग के आरोह और अवरोह में सातों स्वरों का इस्तेमाल होता है इसलिए इसकी जाति कहलाती है संपूर्ण-संपूर्ण। चारुकेशी को गाने बजाने का समय दिन का दूसरा प्रहर माना गया है। इस राग का आरोह अवरोह देख लेते हैं।
आरोह- सा रे ग म प ध नि सां
अवरोह- सां नि ध प म ग रे सा
मुख्य स्वर- ध़ ऩि सा रे ग म रे सा
शास्त्रीय कलाकारों में आज नए जमाने के कलाकार नीलाद्री कुमार का बजाया राग चारूकेशी खूब सुना जाता है। इसके अलावा एक और शास्त्रीय कलाकार का बजाया राग चारूकेशी खूब सुना जाता है। वो कलाकार हैं सीकर घराने के उस्ताद सुल्तान खान। जी हां, जिनकी गायकी में – पिया बसंती रे काहे सताए आ जा जबरदस्त हिट हुआ था।