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फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसी जोड़ियां परदे पर बनीं जिन्हें दर्शकों ने दिल खोल कर सराहा। मसलन- नरगिस और राज कपूर की जोड़ी। इसके अलावा दिलीप कुमार- वैजयंती माला, गुरूदत्त-वहीदा रहमान, अमिताभ बच्चन- रेखा, राजेश खन्ना-शर्मिला टैगोर, देव आनंद-मधुबाला, राजकुमार-मीना कुमारी, शम्मी कपूर-शर्मिला टैगोर, अनिल कपूर-श्रीदेवी से लेकर शाहरूख खान-काजोल अक्षय कुमार और शिल्पा शेट्टी तक की जोड़ियां फिल्मी परदे पर छाई रहीं। इसी कड़ी में एक और जोड़ी थी- फारूख शेख और दीप्ति नवल की। इन दोनों कलाकारों की जोड़ी फिल्मी परदे पर बहुत स्वाभाविक लगती थी। दरअसल असल जिंदगी में भी इन दोनों कलाकारों में गजब की दोस्ती थी। दीप्ति नवल खुद कहती हैं कि आज के दौर में फारूख शेख जैसा को-स्टार मिलना बहुत मुश्किल है। फारूख शेख दीप्ति नवल के साथ खूब मजाक करते थे। ऐसा लगता था कि फारूख ने कभी भी दीप्ति को ‘सीरियसली’ नहीं लिया। हर वक्त मजाक करते रहना उनकी आदत थी। वो और ऋषि दा जब एक साथ मिल जाते थे तो दीप्ति नवल की खूब खिंचाई होती थी। दीप्ति जैसे ही सेट पर पहुंचती थी इन लोगों के ‘वन लाइनर्स’ शुरू हो जाते थे। दीप्ति कई बार नाराज भी हो जाती थीं लेकिन फारूख फिर भी नहीं मानते थे। इन सारी नोंकझोंक के बाद भी दोनों कलाकारों के मन में एक दूसरे के लिए बहुत सम्मान था। यहां तक कि दीप्ति नवल जब अपनी किताब लिख रही थीं तो किताब में शामिल कहानियों को एडिटर को देने से पहले वो फारूख शेख को ही पढ़ाती थीं। फारूख प्यार से दीप्ति नवल को ‘दीप्स’ बुलाया करते थे। इस जोड़ी की चर्चा हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इस जोड़ी पर फिल्माया गया एक गीत आज भी अद्भुत सुकून देता है। हम उस गाने की बात कर रहे हैं जिसके बोल हैं- तुमको देखा तो ये ख्याल आया।

1982 में आई फिल्म-साथ साथ का ये गाना आज भी लोग बेहद पसंद करते हैं। रमन कुमार के निर्देशन में बनी इस फिल्म का संगीत कुलदीप सिंह ने दिया था। गीत के बोल लिखे थे जावेद अख्तर ने। इस गाने को कुलदीप सिंह ने शास्त्रीय राग कामोद को आधार बनाकर कंपोज किया था। सच्चाई ये है कि फिल्मी संगीत में राग कामोद ज्यादा प्रचलित रागों में ना तो था ना अब ही है, लेकिन कुलदीप सिंह की इस कॉम्पोजीशन ने कमाल कर दिया। इस फिल्म के सभी गाने एक से बढ़कर एक थे। आज भी इन गानों में एक किस्म का खिंचाव है। यूं जिंदगी की राह में, प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगी, ये तेरा घर ये मेरा घर, ये बता दे मुझे जिंदगी जैसे ग़ज़ल नुमा गाने श्रोताओं ने खूब पसंद किए। ग़ज़ल गायकी की मशहूर जोड़ी जगजीत सिंह और चित्रा सिंह की लोकप्रियता में भी इस फिल्म के गानों का जबरदस्त रोल है। कुलदीप सिंह ने इस फिल्म के अलावा फिल्म आक्रोश में भी संगीत दिया था। जिसका गाना- इतनी शक्ति हमें देना दाता मन का विश्वास कमजोर हो ना हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के अमर गानों में से एक कहा जाता है। कुलदीप सिंह के बेटे जसविंदर सिंह भी जाने माने ग़ज़ल गायक हैं। कुलदीप सिंह उन चुनिंदा संगीतकारों में से हैं जिन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में बहुत कम फिल्मों का संगीत देने के बाद भी जबरदस्त कामयाबी, प्यार और लोकप्रियता हासिल की।

जैसा कि हमने आपको बताया कि फिल्मी संगीत में इस राग का प्रचलन ज्यादा नहीं है। बावजूद इसके कुछ गाने हैं जो इस राग के इर्द गिर्द बनाए गए हैं। 1964 में आई फिल्म चित्रलेखा में लता मंगेशकर की आवाज में गाया गीत ‘ऐ री जाने ना दूंगी’ राग कामोद पर आधारित है। इसका संगीत रोशन ने तैयार किया था और ये गाना प्रदीप कुमार और मीना कुमारी पर फिल्माया गया था। सच पूछिए तो ये गीत दरअसल राग कामोद की तीन ताल में निबद्ध बंदिश ही है, जो तकरीबन इसी रूप में शास्त्रीय मंचों पर भी गाई जाती है. ये ठीक वैसा ही है जैसे राग भैरव की बंदिश जागो मोहन प्यारे को मोडिफाई करके फिल्म जागते रहो में इस्तेमाल किया गया था. इसके अलावा 1958 में आई फिल्म-रागिनी का छेड़ दिए मेरे दिल के तार को और 1966 में आई फिल्म- आम्रपाली का जाओ रे जोगी तुम जाओ रे प्रमुख है।

आपको राग कामोद के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग कामोद की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी जाती है। इसमें दोनों मध्यम प्रयोग होते हैं। इस राग में बाकि सभी स्वर शुद्ध होते हैं। इस राग की जाति वक्र संपूर्ण है। राग कामोद में वादी स्वर ‘प’ होता है जबकि संवादी स्वर ‘रे’ होता है। इस राग को गाने बजाने का समय रात का पहला प्रहर माना गया है। इस राग में ‘रे’ और ‘प’ की संगति बार बार दिखाई जाती है। इस राग में तीव्र ‘म’ का प्रयोग सिर्फ आरोह में पंचम के साथ किया जाता है। इस राग का आरोह अवरोह और पकड़ जान लेते हैं।

आरोह- सा, (म) रे प, म (तीव्र) प, ध प नी ध सां
अवरोह- सां नी ध प, म(तीव्र) प ध प, ग म प ग म रे सा
पकड़- (म) रे प, ग म प ग म रे सा, (म) रे प

आपने गौर किया होगा कि इस राग के आरोह अवरोह में एक ‘ब्रैकेट’ के भीतर (म) लिखा हुआ है। आइए आपको इसका मतलब भी बताते हैं। दरअसल राग कामोद में ‘रे’ और ‘प’ की संगति बार बार दिखाई जाती है। ‘रे’ और ‘प’ की संगति दिखाते वक्त ‘रे’ पर ‘म’ का कण लगाकर प पर जाते हैं। इस राग को राग हमीर के आस पास का राग माना जाता है।

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