लता मंगेशकर जी से आपकी पहली मुलाकात कैसे हुई क्या आपको वो पल अभी भी याद है?
लता मंगेशकर जी के साथ करियर का पहला गाना रिकॉर्ड करने के बाद मैं सपनों की दुनिया में थी। मुझे याद है कि उस रोज मैं मेरी मम्मी और मामुनी इतने खुश थे कि स्टूडियो से निकलने के बाद घर जाने की बजाए गलत रास्ते पर चले गए। बहुत दूर जाने के बाद समझ आया कि हम उल्टे रास्ते पर चले जा रहे हैं। फिर किसी तरह देर सबेर हम लोग घऱ पहुंचे। मुझे कई बार ऐसा लगता है कि भगवान ने अलग अलग तरह से मेरे लिए रास्ते बनाए। मैं एक मिडिल क्लास फैमिली की लड़की जिसे फिल्म इंडस्ट्री में कोई जानता नहीं था। गायकी की दुनिया में मेरा कोई बहुत बड़ा नाम तक नहीं था। लेकिन चूंकि भगवान ने मेरी तकदीर में संगीत लिखा था तो मेरे लिए एक एक दरवाजे खुलते चले गए। एक रोज मन्ना डे के घर से फोन आया। उनके साथ ढोलक बजाते थे-श्याम राव। उन्होंने फोन किया था। उन्होंने कहा कि मन्ना दा का सूरत में एक शो है। हम आपका ट्रेन टिकट करा देंगे। आप सूरत पहुंच जाइएगा। वहां रिहर्सल के बाद शो होगा। मैं सूरत पहुंच गई। होटल पहुंचने के बाद कुछ खाया पीया। तब तक फोन आया कि आप मन्ना दा के कमरे में पहुंच जाइए, वहां रिहर्सल हो रहा है।
मैंने मन्ना दा के कमरे का दरवाजा खोला। अंदर मन्ना दा अपने हारमोनियम पर रियाज कर रहे थे। मेरे पैर ठिठक गए। वो क्या कमाल का गा रहे थे। इतनी खूबसूरत गायकी। उसमें जबरदस्त शास्त्रीयता। मैं मंत्रमुग्ध थी। फिर वो रूके उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या तुम तैयार हो ‘ड्यूइट्स’ गाने के लिए। मैंने बताया कि हां मैंने कुछ गाने तैयार किए हैं। मैंने गानों का मुखड़ा बताया- ये रात भीगी भीगी, आ जा सनम मधुर चांदनी में हम। ये सब गाने मैंने तैयार किए थे। मुझे इन गानों की लिस्ट भी दी गई थी। उन्होंने पहला गन्ना गाने को कहा- ये रात भीगी भीगी। ये बहुत मुश्किल गाना है। यकीन मानिए मै बहुत डरी हुई थी। मेरे अंदर ‘ऑडियंस’ का बड़ा डर होता था। कुछ लोग स्टेज पर बहुत बिंदास होकर गाते हैं। लेकिन मेरे साथ ऐसा नहीं था। मैं रिकॉर्डिंग माइक के सामने गाने में मैं ज्यादा ‘कंफर्टेबल’ थी। मैंने दादा के साथ क्या गाया मुझे कुछ याद नहीं। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा। शाम को सीधा उनके साथ मेरा शो हुआ। शाम के शो में मैंने उनके साथ 4 गाने गाए। इसके अलावा कुछ ‘सोलो’ गाने गाए जो लता जी और आशा जी के थे। वो 4 गाने जो मैंने गाए उसका नतीजा ये रहा कि उसके बाद मैं 18 साल तक मन्ना दा के साथ दुनिया के कोने कोने में जाकर गाती रही। वो हर तरह से एक महान कलाकार थे। एक इंसान के तौर पर वो बहुत सहज इंसान थे। रोज रियाज करते थे। बड़े दयालु भी थे। असल में हेमंत दा और मन्ना दा दोनों मेरी जिंदगी में पिता की तरह ही रहे।
आपका असली नाम शारदा है तो फिर कविता नाम से आप इतनी मशहूर कैसे हुईं?
मेरे नाम की भी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। दरअसल मेरा असली नाम शारदा था। मैं इसी नाम से जानी जाती थी। परेशानी ये थी शारदा राजन नाम की एक और बड़ी गायिका हुआ करती थीं। फिल्म सूरज का उनका गाना ‘तितली उड़ी’ बहुत लोकप्रिय हुआ था। मैं जब भी स्टेज पर जाती थी लोग सोचते थे कि मैं वही शारदा हूं। लगभग सभी शो में मुझसे ‘तितली उड़ी’ गाने की फरमाइश होती थी। मुझे हर किसी को बताना पड़ता था कि मेरा नाम भी शारदा है लेकिन मैं वो वाली शारदा नहीं हूं। मुझे ये भी बताना पड़ता था कि मैं सिर्फ लता जी और आशा जी के गाने ही गाती हूं। हेमंत दा और मन्ना दा दोनों इस बात को जानते थे। एक दिन हेमंत दा बोले कि अब ऐसे काम नहीं चलेगा तुम्हें अपना नाम बदलना पड़ेगा। उसी समय मामुनी ने मेरा नाम बदलकर कविता किया। मेरे कुछ कॉलेज के दोस्तों को छोड़ दिया जाए तो सब लोग मेरा नाम अब कविता ही जानते हैं।
आप शुरुआत में लता जी के गाने डब किया करती थी तो आपको कभी ये नहीं लगा कि आप ऐसा क्यों कर रही हैं या आपके करियर के लिए ये गलत हो सकता है?
उसी दौरान कॉलेज के मेरे सीनियर नितिन मुकेश ने मुझे अपने पिता मुकेश जी से मिला दिया। मैं उनके साथ भी गाने लगी। मन्ना दा का शो जब नहीं होता था तब मैं मुकेश जी के साथ गाया करती थी। यानि उस समय में मैं हेमंत दा, मन्ना दा, मुकेश जी और कभी कभार तलत जी के साथ भी शो किया करती थी। एकाध बार मैंने महेंद्र कपूर जी के साथ भी शो किया है। ये तब की बात है जब मैं कॉलेज में ही थी। इन सभी लोगों से बहुत कुछ सीखने को मिला। उसके बाद 1974 में मेरे पिता का निधन हो गया। वो यूएन में कॉपीराइट एक्सपर्ट थे। स्विटजरलैंड में ही उनको दिल का दौरा पड़ा और वो हमें छोड़ गए। उसके बाद तो मन्ना दा हमेशा पिता की तरह ही रहे। वो मुझे घुमाने साथ ले जाते थे विदेश दौरो पर साथ ही ये नसीहत ये भी देते थे कि शॉपिंग बाद में करना है पहले रियाज करो। वो बहुत नेकदिल इंसान थे। इसके बाद एक दिन सी रामचंद्र जी के यहां से मुझे बुलाया गया। वो मेरे साथ की पहली मुलाकात भूल गए थे। मैंने उन्हें याद दिलाया कि आपने कहा था कि 10 साल बाद आओ, अभी तो 5-6 साल ही हुए हैं। सी रामचंद्र साहब चौंक गए। वो मुस्कराने लगे। फिर वो मुझे सिखाने लगे। वो अक्सर मुझे लता जी के गाए गाने सिखाते थे। वो बहुत छोटी छोटी बातें सिखाया करते थे।
इसी बीच एक दिन हेमा मालिनी जी की मां मुझे लक्ष्मीकांत प्यारेलाल जी के यहां लेकर गईं। वहां प्यारे भाई, लक्ष्मी जी और आनंद बक्षी साहब बैठे हुए थे। मैं तो इन लोगों को देखकर कांप रही थी। मुझे लग रहा था कि मैं इनको क्या सुनाऊंगी, ये लोग तो लता जी के साथ गाने रिकॉर्ड करते हैं। हेमा जी की मां के कहने पर मैंने गाना सुना दिया। बस मुझे इतना याद है कि मैं रोने ही वाली थी। इसके दो तीन साल 1978 की बात है। उनके सेकेट्री थे चंद्रकांत जी, जिन्होंने बताया कि लक्ष्मी ने घर बुलाया है सिटिंग के लिए। कोई गाना है जो असल में लता जी गाएंगी लेकिन हीरोइन को शूट करने के लिए एक आवाज चाहिए तो आप आकर ‘डबिंग’ कर दीजिए। उन्होंने पूछा भी कि आपको डबिंग गाने में कोई ऐतराज तो नहीं है। मैंने कहाकि नहीं मुझे कोई ऐतराज नहीं है। लता जी के लिए गा रही हूं, उपर से लक्ष्मी जी और प्यारे जी के साथ गा रही हूं किस बात का ऐतराज। मेरे लिए इससे अच्छी ट्रेनिंग क्या हो सकती है। इसके बाद तो मैं हर हफ्ते कम से कम चार गाने लता जी के लिए डब करने लगी।