छन्नूलाल मिश्र के गाने की खासियत ये है कि वो गाना गाते समय उस गाने के बारे में समझाते भी है वो ऐसा क्यों करते हैं और इसके पीछे की असली वजह क्या है ये तो हम आगे उनसे जानेंगे ही लेकिन अमिताभ बच्चन से लेकर ऐश्वर्या राय बच्चन, आमिर खान जैसे कई बड़े बॉलीवुड स्टार्स छन्नूलाल मिश्र का ना सिर्फ सम्मान करते हैं बल्कि उनके साथ पंडित जी का भी खास लगाव है। एक शास्त्रीय संगीत के महान गायक को बॉलीवुड के कौन से गाने पसंद है और वो बॉलीवुड के गानों के बारे में क्या सोचते हैं इस बारे में भी उन्होंने रागगिरी से खास बात की।
आप गाना गाते भी हैं और समझाते भी हैं इसके पीछे की असली कहानी क्या है?
मैंने अपनी गायकी में एक खास अंदाज विकसित किया। मैं सिर्फ गाता नहीं हूं लोगों को समझाता हूं। उन्हें बताता हूं कि स्वर, मींड, मुर्की, खटका इन शब्दों के क्या मायने होते हैं। वरना होता ये है कि बड़े बड़े कलाकार अपना कार्यक्रम करके चले जाते हैं, श्रोताओं को समझ कुछ नहीं आता है। मेरे ख्याल से शास्त्रीय संगीत का शास्त्र तब होता है जब स्वर और लय का ज्ञान हो जाता है। आप सोच कर देखिए अगर स्वर का ज्ञान हो गया, अगर लय का ज्ञान हो गया तब वो शास्त्र में आ जाता है। और जब इन बातों का ज्ञान नहीं होता है, तो वही लोक संगीत रह जाता है। आप फिल्मी गानों की ही बात कर लीजिए, जब तक गाना फिल्मी है ठीक है, लेकिन जैसे ही उसका नोटेशन लिख गया तो वो भी शास्त्र हो गया। बिना नोटेशन के गाना बनता भी नहीं है। ये मेरे बरसों का अनुभव है। आपको लोग उदाहरण के लिए समझिए- फिल्मी गाना है “सोचेंगे तुम्हें प्यार करें या नहीं” इसका नोटेशन लिख लीजिए- “प ग रे स रे म ग रे ग रे नी स”। जैसे ही नोटेशन आया शास्त्र आ गया।
आप शास्त्रीय संगीत के मशहूर गायक हैं लेकिन क्या आप फिल्मी संगीत सुनना पसंद करते हैं? आप अगर गायक ना होते तो फिर क्या बनना चाहते
गांव देहात के लोगों को स्वर का ज्ञान नहीं होता है, लेकिन उन्हें परंपरा का पता अच्छी तरह है। कोई भी गाना जैसे ही स्वर के बंधन में आ गया शास्त्र हो गया। हमको हर संगीत से प्रेम है। हमको ये भी अच्छा लगता “बतावा चांद केकरा से कहां मिल जाला। गरजे बदरिया, चमके बिजुरिया… बहकी बहकी बहेले बयरिया… बतावा चांद केकरा से कहां मिल जाला।” मुझे फिल्मी गाने भी पसंद हैं, हमको नौशाद साहब ने पुरस्कार दिया। आप उनकी बनाई धुन याद कीजिए। उनके शब्द याद कीजिए। दिन ढल जाए हाय रात ना जाए…तू तो ना आए तेरी याद सताए। अब इसकी तुलना इस गाने से कीजिए- झूठ बोले कौवा काटे। इन गानों के शब्दों में कितना फर्क है। स्तर इतना गिर गया कि संगीत मजाक हो गया, लोगों को समझना चाहिए कि संगीत एक आध्यात्मिक चीज है। इसे अच्छी दृष्टि से लोग देखते थे, लेकिन पिछले कुछ समय में गाने बने, खटिया हिलेल, चोली के पीछे क्या है…मुझे नहीं समझ में आता है कि आखिर क्यों ऐसे गाने को लोग सेंसर में पास करते हैं…ये लोगों को मूर्ख बनाना है। इसको हम बिल्कुल पसंद नहीं करते हैं। इसकी वजह ये है कि मुझे सिर्फ संगीत से प्यार है, लोग पूछते हैं कि अगर आप गायक नहीं होते तो क्या होते, मैं कहता हूं कि शायद मैं गरीब किसान होता या फिर रिक्शा चलाता क्योंकि मुझे संगीत के अलावा ना तो कुछ आता था और ना ही मैं कुछ करना चाहता था।
मेरा मानना है कि आप जो भी गा रहे हैं, वो दर्शकों के ‘रिएक्शन’ से समझ आ जाता है। अगर आपका गाना श्रोताओं को पसंद आ रहा है तो आपको तुरंत पता चल जाएगा, अगर वो ‘रिएक्शन’ नहीं दे रहे हैं यानि उनको मजा नहीं आ रहा है तो समझ लीजिए कि उनको अच्छा नहीं लग रहा है।
आपने फिल्म में भी गाना गया है और बॉलीवुड के कई स्टार्स अपके बेहद करीब हैं, इस बारे में कुछ बताइए
हमने आरक्षण फिल्म में गाना गाया था-राग मिश्र तोड़ी में है। शब्द सुनिए- “कौन सी डोर छोड़े- कौन सी काटे रे”। इस गाने का प्रसंग ये है कि फिल्म में स्त्री के पिता है अमिताभ बच्चन..हीरोईन के पति से कोई गलती हुई। हीरोईन कहती है कि पिता से माफी मांगो, पति ऐसा करने से मना कर देता है। ऐसे में हीरोईन सोच रही है कि किस तरफ जाएं…कौन सी डोर छोड़े, कौन सी काटे रे। इस गाने के बोल प्रसून जोशी ने लिखे थे। प्रकाश झा को प्रसून जी ने ही कहा था कि वो इस गाने के लिए मुझसे संपर्क करें। मैंने गाने के बोल को पढ़ने के बाद हामी भरी। गाने की धुन शंकर एहसान लॉय ने बनाई थी और श्रेया घोषाल के साथ मैंने ये गाना गाया। कुल मिलाकर उसका अनुभव अच्छा था। ऐसा नहीं है कि फिल्मी दुनिया से मेरा रिश्ता नहीं है। अमिताभ बच्चन की गायकी को हर कोई जानता है, वो कई बार कह चुके हैं कि छन्नू लाल जी को सुन कर बहुत कुछ सीखा है। अभिषेक बच्चन ऐश्वर्य राय की शादी में उन्होंने खास तौर पर हमको बुलाया था। आमिर खान मिल चुके हैं। एक बार ऐश्वर्य राय बनारस आईं तो कहनें लगीं कि आपसे मिलने आना है…मैंने कहा कि कहां आप बनारस की गलियों में घूमेंगी, यहां पता चल गया तो आपको देखने के लिए मार हो जाएगी, इसलिए मैं खुद ही उनसे मिलने चला गया। बहुत से बड़े संगीत के कार्यक्रमों को मैंने बतौर जज ‘अटैंड’ किया। लेकिन मुझे लगता है कि वहां ज्यादातर बच्चे बड़े बड़े गायकों की कॉपी करते हैं, उनका अपना ज्ञान अपनी ट्रेनिंग कम ही है। उन कार्यक्रमों में तमाम तरह के दबाव होते हैं। हालांकि मुझे अच्छे संगीत से प्यार है, वो चाहे जहां मिले।