साल था 1956। अनंत ठाकुर बतौर डायरेक्टर अपने करियर की चौथी फिल्म बना रहे थे। इस फिल्म के लिए उन्होंने पहली बार उस दौर के बड़े स्टार्स को साइन किया था। फिल्म में भारतीय फिल्मों की सबसे हिट जोड़ियों में से एक राज कपूर और नरगिस थे। इसके अलावा प्राण और जॉनी वाकर जैसे कलाकार भी फिल्म का हिस्सा थे। फिल्म के गीत लिखने की जिम्मेदारी हसरत जयपुरी और शैलेंद्र की दी गई। संगीत बनाने का जिम्मा उस दौर की कामयाब जोड़ी शंकर जयकिशन को मिला। अब तक आप समझ गए होंगे कि हम फिल्म ‘चोरी चोरी’ की बात कर रहे हैं। जिसे अनाधिकारिक तौर पर एक अमेरिकी फिल्म ‘इट हैपेन्ड वन नाइट’ का रीमेक भी माना जाता है। साथ ही इसी फिल्म के एक और अनाधिकारिक रीमेक के तौर पर हमने 1991 में महेश भट्ट की ‘दिल है कि मानता नहीं’ भी देखी है। जिसमें आमिर खान और पूजा भट्ट ने एक्टिंग की थी और वो फिल्म खूब हिट हुई थी। खैर, शंकर जयकिशन ने इस फिल्म के लिए एक से एक धुन तैयार की। शैलेंद्र, हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन ने रसिक बलमा, जहां मैं जाती हूं वहीं चले आते हो, पंक्षी बनूं उड़ती फिरूं, आजा सनम मधुर चांदनी में हम और ये रात भीगी भीगी जैसे अमर गाने इस फिल्म के लिए तैयार किए। असली परेशानी आई इन गानों के गायक को चुनते वक्त। ये वो दौर था जब मुकेश राज कपूर की आवाज बन चुके थे। स्क्रीन पर राज कपूर जब मुकेश की आवाज पर होठ हिलाते थे तो सबकुछ बड़ा असली लगता था।
इस दिलचस्प किस्से की शुरूआत तब हुई जब मुकेश ने जरूरत से ज्यादा व्यस्तता की वजह से ‘प्लेबैक
सिंगिग’ के लिए समय निकालने में असमर्थता जाहिर की। शंकर जयकिशन ने हमेशा की तरह चोरी चोरी
के गानों में शास्त्रीयता का एक मजबूत पक्ष रखा था। बतौर ‘फीमेल सिंगर’ लता मंगेशकर तो थीं लेकिन उनके साथ पुरूष आवाज किसकी होगी, इसको लेकर माथापच्ची चल रही थी। आखिरकार शंकर जयकिशन ने फैसला किया कि वो इस फिल्म में मन्ना डे को राज कपूर की आवाज बनाएंगे। मन्ना डे की आवाज को इससे पहले शंकर जयकिशन ने अपने शास्त्रीय गीतों के लिए इस्तेमाल किया था। ये पहला मौका था जब राज कपूर के गानों के लिए मन्ना डे को चुना गया। मुसीबत यहां भी खत्म नहीं हुई। जैसे ही फिल्म के डिस्ट्रीब्यूटर कंपनी एवीएम प्रोडक्शंस को इस बदलाव का पता चला उन्होंने गानों की रिकॉर्डिंग ही रोक दी। एवीएम प्रोडक्शंस देश का बहुत प्रतिष्ठित फिल्म स्टूडियो है। कंपनी के मालिक एवी मयप्पन बड़े तजुर्बेकार आदमी थी। उनकी बड़ी इज्जत थी। उन्होंने किसी बात के लिए ‘ना’ कह दिया तो फिर उन्हें मनाना मुश्किल था। आखिर में राज कपूर ने बड़ी मेहनत से उन्हें समझाया बुझाया और इस तरह फिल्म इंडस्ट्री को राज कपूर की आवाज के तौर पर एक और गायक मन्ना डे मिले। इस किस्से को सुनाने के बाद आपको वो गाना बताते हैं। जिसके बोल थे- ये रात भीगी भीगी।
आज 6 दशक बाद भी बेहद लोकप्रिय इस गाने को शंकर जयकिशन ने राग किरवानी में कंपोज किया था। मन्ना दा की आवाज के साथ गाने की शुरूआत के बाद ‘क्रॉस-फेड’ करते हुए जब लता जी की आवाज आती है तो वाकई इस गाने की खूबसूरती और बढ़ जाती है। राग किरवानी उस दौर की फिल्मों में इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे प्रचलित रागों में से एक है। दिलचस्प जानकारी ये भी है कि यही वो फिल्म थी जब सिनेमा प्रेमियों ने राज कपूर और नरगिस की सुपरहिट जोड़ी को आखिरी बार स्क्रीन पर देखा था। राग किरवानी में कंपोज किए गए हिंदी फिल्मी गीतों की एक लंबी लिस्ट है। उस लिस्ट में से कुछ गाने हम आपके लिए निकालते हैं। इनमें से 1954 में आई फिल्म-नागिन का ‘मेरा दिल ये पुकारे आजा’ 1979 में आई फिल्म-गोलमाल का बेहद हिट गाना ‘आने वाला पल जाने वाला है’ 1971 में आई फिल्म-लाल पत्थर का गीत गाता हूं मैं गुनगुनाता हूं मैं, 1962 में आई फिल्म-एक मुसाफिर एक हसीना का ‘मैं प्यार का राही हूं’ 1973 में आई फिल्म-अनामिका का ‘मेरी भीगी भीगी सी पलकों पर’, 1963 में आई फिल्म- दिल एक मंदिर का ‘याद ना जाए बीते दिनों की’ जैसे गाने बहुत लोकप्रिय हुए। इस राग पर कंपोज किए गए दो फिल्मी गानों का जिक्र और करना जरूरी है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये राग किरवानी पर आधारित अपेक्षाकृत नए गाने हैं जो फिल्मों में इस्तेमाल किए गए। 1985 में आई फिल्म- राम तेरी गंगा मैली का गाना ‘इक राधा इक मीरा’ भी इसी राग पर आधारित है। लता जी के गाए और संगीतकार रवींद्र जैन के कंपोज किए गए इस गाने में सारंगी का बहुत खूबसूरत प्रयोग है। बीच बीच में लता जी ने छोटी छोटी तानें भी ली हैं जो इस गाने को और खूबसूरत बनाता है। इसके अलावा 2006 में एक फिल्म आई थी- अनवर। इस फिल्म का संगीत पंकज अवस्थी ने दिया था। इस फिल्म का एक गाना काफी लोकप्रिय हुआ था ‘तोसे नैना लागे पिया सांवरे’। इस गाने ने शिल्पा राव को इंडस्ट्री में काफी नाम दिया। हालांकि ये भी कहा जाता है कि ये गाना पूरी तरह किरवानी पर आधारित नहीं है।
दरअसल कुछ रागों में ऐसी खास मिठास होती है जो शास्त्रीय संगीत की समझ न रखने वालों का भी मन मोह लेती है। राग किरवानी ऐसे ही रागों में शामिल है। यही वजह है कि राग किरवानी में बेशुमार फिल्मी गीत और ग़ज़लें बनाई गई हैं। संगीत के जानकार कहते हैं कि किरवानी सुगम संगीत में बहुत अच्छा खिलता है। मिसाल के तौर पर- पिछले चार पांच दशक के तीन सबसे लोकप्रिय गजल गायक हुए- मेंहदी हसन, गुलाम अली और जगजीत सिंह। इन तीनों ही गायकों ने इस राग में अपनी अपनी ग़ज़लें कंपोज की हैं जो बेहद लोकप्रिय भी रही हैं। राग किरवानी के शास्त्रीय पक्ष पर बढ़ने से पहले आपको ये तीनों ग़ज़लें बताते हैं। मेहंदी हसन की शोला हूं जल बुझा हूं। गुलाम अली की ऐ हुस्ने बेपरवाह तुझे और जगजीत सिंह की गजल बेसबब बात बढ़ाने की जरूरत क्या है राग किरवानी में ही कंपोज की गई थीं।
राग किरवानी के शास्त्रीय पक्ष के बारे में आपको बताते हैं। किरवानी में यूं तो खयाल भी गाया बजाया जाता है लेकिन इस राग को सुगम संगीत या लाइट म्यूजिक के लिए बहुत मुफीद माना जाता है। यही वजह है कि किरवानी में एक से बढ़कर एक फिल्मी गाने, ग़ज़लें और भजन कंपोज किए गए हैं। श्रृंगार, खास तौर पर वियोग श्रृंगार वाले गाने किरवानी में खूब खिलते हैं। किरवानी में गंधार और धैवत कोमल होते हैं और बाकी स्वर शुद्ध। आरोह और अवरोह दोनों में सारे स्वर लगते हैं इसलिए इसकी जाति कहलाती है संपूर्ण-संपूर्ण। किरवानी को पीलू के काफी करीब जाता है। किरवानी का आरोह-अवरोह देखिए
आरोह-सा रे ग॒ म प ध॒ नी सां
अवरोह-सां नी ध॒ प म ग॒ रे सा
पकड़- ध़ ऩी सा रे ग म प ध प, ध प ग रे- सा रे, ग म प ध प
इंटरनेट पर राग किरवानी में उस्ताद अली अकबर खां की करीब पचास साल पहले की रिकॉर्डिंग मौजूद है।