एक ऐसा बालक जो तीन साल की उम्र में अपनी दादी के सुनाए गीत हूबहू उन्हें वापिस सुना देता था. एक ऐसा बालक जिसने 11 साल की उम्र में शास्त्रीय संगीत के मंच पर लगातार दो घंटे तक गाया और सुननेवालों को अपनी आंखों और कानों पर यकीन नहीं हुआ. एक ऐसा बालक जिसे पंडित भीमसेन जोशी, गंगूबाई हंगल, हीराबाई बड़ोदकर और वसंतराव देशपांडे जैसे दिग्गज शास्त्रीय गायकों ने वंडर बॉय कहा और गायकी को अपना जीवन बनाने का सुझाव दिया. वो बालक आज संजीव अभयंकर के नाम से जाना जाता है
मेवाती घराने के शास्त्रीय गायक संजीव अभयंकर 5 अक्टूबर 1969 को एक ऐसे परिवार में पैदा हुए जहां पहले से ही संगीत का माहौल था. मां डॉक्टर शोभा अभयंकर खुद शास्त्रीय गायिका थीं. होनहार बीरवान की तरह संजीव ने अपनी विलक्षण प्रतिभा की झलक 3 साल की छोटी सी उम्र में ही दिखा दी थी. दादी बच्चे के लिए जो भी गीत गातीं, नन्हा संजीव उन्हें हूबहू वापस सुना देता. माता-पिता को इस प्रतिभा का एहसास हुआ और उन्होंने संजीव को तालीम देने का फैसला किया. 8 साल की उम्र से मां शोभा अभयंकर ने संजीव की फॉर्मल ट्रेनिंग शुरू की. साथ ही उन्हें मां के गुरु पंडित गंगाधरबुआ पिंपलखड़े का भी मार्गदर्शन मिला.
11 साल की उम्र में संजीव ने अपनी पहली मंच प्रस्तुति दी. 11 साल का बच्चा मंच पर लगातार 2 घंटे तक सुरों का जादू दिखाता रहा. सुननेवाले हैरान थे. संजीव को नाम मिला- वंडर बॉय. इस बीच मां शोभा अभयंकर पंडित जसराज की शिष्या बन चुकी थीं. उनकी इच्छा हुई कि संजीव भी पंडित जसराज से संगीत की बारीकियां सीखे. मां ने जसराज जी से गुजारिश की. संजीव का गाना सुनने के बाद जसराज संजीव को शिष्य बनाने को तैयार हो गए. ये संजीव अभयंकर के जीवन का निर्णायक मोड़ था.
संजीव ने गुरु-शिष्य परंपरा के तहत जसराज जी से ट्रेनिंग ली. लेकिन उनके सीखने का सबसे बड़ा जरिया रहा जसराज जी के साथ मंचों पर तानपुरा बजाते वक्त वोकल सपोर्ट देना. संजीव अभयंकर 1984 से 1994 तक यानी 10 साल तक पंडित जसराज के साथ रहे. उन दिनों पंडित जसराज कॉन्सर्ट के लिए महीने में बीस दिन मुंबई से बाहर रहते थे, संजीव अभयंकर उनके साथ सफर करते थे. इन 10 सालों में मंच पर गुरु को लाइव गाते सुनकर और उन्हें वोकल सपोर्ट देकर संजीव अभयंकर ने सबसे ज्यादा सीखा. बाद में गुरु के साथ जुगलबंदियों का भी मौका मिला.
संजीव बताते हैं कि वन टू वन सिखाते वक्त हो सकता है गुरु का ध्यान उतना फोकस्ड न हो लेकिन दर्शकों के सामने कोई भी कलाकार अपनी क्षमता का बेस्ट देता है, लाइव कॉन्सर्ट में वो अपना सब कुछ निकालकर रख देता है. 10 साल के दौरान संजीव को कम से कम 400 कॉन्सर्ट में गुरु के साथ मंच पर बैठने का मौका मिला. संजीव के शब्दों में ये कुछ वैसा ही है जैसे सचिन तेंदुलकर की 400 शानदार पारियां आपने सामने वाले विकेट पर खड़े होकर देखी हों. मंच पर वोकल सपोर्ट के वक्त कभी-कभी गुरुजी खुश होकर कह देते थे- जियो बेटा. संजीव के लिए यही सबसे बड़ा अवॉर्ड होता था
जसराज जी के साथ बीते दिनों का एक दिलचस्प किस्सा संजीव अभयंकर बताते हैं. 1991 में वो नागपुर में गुरु के साथ मंच पर तानपुरा लेकर बैठे. तब तक संजीव के कई रिकॉर्ड आ चुके थे, वो रेगुलर परफॉर्म करने लगे थे, इसलिए चुपचाप बैठकर सिर्फ गुरु के साथ तानपुरा बजाना उनके लिए मुश्किल था. राग मियां मल्हार शुरू करने से पहले ही गुरु ने कहा- एक राग तक चुप रहना, अगली राग से तुम भी गाना. गुरु के आदेश पर करीब 45 मिनट तक संजीव सिर्फ तानपुरा बजाते रहे. उनके चेहरे पर दिखने लगा कि वो खुश नहीं हैं. गुरु मुड़-मुड़कर पीछे देख रहे थे, संजीव की पीड़ा समझ गए. कॉन्सर्ट खत्म होने लगा तो इशारे से बोले मैं जो गा रहा हूं उस तान तो डबल स्पीड में गाओ. संजीव भरे बैठे थे. गुरु का इशारा मिलते ही शुरू हो गए और चार आवर्तन तक डबल स्पीड में गाते रह, पूरे हॉल में बैठे लोग चार्ज हो गए, तालियां बजाने लगे.
दूसरा कोई गुरु होता तो शायद दो चार और ऐसी ही कसरत कराता लेकिन जसराज जी की महानता देखिए, उन्होने देखा कि संजीव की द्रुत तानों के साथ राग अपने क्लाइमैक्स पर पहुंच गया. उन्होने राग को वहीं खत्म कर दिया, सुरमंडल रखा और संजीव को गले से लगा लिया
संजीव अभयंकर चाइल्ड प्रॉडिजी थे. तीनों सप्तकों में गाना और मुश्किल तानें कहना उनके लिए हमेशा से खेल रहा. 13 साल की उम्र में वो दो-दो घंटे के कॉन्सर्ट करते थे. इसलिए जसराज जी से सीखते वक्त कई बार वो उनकी बताई चीज़ में कुछ अपना जोड़कर गा देते थे. इस पर गुरु टोकते थे. कहते थे- ‘देखो संजीव, तुम यहां वो सीखने आए हो जो मैने संगीत के बारे में सोचा या महसूस किया है. इसलिए अभी सिर्फ मेरे बताए पर यकीन करो, मेरे तजुर्बे, मेरे निष्कर्ष सीखो. अपनी चीजें तब करना जब ट्रेनिंग के इस दौर से निकल जाओ.’ 1994 से संजीव ने खुद परफॉर्म करना शुरू कर दिया तो चीजों को अपनी नजर से देखना शुरू किया. संगीत के शोधार्थी की तरह वो गुरु की बताई चीजों को अपनी उपज से कंपेयर करते हैं, गुरु का ठीक लगा तो रख लिया, अपना बेहतर लगता था तो उसे अपना लिया. जसराज जी का बड़प्पन है कि आज संजीव कुछ अलग भी गाते हैं तो जसराज उसे अनुमोदित करते हैं.
गाते वक्त संजीव अभयंकर के चेहरे पर हमेशा किसी बालक जैसी ही मासूम और मोहक मुस्कान होती है. संगीत ईश्वर से मिलाने का जरिया है और संजीव जब भक्ति रस गाते हैं तो सचमुच किसी और लोक में पहुंचा देते हैं.
खयाल गायकी के साथ ही संजीव अभयंकर ने ढेरों ठुमरियां, भजन और अभंग गाए हैं. एचएमवी, टाइम्स म्यूजिक, सोनी म्यूजिक, नवरस रिकॉर्ड्स, म्यूजिक टुडे, निनाद और फाउंटेन म्यूजिक जैसे लेबल्स से संजीव अभयंकर के अनगिनत रिकॉर्ड रिलीज हो चुके हैं. उन्होंने माचिस, निदान, संशोधन, दिल पे मत ले यार और बनारस के लिए प्लेबैक सिंगिंग भी की है. 1998 में फिल्म गॉडमदर के गीत के लिए उन्हें बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का नेशनल अवॉर्ड मिला
भारत और विदेश के 200 से ज्यादा शहरों में संजीव प्रस्तुतियां दे चुके. अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और मिडिल ईस्ट में संजीव अभयंकर जाना-पहचाना नाम हैं. शास्त्रीय गायकों की युवा पीढ़ी में संजीव अभयंकर निसंदेह एक चमकता सितारा हैं. वो नई पीढ़ी के लिए प्रेरणाश्रोत हैं. उन्हें देखकर और सुनकर शास्त्रीय संगीत की ओर न जाने कितने युवाओं का रुझान हुआ होगा. संजीव बरसों-बरस तक सबको अपने सुरों के रस से सराबोर करते रहें, यही कामना है.