शंकर अहसान और लॉय के नाम से मशहूर बॉलीवुड इंडस्ट्री की सबसे पॉपुलर जोड़ी में से एक शंकर महादेवन से रागगिरी की खास बातचीत हुई। हमने इस इंटरव्यू में उनसे पूछा कि वो फिल्मी संगीत के बारे में क्या सोचते हैं। पिछले कई दशकों से अपने संगीत का जादू चला रहे और अपने गानों की धुनों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर रहे शंकर महादेवन के लिए इस दुनिया में सबसे पहले संगीत ही है और उसके बाद दूसरी ऐसी कौन सी बात है जो उन्हें संगीत के बाद बेहद पसंद है इस बारे में उन्होंने हमसे खास बात की। शंकर महादेवन के 2 बेटे हैं और वो भी संगीत में अपने पिता की तरह ही रम चुके हैं। ऐसे में वो भी क्या अब अपने पिता की तरह गा रहे हैं। शंकर जी अपने बेटों को संगीत का पाठ कैसे पढ़ाते हैं और फिल्मी गानों के बारे में उनके क्या विचार हैं आइए उन्हीं से जानते हैं।
आपके लिए संगीत के बाद दूसरी सबसे जरूरी बात क्या है जो आपको सबसे ज्यादा खुशी देती है?
संगीत के बाद मेरे लिए मेरा परिवार सबकुछ है। मेरी पत्नी, मेरे बच्चे। परिवार के साथ वक्त बिताना मुझे बहुत पसंद है। मुझे खाना पकाना पसंद है इसलिए मौका मिलता है तो उनके लिए खाना भी बनाता हूं। उनके साथ टीवी देखता हूं। घूमता फिरता हूं, शॉपिंग करता हूं। परिवार के साथ बिताया गया वक्त मेरे लिए किसी भी अवॉर्ड से बड़ा है। घर की दुनिया से बाहर मैं संगीत को अपना दोस्त मानता हूं। अगर आपके साथ संगीत है तो आप कभी भी अकेले नहीं पड़ सकते हैं। मेरी जिंदगी का ‘कीवर्ड’ है ‘मेंटल पीस’। मुझे गुस्सा नहीं आता। मैं ‘इरीटेट’ नहीं होता। मध्यमवर्गीय परिवार के सारे संस्कार अब भी हमारे यहां लागू होते हैं। मेरे बच्चे सिदार्थ और शिवम भी अब फिल्मी गायन में आ चुके हैं। एक पिता के तौर पर मैं उन्हें भी हमेशा वही संस्कार सिखाता हूं जो मैंने अपने बड़ों से सीखे हैं। गानों और धुनों को लेकर उनकी पसंद-नापसंद को देखकर मुझे इस बात का भरोसा है कि वो सही रास्ते पर हैं। इसीलिए मैं उनके काम में जरूरत से ज्यादा दखंलदाजी नहीं करता हूं। लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं उन्हें क्या सिखाता या बताता हूं लेकिन मेरा जवाब बड़ा सीधा है कि मैं अपने बच्चों को क्या करना है और क्या नहीं करना है जैसी बातें बता-बताकर एक और शंकर महादेवन नहीं तैयार करना चाहता। बल्कि मैं कुछ साल बाद सिदार्थ महादेवन के पिता के तौर पर पहचाना जाना चाहता हूं।
अब आप जब आपके बेटे का गाना सुनते हैं तो आपको कैसा महसूस होता है क्या वो अच्छा सिंगर बन रहा है?
जब मैं रेडियो पर अपने बेटे का फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ का गाना ‘जिंदा’ सुनता हूं तो वो कमाल की ‘फीलिंग’ होती है। अभी उसने ‘कट्टी बट्टी’ के लिए भी गाया है। दोनों ही गानों में कॉम्पोजीशन मेरी अहसान और लॉय की है। लेकिन कई बार जब वो अपनी बनाई कॉम्पजीशन भी सुनाता है तो मैं हैरान हो जाता हूं। मुझे लगता है कि इस कला में उसकी सोच कितनी गहरी होती जा रही है। वो दोनों मेरे बेटे हैं इसलिए मैं कभी इस बात की फिक्र तक नहीं करता कि वो आने वाले वक्त में संगीत की दुनिया में कामयाब होंगे या नहीं, मेरे लिए ये जरूरी है कि संगीत के संस्कार के लिहाज से वो सही रास्ते पर चले। मेरा हमेशा से मानना है कि एक कलाकार का अच्छा इंसान होना बहुत जरूरी है। मैं एक कम अच्छे कलाकार के साथ काम करना पसंद करूंगा जो दिल से अच्छा इंसान है बजाए इसके कि मैं दुनिया के किसी सबसे बड़े कलाकार के साथ काम कर लूं जो दिल से अच्छा ना हो। घमंडी हो। दिन भर के काम के बाद आपको रात को अच्छी नींद आनी चाहिए, जो इस बात से जुड़ी है कि आपमें कितनी इंसानियत है। मैं जब ‘रियलिटी शो’ को जज करता हूं तो वहां आने वाले बच्चों को भी यही समझाता हूं कि उन्हें उस मंच से बहुत आगे का सफर तय करना है। मैं पूरी जिम्मेदारी से कह सकता हूं कि इस वक्त संगीत की दुनिया में जबरदस्त ‘टैलेंट’ सामने आ रहा है। अलग अलग तरह के ‘टेक्सचर’ वाली आवाजें सुनने को मिलती हैं। ये लड़के बहुत मेहनत करते हैं। जब हम इनकी उम्र में थे तो इतनी मेहनत नहीं करते थे। हमसे कुछ नहीं तो दस गुना ज्यादा मेहनत करते हैं ये बच्चे, लेकिन इन्हें सफलता को बनाए रखना आना चाहिए।
फिल्मों का गानों में पहले की तुलना में अब तक कितना बदलाव आ चुका है ?
फिल्मी दुनिया में आज संगीतकारों की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। साथ ही अच्छे संगीत और बुरे संगीत की बहस भी बढ़ी है। एक कलाकार के तौर पर हमारी कोशिश होनी चाहिए कि ‘पब्लिक’ के ‘टेस्ट’ को समझने के साथ साथ उनके लिए नया ‘टेस्ट डेवलप’ भी करें। पहले के मुकाबले हिंदी फिल्मों में एक बदलाव भी आया है, अब फिल्में पहले की तरह लंबी नहीं होती। हर कोई 2 घंटे के आस पास की फिल्म बनाता है, ऐसे में किसी भी फिल्म में गाने का रोल और भी बढ़ जाता है। क्योंकि अब गाना फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है। पहले के जमाने में परदे पर गाने के आने के साथ ही फिल्म की कहानी रूक जाती थी, सिर्फ गाना सुनने को मिलता था। अब ऐसा नहीं होता। अब फिल्मों में कहानी को आगे बढ़ाने का काम भी गानों के जरिए होता है। इसीलिए गानों को लेकर गायक के साथ साथ संगीत निर्देशक और निर्देशक का रोल बढ़ा है। आज की तारीख में दशर्कों को फिल्म देखने के लिए हॉल तक ले जाने में सबसे बड़ा रोल म्यूजिक का है। इस बात का ध्यान आने वाले कलाकारों को रखना होगा, तभी उन्हें पहचान और कामयाबी मिलेगी।