पद्मभूषण अवॉर्ड से सम्मानित पंडित राजन साजन मिश्रा को दरअसल में जब ये अवॉर्ड दिया जा रहा था तब उन्हें इस बात की खबर ही नहीं थी कि उन्हें ये सम्मान मिलने वाला है। अवॉर्ड से कहीं ज्यादा अपने श्रोताओं के दिल खुश करने की कोशिश में लगे बनारस के ये दिग्गज कलाकार उन्हें ही अपने श्रोताओं को ही अपना सबसे बड़ा अवॉर्ड मानते हैं। कड़ी साधना और संघर्ष से इस मुकाम तक पहुंच चुके राजन साजन मिश्रा की जोड़ी के बाद क्या अब उनके परिवार की आने वाली पीढ़ी भी संगीत को लेकर इतनी ही गंभीर है और संगीत साधना कर रही है। क्या नई पीढ़ी के बच्चों में संगीत के प्रति वो सम्पर्ण है जो उन्हे एक अच्छा और महान कलाकार बना सकता है। ऐसे कई बातों के बारे में रागगिरी ने पंडित राजन-साजन मिश्रा से खास बात की।
आपको कई अवॉर्ड्स मिले लेकिन पद्मभूषण अवार्ड का किस्सी बेहद दिलचस्प है ये अवॉर्ड आपको मिलने वाला है इसकी खबर आपके अलावा और सभी को थी ये क्या किस्सा है?
पिछले कई बरसों की कमाई है कि हम दोनों भाईयों को कई अवॉर्ड मिले लेकिन हम आज भी अपने श्रोताओं के प्यार को सबसे बड़ा अवॉर्ड मानते हैं। हमारे सम्मान पर हमसे ज्यादा प्रसन्नता हमारे चाहने वालों को होती है। पद्मभूषण अवॉर्ड का किस्सा तो बहुत ही दिलचस्प है। कोलकाता में डोवर लेन में हमारा कार्यक्रम था। वो कार्यक्रम काफी देर रात रात तक चलता है। बड़ा ही प्रतिष्ठित कार्यक्रम होता है। उस कार्यक्रम से पहले हमारे पास पंडित जसराज जी का फोन आया- उन्होंने बधाई दी। हम दोनों भाईयों को लगा कि कार्यक्रम से पहले शुभकामना के तौर पर उन्होंने बधाई दी है। इसके बाद जब कार्यक्रम करके लौटे तो आधी रात से ज्यादा का वक्त था बल्कि सुबह होने वाली थी। मेरे ख्याल से रात के लगभग तीन बजे का वक्त रहा होगा, मोबाइल ऑन किया तो राजन भैया के बेटे का भी एसएमएस आया था- ‘कॉग्रेचुलेशन फॉर अवॉर्ड’ । ये तो समझ आ गया कि कोई बड़ा अवॉर्ड मिला है, लेकिन उसकी सही जानकारी नहीं थी। बेवक्त घर पर फोन करना भी ठीक नहीं लगा। हमने सुना था कि अवॉर्ड मिलने से पहले ‘पुलिस वेरीफिकेशन’ होता है, हमारी जानकारी में हम लोगों का कोई ‘पुलिस वेरीफिकेशन’ भी नहीं हुआ था। हम लोगों ने टीवी सेट खोला कि शायद वहां से कोई जानकारी मिल जाए। हमारी जानकारी थी कि पद्मभूषण व्यक्तिगत अवॉर्ड है, इसलिए सवाल ये भी था कि हम दोनों भाईयों को ये कैसे मिल सकता है। टीवी पर भी भम्र की स्थिति थी, कहीं पर सिर्फ भैया का नाम आ रहा था और कहीं पर सिर्फ मेरा। आखिर में नेशनल चैनल पर हमारा और भैया दोनों का नाम था। बाकयदा हम दोनों भाईयों का पूरा ‘प्रोफाइल’ था। हम इसको भी बुजुर्गों का आशीर्वाद मानते हैं।
अब आपके बच्चे भी बड़े हो चुके हैं तो क्या उनको भी आपकी और आपके परिवार की तरह संगीत में रुचि है ?
ये बुजुर्गों का आशीर्वाद ही है कि हम दोनों भाईयों की अगली पीढ़ी भी संगीत की दुनिया में ही है। मेरे बेटे स्वरांश का जन्म दिल्ली में हुआ था, जबकि राजन भैया के बेटे यानी मेरे भतीजे रितेश-रजनीश का जन्म बनारस में हुआ था। परिवार की परंपरा के मुताबिक बच्चा जब 5-6 साल का हो जाए तो उसे बड़ों के हवाले कर दिया जाता था। इसी परंपरा के तहत रितेश-रजनीश को हमने पिता जी के हवाले कर दिया था। उनकी बाकयदा ‘गंडा बंधन’ के साथ संगीत की शिक्षा शुरू हो गई। दिलचस्प बात ये है कि जैसे हम दोनों भाई स्पोर्ट्स मैन बनना चाहते थे वही हाल राजन भैया के दोनों बेटों का भी था। बड़ा भाई मर्चेंट नेवी में जाना चाहता था, छोटा भाई ‘बिजनेस’ करना चाहता था। लेकिन किस्मत का संयोग था कि इन्हें भी हमारी तरह ही संगीत की साधना करनी थी। मेरे बेटे स्वरांश का मन था कि थोड़ा ‘बॉलीवुड म्यूजिक’ किया जाए थोड़ा ‘क्लासिकल म्यूजिक’। हमारी अगली पीढ़ी के सभी बच्चे संगीत में मिलने वाली शांति और सुख को देखते हुए इसी दुनिया में रच बस गए। हम दोनों भाईयों ने कभी जबरदस्ती सिखाने की कोशिश तक नहीं की, लेकिन बहुत कुछ ‘एक्सप्लोर’ करने के बाद बच्चे खुद से ही यहां आ गए। अब भैया और मैं जब मौका मिलता है तो इन लोगों को सिखाते हैं।
आपके अनुसार नई पीढ़ी में संगीत को लेकर कितनी गंभीरता है?
स्वरांश पर कुछ ईश्वर की कृपा है कि वो लिखते भी हैं। हम लोगों के पास भी लिखने का हुनर था। राजन भैया तो कम से कम 300 रचनाएं लिख चुके हैं। वो अपनी सारी रचनाएं गुरू जी पंडित बड़े रामदास जी को अर्पित करते हैं। मैंने भी 50-60 रचनाएं की हैं। इसके अलावा स्वरांश के नाना जी महान पंडित बिरजू महाराज तो बहुत अच्छे कवि भी हैं। शायद हम सभी लोगों का थोड़ा थोड़ा असर है कि स्वरांश बहुत अच्छी रचनाएं करते हैं। बहुत खुशी होती है कि हम सभी लोगों की परंपरा आगे बढ़ रही है।
अक्सर लोग हम दोनों भाईयों से शास्त्रीय संगीत के भविष्य की बात करते हैं, हम दोनों भाई भी अक्सर ये चर्चा करते रहते हैं। भैया और मेरा यानी हम दोनों का मानना है कि शास्त्रीय संगीत की दुनिया में आज की तारीख में बहुत सारे प्रतिभावान बच्चे सामने आ रहे हैं। सच्चाई ये है कि हम लोगों के बचपन से ज्यादा प्रतिभाशाली बच्चे अब सामने आ रहे हैं, लेकिन कई मौकों पर वो सही दिशा में नहीं हैं। हमारे यहां एक पुरानी कहावत कही जाती थी-गुरू करे जान के, पानी पिए छान के। आप सोच कर देखिए कि पुराने जमाने के लोग कितने दूरदर्शी रहे होंगे, उन्होंने उस वक्त कहा था कि पानी पिएं छान के, आज ‘फिल्टर’ पानी ही पिया जा रहा है। परेशानी ये है कि आजकल लोग 5 साल किसी एक गुरू से सीखते हैं फिर 5 साल किसी और से उसके बाद किसी और से। ये भटकाव की स्थिति है, इससे जाहिर होता है कि आज के शिष्यों के पास गुरू में आस्था की कमी है। राजन भैया कहते हैं कि अच्छे भाव से संगीत सीखना चाहिए, अच्छा कर्म करना चाहिए। समय लग सकता है, लेकिन मौके जरूर मिलेंगे। पिछले कुछ साल में कई अच्छे कलाकार आए, जिनको सुनकर लगा कि ये 50 साल की पारी खेलेंगे, लेकिन वो भटक गए। आज के बच्चों में सीखने का शौक खत्म हो रहा है, अगर उन्हें बंदिश समझ नहीं आती तो वो उसमें कुछ नए शब्द जोड़कर लोग गा देते हैं। क्षमता पहले से हजार गुना ज्यादा है, लेकिन यात्रा में जल्दीबाजी दुर्घटना का कारण बन रही है।
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस मौजूदा स्थिति से उलट भैया आज भी यही कहते हैं कि हम दोनों भाईयों को अब भी ये कोशिश करनी चाहिए कि हमारी गायकी से श्रोताओं को आनंद आए। हमारा कार्यक्रम सुनकर हॉल से बाहर निकल कर कोई ये ना कहे कि यार राजन साजन मिश्रा को सुनकर आए, लेकिन मजा नहीं आया। सच पूछिए तो हम भाईयों की सिर्फ एक ही दुआ है कि जब तक शरीर में जान है हम दोनों भाई बस गाते रहें और संगीत के जरिए अपने दोस्तों से अपने चाहने वालों से जुड़े रहें।