मशहूर प्लेबैक सिंगर पंकज उधास के बारे में उनके लाखों करोड़ों फैंस बहुत कुछ जानना चाहते हैं। रागगिरी की मुहिम है कि आपके पसंदीदा हर कलाकार से हम आपका और नजदीक से परिचय करवाएं। पंकज उधास एक जमींदार परिवार से हैं लेकिन उनके सिंगर बनने तक का ये सफर कैसे शुरु हुआ इस बारे में हमने उनसे खास बात की। बचपन में उनकी दिलचस्पी गाने से ज्यादा तबला सिखने में थी ऐसे में उनका वो अनुभव भी उन्होने हमें बताया। स्टेज पर गाने का सिलसिला कैसे शुरु हुआ और बचपन में ऐसी कौन सी बड़ी शरारत उन्होंने की कि मां ने उन्हें जोरदार थप्पड़ जड़ दिया था कुछ ऐसे ही दिलचस्प किस्सों के बारे में हुई रागगिरी से उनकी खास बातचीत
आप अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए गाने के अलावा आपको और क्या-क्या पसंद था?
मैं बचपन में बहुत शरारती था। पिता जी तो कभी डांटते मारते नहीं थे लेकिन मां के हाथ की मार कई बार खाई है। तीनों भाईयों में मैं सबसे छोटा था और मैं ही सबसे ज्यादा शरारती भी था। उस जमाने में मेरी जो शरारते थीं वो बड़ी ‘इनोसेंट’ शरारते थीं। वो शरारतें जो किसी और को नुकसान पहुंचाने वाली नहीं बल्कि मौजमस्ती वाली। मैं पेड़ पर चढ़ जाता था। खूब ऊंचे ऊंचे पेड़ों पर चढ़ जाता था। मेरी मां परेशान हो जाती थीं कि किसी दिन मैं गिरा तो हाथ पैर टूटेगा। मुझे याद है कि एक आम का पेड़ था। मैं आम के चक्कर में उस पेड़ पर खूब ऊपर तक चढ़ जाता था और मां परेशान होती थी कि मुझे चोट ना लग जाए। छोटी उम्र में शरीर भी ‘फ्लैक्सिबल’ होता था तो जब तक कोई रोके टोके मैं फटाफट पेड़ के ऊपर पहुंच जाता था। मां खूब चिल्लाती थी। इसके अलावा भी बच्चों के खेलने वाले सारे खेल मैं खेलता था। मैं जिस दौर में बड़ा हुआ उस दौर में टीवी, वीडियो गेम या मोबाइल जैसे मनोरंजन के साधन तो थे नहीं तो मैं गुल्ली डंडा खेलता था, क्रिकेट खेलता था। इसके अलावा मुझे पतंग उड़ाने का बहुत शौक था। वैसे भी गुजरात के राजकोट में जहां मैं बड़ा हुआ वहां पतंग उड़ाने में हर किसी की दिलचस्पी होती थी। इसके अलावा दीवाली में पटाखों का मुझे बहुत शौक था।
बचपन में अंजाने में आपसे ऐसी क्या गलती हुई थी आपकी मां ने सबके सामने आपके गाल पर गुस्से में थप्पड़ मार दिया था?
बचपन की एक दीवाली मुझे कभी नहीं भूलती। दीवाली के दिन सुबह का समय था। मेरा एक दोस्त घर आया। वो मेरे पड़ोस में ही रहता था। हम लोगों ने ‘डिसाइड’ किया कि पटाखे लेकर आते हैं और हम दोनों पटाखे लेने के लिए घर से निकल पड़े। उस वक्त मेरी उम्र यही कोई 6-7 साल की रही होगी। हम लोग घर पर बिना किसी को बताए निकल गए। चक्कर ये हुआ कि हम दोनों आपस में बात करते करते घर से काफी आगे निकल आए। अंदाजन यही कोई चार पांच किलोमीटर। पटाखे की दुकान से कुछ पटाखे खरीदने के बाद जब हम वापस घर निकलने को हुए तो धीरे धीरे चलते चलते शाम होने लगी। इधर घर में सब लोग परेशान थे कि ये लड़का चला कहां गया। आखिर में जब कोई जवाब नहीं दे पाया तो घरवालों ने घबराकर पुलिस में ‘कंपलेन’ कर दी कि ये बच्चा ‘मिसिंग’ है। जब हम दोनों दोस्त घर के पास पहुंचे तो देखा कि अच्छी खासी भीड़ जमा है। ऐसा लग रहा था जैसे पास पड़ोस का हर व्यक्ति मेरे घर पहुंच गया हो। खैर, हम दोनों दोस्तों को क्या पता कि हमारे पीछे से क्या क्या हुआ है। हम दोनों बड़े आराम से बोलते बतियाते घर तक पहुंच गए। जब अंदर पहुंचे तो देखा कि मम्मी तो बिचारी परेशान हो-होकर रो रही थी। जैसे ही उन्होंने मुझे देखा और हाथ में पटाखा देखा तो सबसे पहले गाल पर एक तमाचा मिला। उसके बाद मां ने बहुत डांटा। दीवाली में पटाखा चलाने में मुझे चोट भी लगी है। मेरे माथे पर एक निशान है वो निशान उसी पटाखे की देन है। मैं पटाखा तो चला दिया लेकिन वो उड़कर मुझे ही लग गया था। मेरे माथे पर उस चोट की निशानी अब भी है। बावजूद इसके मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता था। बचपन की शैतानियां यूं ही चलती रहती थीं।
स्टेज पर गाने का सिलसिला कब शुरु हुआ ?
जब मैं स्कूल पहुंचा तो मेरे अंदर संगीत का शौक पैदा हो चुका था। घर में हर वक्त अपने दोनों भाईयों को गाते देखता था। पिता जी दिलरूबा बजाते ही थे। जब घर में हर तरफ संगीत का माहौल था तो उसका असर मेरे ऊपर भी पड़ना ही था। 6-7 साल की उम्र में ही मैंने भी गाना शुरू कर दिया था। मेरा स्कूल मेरे घर के बिल्कुल सामने ही था। बहुत नजदीक। मैं पैदल पैदल स्कूल जाया करता था। सुबह सुबह जब स्कूल में ‘एसेंबली’ होती थी तो हेडमास्टर साहब जोर से बुलाते थे- पंकज यहां आओ। फिर मैं वहां उनके पास जाता था तो वो कहते थे कि बच्चों को प्रार्थना कराओ। सुबह के वक्त ये प्रार्थना रोजाना होती थी। मुझे लगता है कि संगीत में मेरा ‘इनवॉल्वमेंट’ वहीं से शुरू हो गया था। फिर एसेंबली में ही कभी-कभी मुझसे भजन या गीत भी सुने जाते थे। कभी मैं कोई भजन गाता था तो कभी कोई गीत। स्टेज पर गाने का सिलसिला देखा जाए तो वहीं से शुरू हो गया था।
बचपन में आपको गाने से ज्यादा तबला बजाने का शौक था तो वो कैसे शुरु हुआ?
मेरी इसी गायकी की वजह से पहली क्लास से लेकर बीएससी तक मेरे सारे टीचर मुझ पर मेहरबान रहते थे। मैं इसे ‘पार्शियल’ होना नहीं कहूंगा लेकिन सभी टीचरों का मेरे प्रति एक अलग स्नेह था। बाकि बच्चों के मुकाबले मुझे लेकर जो उनका बर्ताव था उसमें एक अलग ‘अप्रोच’ था। सभी को लगता था कि ये बच्चा बहुत प्यारा है। बहुत अच्छा गाता है। लिहाजा स्कूल से लेकर कॉलेज तक मेरी छोटी-मोटी गलतियां यूं ही निकल जाती थीं। राजकोट में संगीत नाटक अकादेमी का बड़ा केंद्र था। उन दिनों संगीत सीखने के लिए राजकोट में वही एक जगह थी। संगीत नाटक अकादेमी के इस तरह के केंद्र देश के कई हिस्सों में थे। जहां बाकयदा संगीत सिखाया जाता था। उन दिनों इन केंद्रों का बड़ा बोलबाला था। एक बड़ी सी इमारत थी। उसमें प्रिंसिपल थे। टीचर्स थे। संगीत से विषय या शास्त्र के तौर पर मेरा पहला परिचय वहीं हुआ। हालांकि तब मेरे सर पर तबला बजाने का भूत सवार था। मैं तबला बजा भी लेता था। लिहाजा 13 साल की उम्र में मैं राजकोट की संगीत नाटक अकादेमी से जुड़ा। वहां मैंने तबला सीखना शुरू किया। वहां पर मेरे एक सर थे जिनका नाम मुझे अभी तक याद है, मिस्टर बोरवानी। वो संगीत नाटक अकादेमी के उस केंद्र में मुझे तबला बजाना सीखाया करते थे।