गिरजा देवी सिर्फ स्वरों की देवी ही नहीं बल्कि उनका गाना सुनने वालों को साक्षात परात्मा के दर्शन हो जाया करते थे। माना जाता है कि वो जिस साधना के साथ गाना गाना शुरु करती थी उसे सुनने के लिए तो साक्षात भगवान उनसे मिलने आ जाते थे। वैसे तो ये बातें किस्से और कहानी ही लगते हैं लेकिन ऐसे उदाहरण कई बात गिरजा देवी जी को महसूस हुए उन्हें देखने को मिले जब उन्होंने गाना गाना शुरु किया और गाना गाने के बाद जब अपना परफोर्मेंस खत्म किया तो माहौल ही बदल गया होता था। उनके शास्त्रीय संगीत में अदभुत सा जादू था जिसे सुनने से ना सिर्फ श्रोतागण खुश होते थे बल्कि भगवान तक भी उनकी साधना पहुंचती थी। कुछ ऐसे ही किस्सों में बारे में रागगिरी से हुई खास बातों में उन्हें बताया था कि…
आपको सबसे पहले किसने अप्पा कहकर पुकारा और फिर उसके बाद सभी आपको अप्पा कहने लगे?
मेरे अप्पा कहलाने के पीछे की कहानी बड़ी मजेदार है। असल में मेरी बहन को बेटा हुआ। खूब गोरा, गोल मटोल। हम उसको खूब खिलाते थे। बाबू-बच्चा करके उसके साथ बात करते थे। थोड़ा बड़ा होने पर जब उसने शब्दों को थोड़ मरोड़ कर बोलना शुरू किया तो उसी ने सबसे पहले हमको बुलाया अप्पा। उसके बाद से तो घर में हर कोई अप्पा बुलाने लगा। धीरे धीरे आस पास के लोगों ने अप्पा कहना शुरू कर दिया। अब तो पिछले जाने कितने सालों से मेरा नाम ही पड़ गया अप्पा। अब मेरे घर के बच्चे अप्पा दादी, अप्पा नानी, अप्पा मां बुलाते हैं यानी पुकारने वाला रिश्ता चाहे जो हो उसके साथ अप्पा लगा रहता है। खैर अपनी गायकी पर लौटती हूं मैं आजतक यही सोचती हूं कि मेरा गाना बजाना सब ऋषि मुनियों का ही है। छोटी थी तब एक साल तक सारनाथ में भी रही थी। इसलिए क्योंकि सुना था कि सुबह सुबह ऋषि-महर्षि स्नान करने के लिए जाते हैं और उनके कानों में गायकी जाती है तो वो आशीर्वाद देते हैं। मेरे ध्यान में था कि इन सभी का आशीर्वाद बहुत जल्दी लगता है। मैं पूर्व जन्म में भी विश्वास करती हूं।
एक कार्यक्रम के दौरान ऐसा कहा जाता है कि एक ऐसी घटना हुई कि आपकी परफॉर्मेंस के बाद साक्षात भगवान आपसे मिलने आए और आप उन्हें पहचान नहीं पायीं?
मेरे जीवन में एक दो चमत्कारिक घटनाएं भी हुई हैं। दरभंगा में एक जगह है लहरिया सराय। वहां दुर्गा पूजा पर हमारा कार्यक्रम था। कार्यक्रम मोतिहारी के पास था। वहां हमको दो प्रोग्राम करने थे। अष्टमी का और षष्ठी का। वैसे उनका कार्यक्रम सातों दिन चलता है। उस कार्यक्रम में भी ऐसा हुआ कि उनके एक कलाकार नहीं आए। मुझे उनकी जगह गाने के लिए कहा गया। मैंने विनम्रता से मना कर दिया, मैंने कहा कि हम दो दिन के लिए गाने आए हैं, दो दिन ही गाएंगे। एक कलाकार के ना आने की वजह से उन्हें तय कार्यक्रम में तब्दीली भी करनी पड़ी। अगले दिन वो लोग रात में तीन बजे आए और बोले कि चलिए आज आपका साढ़े तीन बजे से कार्यक्रम है। हमारी आदत थी कि हम कार्यक्रम के लिए जाने से पहले नहा धोकर भगवान को धूप बत्ती दिखाकर, पूजा करके ही गाने के लिए जाते थे । हमने आज तक सोकर उठने के बाद सीधा गाना नहीं गाया। खैर, हम तैयार होकर कार्यक्रम के लिए पहुंचे। तबला और बाकी साज-सामान लेकर। उस कार्यक्रम के लिए तबले पर भी मेरे गुरू भाई ही थे- कामेश्वर नाथ मिश्रा।
एक बार आपके साथ ये भी हुआ कि आप गाने के लिए स्टेज पर पहुंची और पंडाल में आपको सुनने के लिए कोई आया ही नहीं था, तो उस दौरान आपने क्या किया?
जब हम उस कार्यक्रम के लिए पहुंचे तो पूरा पंडाल खाली था। सिर्फ थोड़े बहुत मजदूर थे। जिन्होंने पंडाल लगाया होगा। सब बैठकर बीड़ी पी रहे थे और बोरा बिछाकर बैठे हुए थे। तब तक चार बज गए थे। कुल मिलाकर पंडाल में वो मजदूर, हमारे साथी कलाकार और वही चार आदमी जो हमको बुलाकर ले गए थे, इतने ही लोग थे। मेरे बैठने की जो जगह थी उसके ठीक सामने दुर्गा जी की बड़ी सी प्रतिभा थी, एकदम चमकती हुई। बाईं तरफ शंकर जी घंटा घड़ियाल बजना शुरू हुआ। मैंने सोचा कि चाहे जितने लोग बैठे हैं बैठे रहें, मैंने अपनी गायकी शुरू कर दी। 30-35 मिनट का राग शुरू गाया, अभी विलंबित ख्याल खत्म करने के बाद मैंने आंख खोली ही थी कि देखा तो पूरे पंडाल में सिर्फ सर ही सर दिखाई दे रहे थे। मुझे समझ ही नहीं आया कि ये करिश्मा कैसे हुआ है। इतने लोग कहां से आ गए। मेरी आंखों में आंसू आ गए। दिल भर आया। किसी तरह थूक निगलकर अपने आपको काबू में किया। फिर द्रुत गाए। फिर वही बाबुल मोरा गाए। फिर एक भजन गाए। डेढ़ घंटे तक हम गाते रहे। तब तक करीब साढ़े पांच बज गए थे। हमारा गाना खत्म हुआ तो पूरे पंडाल में खूब ताली बजी।
क्या आप उन साधु बाबा को पहचान नहीं पायीं इस बात का अफसोस आपको आज भी होता है?
हम जब मंच से उठकर जाने लगे तो पंडाल में एक साधु आए। गोरा बदन। सफेद दाढ़ी। जनेऊ लटक रहा था। एक लाल गमछा उन्होंने पहना था और एक लाल गमछा उन्होंने ओढ़ रखा था। हाथ में कमंडल। साधु ने कहा- बिटिया हमने आज तक ऐसा संगीत नहीं सुना था। तुम ये कमंडल और गमछा ले लो। लेकिन मेरे पिता जी और मां ने समझाया था कि अगर कोई साधु तुम्हारे पास आए तो उसे तुम अपने पास से कुछ दो, उससे कुछ लो नहीं। मैंने साधु बाबा से कहा कि मुझे सिर्फ आशीर्वाद दीजिए। साधु बाबा ने दोबारा कहा बिटिया तुम ये कमंडल ले लो। मैंने फिर मना कर दिया। उसके बाद मैंने आंख मूंद कर अपने पर्स में हाथ डाला कि जो कुछ मेरे हाथ में आएगा मैं उनको दे दूं, लेकिन जब आंख खोली तो वो सामने नहीं थे। मैंने साथी कलाकारों से पूछा कि वो साधु बाबा कहां गए। पंडाल में लोगों से मैंने कहाकि वो साधू बाबा को खोज कर लाएं। वो साधु बाबा कहां उड़ गए पता ही नहीं चला। मुझे रोना आ गया। सब लोग कहने लगे कि शंकर भगवान आए थे, आपको कुछ देना चाहते थे, आपने लिया नहीं। तुम्हें ले लेना चाहिए था उनका कमंडल। लेकिन हमने तो लेना सीखा ही नहीं था, सिर्फ देना आता था। आज भी उनका चेहरा मुझे बिल्कुल अच्छी तरह याद है आज भी मैं उन्हें याद करके रोती हूं।