इस नए राग की कहानी की शुरुआत एक सवाल से करते हैं। क्या आप जानते हैं कि लता मंगेशकर ने जब पहली बार ऑल इंडिया रेडियो के लिए रिकॉर्डिंग की थी तो कौन सा शास्त्रीय राग गाया था? इस सवाल का जवाब देने के लिए आपको लता मंगेशकर के बचपन में ले चलते हैं। ये उस समय की बात है जब लता मंगेशकर की उम्र सिर्फ 11-12 साल थी। संगीत की विधिवत शिक्षा लेते हुए उन्हें करीब पांच साल बीत चुके थे। जाने माने नाट्यकर्मी और संगीतकार पिता दीनानाथ मंगेशकर की देख-रेख में लता मंगेशकर ने कई मुश्किल राग बचपन में ही सीख लिए थे। लता मंगेशकर जब नौ साल से भी कम की थीं तो अपने पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर की नाट्यमंडली में काम करना शुरू कर चुकी थीं। पंडित दीनानाथ मंगेशकर की नाटक कंपनी का नाम था- बलवंत संगीत मंडली। पहली बार वो अपने पिता के साथ जिस नाटक के लिए मंच पर उतरीं उसका नाम था- सौभद्र। लता मंगेशकर को उनकी मां ने बड़े जतन से सजा धजा कर स्टेज पर भेजा था। कहते हैं कि उस दिन जब लता मंगेशकर ने नारद बनकर मंच पर गीत गाया तो पूरी पब्लिक उन्हें देखती और सुनती रह गई। कहा जाता है कि लोगों की जुबां पर उसी दिन आ गया था- वंस मोर, वंस मोर। इसके बाद 1940 के आस पास लता मंगेशकर को पहली बार नई दिल्ली ऑल इंडिया रेडियो से बुलावा आया। उस वक्त तब लता मंगेशकर 10 साल की उम्र पार कर चुकी थीं। 10 साल की उम्र तो बच्चियों की ही होती है। लता मंगेशकर की उस रिकॉर्डिंग के लिए उनके पिता भी साथ में दिल्ली आए। लता मंगेशकर ने जब ऑल इंडिया रेडियो का माइक संभाला तो पहली बार गाया, शास्त्रीय राग खम्बावती।
राग खम्बावती की की जमीन पर तैयार किसी फिल्मी गाने का कोई साक्ष्य नहीं मिलता। बावजूद इसके ये राग इसलिए बहुत अहम है क्योंकि असल मायनों में ये पहला और आखिरी राग है जो लता मंगेशकर ने रेडियो के लिए रिकॉर्ड किया था। 1941 में हुई इस रिकॉर्डिंग के अगले ही साल यानी 1942 में लता मंगेशकर के पिता दीनानाथ मंगेशकर का असमय निधन हो गया। पंडित दीनानाथ मंगेशकर की मौत जब हुई तब उनकी उम्र सिर्फ 41-42 साल की थी। कहा जाता है कि पंडित दीनानाथ मंगेशकर को मुफलिसी के दिनों में शराब की बुरी लत लग गई थी। जो धीरे धीरे उनकी जिंदगी को खा गई। खैर, पिता के जाने के बाद लता मंगेशकर के सामने अपने परिवार को चलाने की जिम्मेदारी आ गई। इसके बाद उन्होंने रेडियो के लिए कोई रिकॉर्डिंग नहीं की। इस दुखद किस्से से बाहर निकलने के लिए आपको राग खम्बावती की एक शानदार रचना बताते हैं। जिसे आप कव्वाली के सम्राट कहे जाने वाले कलाकार उस्ताद नुसरत फतेह अली खान की आवाज में सुन सकते हैं। बोल हैं- पिया मोरे आए मंदिरवा, करूंगी मैं सोलह श्रृंगार। राग खम्बावती का फिल्मी संगीत में इस्तेमाल ज्यादा नहीं हुआ है। 1958 में रिलीज हुई फिल्म अमरदीप में लता मंगेशकर ने एक गाना गाया था, जिसके बोल थे-देख हमें आवाज ना देना ओ बेदर्दी जमाने। ये गाना राग खम्बावती की जमीन पर तैयार किया गया था। जिसके संगीतकार थे सी रामचंद्र। इसके अलावा 1952 में रिलीज फिल्म दाग में लता जी की ही आवाज में एक गाना और था जो इसी राग की जमीन पर था। बोल थे- प्रीत ये कैसी बोल री दुनिया। इस फिल्म के निर्देशक थे अमीय चक्रवर्ती और संगीत शंकर जयकिशन ने तैयार किया था। इन फिल्मी गानों के अलावा इसी राग की जमीन पर कुछ गाने मराठी फिल्मों में भी तैयार किए गए। जिन्हें आशा भोंसले ने गाया था। राग खम्बावती गाया बजाया भी कम जाता है। लेकिन इससे मिलता जुलता राग झिंझोटी काफी पॉपुलर रागों में गिना जाता है। झिंझोटी को आधार बनाकर फिल्मी गाने भी खूब बने हैं, जैसे- सजनवा बैरी हो गए हमार, कोई हमदम न रहा वगैरह। बहरहाल राग खम्बावती पर वापस लौटते हैं।
राग खम्बावती के किस्से को आगे बढ़ाने के लिए आपको इस राग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग खम्बावती खमाज थाट का राग है। इस राग की जाति संपूर्ण षाढव है। इस राग में वादी स्वर ‘म’ और संवादी संवर ‘स’ है। वादी और संवादी स्वर के बारे में हम आपको बताते आए हैं जैसे शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर सबसे अहमियत रखते हैं वैसे ही किसी भी राग में वादी और संवादी स्वर का महत्व सबसे ज्यादा होता है। राग खम्बावती को गाने बजाने का समय रात का पहला प्रहर है। इस राग में ‘नी’ को छोड़कर बाकी सभी स्वर शुद्ध इस्तेमाल किए जाते हैं। ‘नी’ कोमल लगता है। इस राग में ज्यादातर ठुमरी और ख्याल गायकी होती है। ख्याल गायकी में ज्यादातर मौकों पर छोटा ख्याल राग खम्बावती में गाया जाता है। इस राग में विलंबित ख्याल कम ही सुना जाता है। शास्त्रीय राग मांड, खमाज और सिंदूरा भी इस राग से मिलते जुलते राग हैं। आइए आपको राग खम्बावती का आरोह अवरोह और पकड़ बताते हैं।
आरोह– सा, रे म प ध नी S ध सां
अवरोह– रे सां नी ध प, ध म प ग म सा
पकड़– रे म प ध सां, नी ध प, ध म प ग म सा
शास्त्रीय रागों की कहानियों पर आधारित इस सीरीज में हम हमेशा किस्से कहानियों के साथ साथ राग की शास्त्रीयता पर बातचीत करते हैं। राग खम्बावती के दो वीडियो बहुत देखे जाते हैं। पहला भारतीय शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकार भारत रत्न से सम्मानित किराना घराने के पंडित भीमसेन जोशी और दूसरा किशोरी ताई यानि पद्मविभूषण से सम्मानित किशोरी अमोनकर का है।