अब्दुल रशीद कारदार हिंदी सिनेमा की बड़ी शख्सियतों में से एक थे। आजादी के पहले पाकिस्तान के सिनेमा को स्थापित करने में भी उनका बड़ा रोल था। उन्हें एआर कारदार के नाम से ज्यादा ख्याति मिली। दरअसल, कारदार साहब कैलीग्राफी करते थे। दुनिया की तमाम बड़ी फिल्मों के पोस्टर उन्होंने तैयार किए थे। जाहिर है उनकी इस कला की वजह से वो आए दिन बड़े-बड़े फिल्मकारों से मिलते रहते थे। उनका एक और परिचय ये भी है कि वो पाकिस्तान के महान क्रिकेटर एएच कारदार के सौतेले भाई भी थे। खैर, 1930 में कोलकाता आने के बाद तीस और चालीस के दशक में वो पूरी तरह फिल्म निर्माण से जुड़ गए थे। कारदार साहब को तमाम ऐसे फनकारों को फिल्म इंडस्ट्री में मौका देने का श्रेय जाता है जिन्होंने बाद में बहुत नाम कमाया। इसमें महान संगीतकार नौशाद, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी और कलाकार सुरैया का नाम लिया जाता है। कहा तो ये भी जाता है कि मोहम्मद रफी को पहली बार जिस गाने के लिए सबसे ज्यादा सराहा गया वो गाना भी कारदार साहब की फिल्म-दुलारी का था। वो गाना था- सुहानी रात ढल चुकी। इस तरह रफी साहब की लोकप्रियता में भी उनका बड़ा रोल रहा। 1966 की बात है, एआर कारदार एक फिल्म बना रहे थे- दिल दिया दर्द लिया। इस फिल्म में उन्होंने दिलीप कुमार और वहीदा रहमान को बतौर हीरो हीरोईन लिया था। दिलीप कुमार इससे पहले अपनी ‘ट्रेजेडी किंग’ की इमेज से बाहर आने के लिए कुछ हल्की फुल्की फिल्में भी कर चुके थे। ऐसे में इस फिल्म में उनके लिए एक गाना खास तौर पर तैयार किया गया। गीतकार थे शकील बदायूंनी और संगीतकार नौशाद। इस गाने में दिलीप कुमार ने अपने जाने-पहचाने और बेहद लोकप्रिय ‘ट्रेजेडी किंग’ के ‘लुक’ और अभिनय से इस गाने को जबरदस्त हिट करा दिया। असल में फिल्म के शौकीन उन्हें ‘ट्रेजेडी किंग’ के तौर पर पसंद भी बहुत करते थे। वो गाना था कोई सागर दिल को बहलाता नहीं।
इस गाने की शुरूआत में हास्य अभिनेता जॉनी वॉकर और दिलीप कुमार के बीच का संवाद उनकी अभिनय क्षमता को दिखाता है। वैसे इस गाने की कहानी को आगे बढ़ाने से पहले ये बताते चलें कि इस फिल्म में दिलीप कुमार कारदार साहब के साथ सह-निर्देशक यानी को-डायरेक्टर भी थे लेकिन ऐसी चर्चा है उन्हें इस बात को कम ही प्रचारित प्रसारित किया गया। खैर, कोई ‘सागर दिल को बहलाता नहीं’ गाने को लिखते और कंपोज करते वक्त हर किसी के दिमाग में दिलीप कुमार थे, लिहाजा संगीतकार नौशाद ने इस गाने के लिए एक ऐसी राग को आधार बनाया जो ऐसे संजीदा गानों पर पहले कम ही इस्तेमाल हुई थी। वो राग थी- कलावती। इस गाने के बीच बीच में एक और राग जनसम्मोहिनी का असर भी दिखाई देता है। दरअसल कलावती में ऋषभ यानी रे स्वर नहीं लगता है, लेकिन कोई सागर में रे भी लगता है, जो इसे थोड़ा सा जनसम्मोहिनी की तरफ से जाता है।
बहरहाल, फिल्मी गानों के इतिहास में राग कलावती पर कई जानी मानी कव्वालियां कंपोज की गई थीं, लेकिन इतना संजीदा गाना बनाना अपने आप में एक अलग ही प्रयोग था जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। 1960 में रिलीज फिल्म-बरसात की रात में कलावती को संगीतकार रोशन ने बड़ी ही खूबसूरती से एक कव्वाली में इस्तेमाल किया। कव्वाली के बोल थे- ना तो कारवां की तलाश है। इस कव्वाली को मोहम्मद रफी, मन्ना डे, आशा भोसले समेत कई कलाकारों ने गाया था जो आज भी हिंदी फिल्म इतिहास की बेहतरीन कव्वालियों में से एक है। इसके बाद 1970 में आई फिल्म- खिलौना की एक कव्वाली भी बहुत पसंद की गई। बोल थे- सनम तू बेवफा के नाम से मशहूर हो जाए। इस बार भी कव्वाली का आधार राग कलावती ही थी, संगीतकार थे- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और गायिका- लता मंगेशकर। एक और कव्वाली का जिक्र करना यहां बहुत जरूरी है। 1977 में रिलीज फिल्म हम किसी से कम नहीं में आरडी बर्मन ने ‘है अगर दुश्मन-दुश्मन जमाना गम नहीं’ जैसी लोकप्रिय कव्वाली कंपोज की थी जिसे आशा भोसले और मोहम्मद रफी ने गाया था।
राग कलावती के आधार पर इसके अलावा और भी हिंदी फिल्मों के गाने कंपोज किए गए। जिसमें 1962 में रिलीज फिल्म-दरवाजा का ‘पिया नहीं आए’, 1964 में रिलीज फिल्म-चित्रलेखा का ‘काहे तरसाए जियरा’ काफी लोकप्रिय हुआ था। इस गाने को उषा मंगेशकर और आशा भोंसले ने गाया था। संगीतकार थे रोशन। फिल्म सुरसंगम (1985) का गाना मैका पिया बुलावे भी इसी फेहरिस्त में शामिल हैं। नए जमाने के संगीतकारों में एआर रहमान ने इस राग को आधार बनाकर फिल्म स्वदेश में एक गाना कंपोज किया था। फिल्म स्वदेश 2004 में रिलीज हुई थी। जिसमें ‘ये तारा वो तारा’ गाना राग कलावती पर ही आधारित था जिसे उदित नारायण ने गाया था। दरअसल राग कलावती की कैफियत ऐसी है कि फौरन ही सुनने वाले पर तारी हो जाती है. लाइट म्यूजिक के लिए ये बहुत ही मुफीद राग है।
आइए अब आपको हमेशा की तरह राग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं। राग कलावती खमाज थाट का राग है। इस राग में ‘ग’ वादी और ‘ध’ संवादी स्वर हैं। इस राग में ‘रे’ और ‘म’ नहीं लगता है इसलिए इस राग की जाति औडव-औडव है। राग कलावती को गाने बजाने का समय रात का दूसरा पहर है। आइए इस राग का आरोह अवरोह एवं मुख्य स्वर समूह को जान लेते हैं।
आरोह– सा, ग, प, ध, नी, ध, सां
अवरोह– सां, नी, ध प, ग, सा
मुख्य स्वर– ग प ध नी ध प ग सा
इस राग से जुड़ा एक और दिलचस्प प्रयोग जाने माने गायक सुरेश वाडेकर ने किया था। उन्होंने राग कलावती को आधार बनाकर हनुमान चालीसा गाई थी। शास्त्रीय संगीत प्रेमियों के बीच श्रीमती प्रभा अत्रे की गाई एकताल में कलावती की एक बंदिश बहुत मशहूर है- तन मन धन तोपे वारूं। क़व्वाली के उस्ताद नुसरत फतेह अली खान भी ‘तन-मन-धन’ कंपोजीशन अपने अंदाज़ में गाते थे।