भारत के मशहूर गायकों में से एक पंकज उधास ज़मीदार घराने से ताल्लुक रखते हैं लेकिन फिर उनके परिवार में संगीत कहां से आया और ऐसी क्या वजह थी कि बचपन डॉक्टर बनने के सपने देखने वाले पंकज उधास सिंगर बने। पंकज उधास के घर में संगीत का माहौल शुरु से ही था उनके पिता ने संगीत में अच्छी तालीम ले रखी थी इसलिए शाम को समय जब वो ऑफिस से आते तो रियाज़ किया करते और पंकज अपने दोनों भाईयों के साथ अपने पिता कब सुनते उनकी मां हाउसवाइफ थी लेकिन वो संगीत प्रेमी भी थी बिना किसी ट्रेनिंग के वो भी गुनगुनाती थी उनके गाने आस पड़ोस के लोगों में खूब मशहूर हुआ करते थे लेकिन क्या डॉक्टर का सपना देखने वाले पंकज उधास के लिए सिंगर बनने के लिए इतना काफी था। उनके परिवार में कैसे संगीत आया पिता जी ने किनसे संगीत सीखा और फिर उनकी दिलचस्पी संगीत में कैसे हुई ये सभी बातें उन्होंने रागगिरी से साझा की
आप किसी संगीत घराने से नहीं हैं तो आपके परिवार में संगीत कैसे आया ?
मेरा जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ। गुजरात के राजकोट में पास एक छोटा सा गांव है चरखड़ी। हमारा जो उधास परिवार है वो वहां के जमींदार हुआ करते थे। हालांकि मेरा काफी बचपन राजकोट में बीता है। मेरे दादा उस जमाने में पूरे गांव में इकलौते और पहले ‘ग्रेजुएट’ थे। जमींदार परिवार से होने के बाद भी उन्हें पढ़ाई का बड़ा शौक था। उन्होंने उस जमाने में पुना फर्ग्यूसन कॉलेज से जाकर बीए किया था। ये कोई 1902 की बात है। यानि आज से करीब 118 साल पहले। उन्हें भावनगर के महाराज ने मिलने के बुलाया और कहाकि आप भावनगर के ‘एडमिनिस्ट्रेटर’ बन जाइए। ‘एडमिनिस्ट्रेटर’ यानि आज के समय का ‘कलेक्टर’। महाराज ने दादा जी से कहाकि आप पढ़े लिखे हैं, जवान हैं…आप इस जिम्मेदारी को संभालिए। दादा जी ने ये जिम्मेदारी संभाल ली। बाद में जब भावनगर के महाराज ने दादा जी की ईमानदारी देखी तो वो उनसे बहुत प्रभावित और खुश हुए। ये वो दौर था जब राजा महाराज अपने ‘स्टेट’ में संगीतकारों, कलाकारों को बुलाया करते थे। उनका कार्यक्रम देखते थे। उनकी कला का सम्मान करते थे। कलाकारों को भेंट में अच्छी खासी रकम भी दिया करते थे। उन दिनों भावनगर महाराज ने एक नामी कलाकार अब्दुल करीम खां साहब को बुलाया था। ये वो किराना घराने वाले अब्दुल करीम खान साहब नहीं बल्कि दूसरे अब्दुल करीम खान साहब थे। अब्दुल करीम खान साहब बीन बजाते थे। उसे वीणा भी कहते हैं।
आप तीन भाई हैं और सभी पढ़ाई में अव्वल रहे तो पढ़ाई से समय निकालकर आपने संगीत में जब दिलचस्पी दिखायी तो क्या परिवार में इसका विरोध हुआ?
ये पूरी कहानी मैंने इसलिए सुनाई क्योंकि यहीं से मेरे परिवार में संगीत आया। हुआ यूं कि मेरे पिता अक्सर दादा जी के साथ भावनगर महाराज के दरबार में जाया करते थे। पिता जी ने अब्दुल करीम खान साहब को सुना तो फरमाइश कर दी कि मुझे भी ये सीखना है। दादा ने अब्दुल करीम खान साहब साहब से बड़ी गुजारिश की कि ये बच्चा सीखने की जिद कर रहा है तो इसे सिखाइए। खान साहब ने पिता जी को समझाया भी कि आप जमींदारों के परिवार से हैं और संगीत की दुनिया अलग ही है। लेकिन तब तक संगीत पिता जी के दिमाग में घुस चुका था। उन्होंने फिर भी सीखने की इच्छा जाहिर की। तब खान साहब ने मेरे पिता जी को इसराज सीखाना शुरू किया। जिसे दिलरूबा भी कहते हैं। मेरे पिता जी ने उनसे दिलरूबा सीखा। इसी दौरान 1947 का वक्त आया। देश आजाद हुआ। राजा महाराजा चले गए। धीरे धीरे जमींदारी प्रथा भी खत्म हो गई। तब परिवार वालों ने तय किया कि हमें कुछ करना चाहिए। मेरे पिता जी भी पढ़े लिखे थे। उन्होंने बीए एलएलबी किया था। पिता जी को जल्दी ही सरकारी नौकरी मिल गई तो उन्होंने राज्य सरकार की नौकरी को ‘ज्वॉइन’ कर लिया। मुझे याद है कि पिता जी जब शाम को ऑफिस से लौटकर आते थे तो अपने साज को लेकर जरूर बैठते थे। वो बाकायदा साज को ‘ट्यून’ करने के बाद काफी समय तक साज बजाया करते थे। उन्हीं को सुन कर मेरे बड़े भाई मनहर जी और उनसे छोटे भाई निर्मल उधास की दिलचस्पी संगीत में जागी। मैं तीनों भाईयों में सबसे छोटा हूं। लेकिन मुझे याद है पिता जी को इसराज बजाते देखकर ही हम तीनों भाईयों में संगीत को लेकर जिज्ञासा हुई कि ये क्या साज है, कैसे बजता है। मुझे लगता है कि आस पास के समाज और माहौल का बच्चों में बहुत असर पड़ता है। संगीत हम तीनों भाईयों में ऐसे ही आया।
आप डॉक्टर बनना चाहते थे तो फिर ऐसी क्या वजह थी कि आप गायक बने?
दिलचस्प बात ये भी है कि वैसे तो मेरी मां ‘हाउसवाइफ’ थीं लेकिन शौकिया तौर पर वो गाती थीं। वो कोई ‘प्रोफेशनल सिंगर’ नहीं थी लेकिन उन्हें गाने का शौक बहुत था। मैं बहुत छोटा था लेकिन मुझे याद है कि उन दिनों जब आस पड़ोस में कोई शादी ब्याह का कार्यक्रम होता था तो हर कोई मेरी मम्मी से कहता था कि वो गाना गाएं। पड़ोसी लोग मम्मी से कहते थे कि वो पहले गाएं और फिर बाकि लोग उन्हें ‘फॉलो’ करेंगे। मेरी मम्मी गाती भी बहुत अच्छा थीं। बहुत सुरीली। मैं समझता हूं कि यही वजह थी कि मेरे परिवार में संगीत आया। वरना संगीत से कोई रिश्ता नहीं, कोई घराना नहीं, कोई खानदान नहीं। फिर भी हम तीनों भाई संगीत से प्रभावित हुए। पिता जी को चूंकि खुद संगीत से इतना लगाव था इसलिए उन्होंने हम तीनों भाईयों को प्रेरित भी किया। मेरे पिता जी बहुत नेकदिल इंसान थे। मुझे नहीं याद कि उन्होंने कभी मुझे डांटा या मारा हो। वो इन चीजों में भरोसा ही नहीं करते थे कि बच्चों को मारपीट कर या डांट डपट कर कुछ कहना चाहिए। उनका ये स्वभाव भी शायद संगीत की वजह से ही था। उन्होंने हम तीनों भाईयों के दिमाग में एक बात बहुत ‘क्लियर’ करके रखी थी। वो बहुत साफ साफ कहा करते थे कि ये बहुत खुशी की बात है कि आप तीनों भाईयों को संगीत में दिलचस्पी है। मुझे तो वो अक्सर ही कहा करते थे कि पंकज तुम बहुत अच्छा गाते हो इसको कभी भी छोड़ना मत। इन बातों के साथ साथ वो हमेशा एक बात कहते थे कि दुनिया में इंसान जो है वो पढ़ाई लिखाई के बिना जानवर के समान होता है। इसलिए पढ़ाई लिखाई बहुत जरूरी है। किसी भी सूरत में, किसी भी हालत में पढ़ाई नहीं छोड़ना। यही वजह है कि हम तीनों भाईयों ने संगीत के साथ साथ कभी भी पढ़ाई से ‘कॉम्प्रोमाइज’ नहीं किया। मेरे बड़े भाई मनहर उधास मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उनसे छोटे भाई निर्मल उधास ने आर्ट से ग्रेजुएट किया है। बचपन में मेरा मन डॉक्टर बनने का था। इसलिए मैंने साइंस लेकर पढ़ाई की। मैंने भी बीएससी किया । मुझे याद है कि मेरे पिता जी साफ-साफ कहा करते थे कि अगर तुम्हें लगता है कि डॉक्टर बनना है तो जरूर बनो लेकिन जरूरी नहीं है कि आप डॉक्टर ही बने। उन्होंने शायद मेरा भविष्य मुझसे पहले देख लिया था।